सिवाना डायरीज - 90
सिवाना_डायरीज - 90
'जीवन-भर में प्रेरणा देने वाले कई लोगों के साथ-साथ मैं अपनी गर्लफ्रेंड के लिए भी कहना चाहूँगा कि अगर वो नहीं होती, तो शायद मैं फर्स्ट रेंक पर नहीं आ पाता। उसका साथ मुझे हमेशा बूस्ट करता रहा है।'
-2018 में यूपीएससी टाॅपर रहे कनिष्क कटारिया का ये सेंटेंस प्रेम वाली मेरी जो परिभाषा है, उसको फुलफिल करता है। मतलब ना कि इससे ज्यादा सकारात्मक और क्या होगा जब सार्वजनिक तौर पर इस तरह की बात कह दी जाये। जब बना था यूपीएससी टाॅपर, तब किसी इंटरव्यू की बात है ये। पर मैंने सुनी सौरभ भैया के लल्लनटाॅप चैनल पर मास्साब अवध ओझा जी के मुँह से। उनकी भी यही परिभाषा है प्रेम की कि अगर वो आपको आगे बढ़ा रहा है, तो वह सही मायनों वाला प्रेम है। बाकि कहानियों का क्या, सबके साथ घटती है।
बहरहाल, छुट्टी का दिन था, मगर केवल दस्तावेजों में। घर की साफ-सफाई करके सुबह दस बजे पहुँच गया था मैं ऑफिस यूथ-मीटिंग के चलते। मगर हरीश भाई, भूपेंद्र बन्ना और मेरे अलावा और कोई नहीं पहुँचा।ग्यारह बजे तक सुरेश भैया भी आ गये। यूथ मीटिंग तो हो न सकी, बस बातें ढेर सारी की हमनें। इसी बीच कुरियर वाले का मैसेज भी आ गया था अपनी फर्स्ट स्मार्ट वाच की डिलिवरी का। बहुत इंतजार करवाया इसने। आखिर आ ही गई। सुरेश भैया के अलावा हम तीनों वहीं लेने चले गये अपनी घड़ी और मंचूरियन-पावभाजी भी दबा आये लोभजी के यहाँ। शाम को साढ़े तीन बजे होने वाली वीटीएफ में आज एक भी शिक्षक नहीं आया मेरी ऑल टाईम रेस्पेक्टेड रंजना मे'म के अलावा। बहुत हार्ड-वर्किंग है वो। बस उनसे ही चर्चा हुई हिंदी विषय पर। उनके जाने के बाद समीक्षा बैठक जैसा सीन रहा हम तीनों के बीच। सोचने का विषय है कि आखिर टीचर्स आ क्यों नहीं रहे हैं वीटीएफ में! खैर, देर शाम पहुँचा घर और वही रोज के जैसा। इधर-उधर के काम निपटाने के बाद थोड़ी देर रघुनन्दन जी से चर्चा की। अभी सोने के लिए बिस्तरों में हूँ। बस इतनी सी ही है जिंदगी आजकल।
मन एकदम कच्चा हो जाता है जब अतीत याद आ जाता है, मगर संभाल रहा हूँ खुद को। आगे बढ़ जाने का बहुत मन है अब। सफलता की चादर बड़ी करनी है अब। बहुत हो गया यार। चलो इन्हीं क्रांतिकारी विचारों के साथ अभी सो ही जाता हूँ। शुभ रात्रि...
- सुकुमार
13-11-2022
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