सिवाना डायरीज - 88

 सिवाना_डायरीज  - 88


"अनुभवों को ही अब गुरू करो।

जहाँ हो, वहीं से शुरू करो।।"

-उम्र के हिसाब से काफी ठीक-ठाक रहा है मेरा सामाजिक और सार्वजनिक जीवन। खुद को सही सिद्ध करने की कोशिशों में हारता भी गया, तो भी लोगों के सामने उस निर्णय को अपनी विवशता ही बताया। गलतियाँ थी खूब सारी मन भी जानता है, मगर फिर हजारों करते चला गया। ऊपर वाली लाईन अपन ने ही लिखी है अभी। इकत्तीसवें पड़ाव से भी आधा आगे आ गया हूँ उम्र के मगर परिपक्वता केवल बातों में ही रही। मेरे पास वाले सारे लोगों के पास मेरी कोई न कोई कमी या गलती आज भी है और मैं भी भली-भाँति जानता हूँ इस बात को। आज फिर एक इमैच्योरिटी दिखाई और जिस मनोहरा पर इतना लिखा करता हूँ, उसे खो दिया। उसे खोने का दुख कितना होगा, ये तो समय ही बतायेगा। मगर आज तो खुश हूँ थोड़ा क्योंकि वह भी यही चाहती थी। अंत मुस्कुराते करने की सोचा था मैंने आज मगर बात गाली-गलौच पर ही खत्म हुई। कुछ भी खत्म होना सभी के लिए सुखद भी कहाँ होता है। मुझे खुद के बोले पर शर्म महसूस हो रही है। पश्चाताप की आग झुलसा दे मुझे आज तो भी कम है। मैं बस इतना कहूँगा कि मेरे जीवन में इस ट्रेजेडी के बाद अब जो भी सबसे बड़ी ट्रेजेडी होगी, वो मेरे आज के बोले का प्रतिफल होगी।


सुबह उठा तब से ही रोज जैसा ही हाल रहा। इंतज़ार काॅल या मैसेज का। मगर फिर निराश हुआ। निम्बेश्वर और कानसिंह की ढाणी स्कूल्स में रहा आज। प्राथमिक विद्यालयों की खेल-कूद प्रतियोगिता का इवेंट होना था अम्बा दीदी की स्कूल में। अब कल होगा। ऑफिस आकर मैंने काॅल किया मनोहरा को। बात ठीक से करने की भरपूर कोशिश की, मगर फेल हो गया और सब-कुछ खत्म कर गया मैं ही। उसका इगो जीत गया मेरी सेल्फ-रेस्पेक्ट से। 


मन बस यही कह रहा है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। पूनम रावत आज चली पूनम रावत आज चली गई जिंदगी से। पूनम, जिसने जिंदगी के असल मायने सिखाये मुझे। नहीं रही अब मेरे पास। मन अनाथ महसूस कर रहा है आज। पर मरना नहीं है। बची हुई आधी जिंदगी को ठीक करता हूँ अब देके। कोशिश करने में हर्ज भी क्या है! बहुत मन था कि कल सुबह मुकाम के लिए निकलने, मगर परसों वीटीएफ करनी है ऑफिस में। मत्था टेक खुद को समर्पित कर देना चाहता हूँ भगवान को अब। खुद को दोषी महसूस करता हुआ आगे बढ़ना कैसा होगा, ये ईश्वर ही जाने।

शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

11-11-2022

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