सिवाना डायरीज - 89

 सिवाना_डायरीज  - 89


"ध्यान दो,

केवल समय ही नहीं जा रहा,

जिंदगी भी जा रही है..."

-किसी के व्हाट्सएप स्टेटस में देखा ये क्वोट। शीट पर लिखकर सिरहाने वाली दीवार पर चिपकाने का मन है। जीवन का कटू सत्य भी यही है। खुशमिज़ाजी में जीने और मंजिल तक दौड़ने की कोशिशों में संतुलन बनाना ही पड़ेगा। अपने हिस्से आये अंधेरों का रोना रोने बैठेंगे, तो जिंदगी-भर रोते ही रह जायेंगे। और सच्चाई यह है कि यह रोना भी पूरी जिंदगी हमें ही रोना है। लोग सांत्वना देंगे, उजाले नहीं। उजाले तो हमें ही बटोरने होंगे। 


बहरहाल, शनिवार है आज। मेरे अकेलेपन वाला शनिवार। मैं भी बटोरने में लगा हूँ आजकल अपने हिस्से वाले उजाले। सुबह जल्दी उठ लगभग 25 किलोमीटर दूर वाले फूलण गाँव जा आया। गुरू जम्भेश्वर भगवान जी का मंदिर हैं वहाँ। बहुत बड़ा, बहुत ही सुंदर। मैं पहुँचा, हवन भी उसके बाद ही शुरू हुआ था। कल वारने की कोशिश की है मैंने मन के सारे कलुषों को हवन की ज्योति में। शब्दवाणी का मर्म भीतर घुसाने की कोशिश की। पास के देवड़ा गाँव में रहने वाले जगदीश जी अपने घर ले गये। वहाँ काॅफी पीकर फिर आया अपने सिवाना। घर की साफ-सफाई करके सोलंकियों का वास स्कूल गया। आजकल वहाँ जाने का बहुत मन है। पता नहीं क्यों गलत और सही के बीच में अधर में झूल रहा हूँ। उम्र और परिस्थितियाँ वहाँ एक उम्मीद की किरण दिखा रही है। जाने क्यों? मैं खुद भी नहीं समझ रहा। किसी के भी बारे में कुछ भी जाने बिना अटकाना चाह रहा हूँ खुद को वहाँ। मेरी धड़कनें बढ़ रही थी जब-जब भी उससे निकटता रही। सच्ची-सच्ची बात तो यही है कि मन खाली जगह को भरना चाहता है। और भी सच कहूँ तो कितना बुरा होता जा रहा हूँ मैं , इसका उदाहरण है ये। अपनी जिंदगी के एक हिस्से का मर जाना रुला नहीं रहा मुझे। 

शाम को घर आकर खाना खाकर ऑफिस गया। कल शाम वीटीएफ है हिंदी की और सुबह यूथ के साथ एक बैठक भी। बस उसी की चर्चा और तैयारी की हम तीनों ने। शाम को घर आकर हलवा बनाकर खाया हरीश भाई और मैंने। फिर पास की शाॅप रमेश मार्केटिंग पर पिज्जा भी निपटा लिया। पहले जब अकेला होता था, तो एकांत में होता था। आजकल अकेलेपन से गुजर रहा हूँ। हर रिजोल्यूशन एक दिन आगे बढ़े जा रहा है, बिल्कुल हमारे वंडर सीमेंट की लाईन 4 प्रोजेक्ट की कमीशनिंग की तरह। 


मन अंधेरे में खो जाना चाहता है अभी। और कुछ नहीं...

शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

12-11-2022

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