सिवाना डायरीज - 93

 सिवाना_डायरीज  - 93


'आँखें तुम्हारी दुख भी तुम्हारा

थोड़े आँसू दुनिया के भी भर लो।

मन मुताबिक न चल रहे हो जब दिन,

दिनों के मुताबिक मन को कर लो।।'

-बस इसी दौर से गुजर रहा हूँ अभी। कुछ भी ठीक नहीं लग रहा, जबकि खराब कुछ भी नहीं चल रहा। मैं दुनिया के दुखों को कम करने के ख्वाब देखता था एक दौर में। आज अपने दुख इतने बढ़ा लिये हैं कि ये उम्र इन्हें ठीक करने में भी कम ही लग रही। सुकून ढूंढ़ रहा हूँ हर कहीं। जहाँ थोड़ी भी उम्मीद नहीं, वहाँ भी। मशीन कर लिया है खुद को। बस फ्यूल फिल करो और चलाओ इसे। 


बहरहाल, वैसा का वैसा दिन, जैसा मैं नहीं चाहता। बहुत उबाऊ और बहुत ही थका देने वाला। निम्बेश्वर स्कूल गया था आज। वही एज युजअल वन ऑफ माई फेवरेट स्कूल। बच्चों के साथ धोरीमन्ना वाली स्कूल के बाल-मेला और गांधी जयंती पर अजीम प्रेमजी स्कूल वाले विडियो देखे लेपटाॅप पर। खूब सारी बातें हुई लर्निंग पर। लंच के बाद ऑफिस आ गया, जहाँ ट्रेनिंग चल रही है न्यूली जाॅइंड टीचर्स की। लंच में आजकल सरकारी रोटियाँ तोड़ रहा हूँ मैं आजकल। जबकि कर कुछ नहीं रहा उसके लिए। दिन-भर बैठा ही रहा बस ट्रेनिंग में। सच बोल रहा हूँ, मन से नहीं कर पा रहा आजकल कुछ भी। शाम को घर आ कविता से बात हुई खूब सारी। और अब सोने की तैयारी में हूँ बस।


मन जब है ही नहीं पास, तो क्या अच्छा और क्या ही बुरा।वैसे एक बात और है। कुछ ठीक नहीं हो रहा, बट मैं कुछ भी ठीक करने की कोशिश भी कहाँ कर रहा हूँ। बस दिन काट रहा हूँ, तो ये भी मुझे काटेंगे ही। अब सो जाता हूँ यार, उसके लिए भी अभी खूब मशक्कत करनी पड़ेगी, वैसे भी। 

गुड नाईट...


- सुकुमार 

16-11-2022

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