सिवाना डायरीज - 94

 सिवाना_डायरीज - 94


"तू, तू है वही दिल ने जिसे अपना कहा

तू है जहाँ मैं हूँ वहाँ

अब तो यह जीना तेरे बिन है सजा

हो मिल जाए इस तरह, दो लहरें जिस तरह

ओ मिल जाए इस तरह, दो लहरें जिस तरह

फिर हो न जुदा, हाँ ये वादा रहा..."

-आशा भोसले और किशोर कुमार का गाया ये गीत याद आ रहा है आज जाने क्यों बार-बार। माथा भरा रहता है आजकल। खुद को खाली करने के लिए, मन की बात का डायलाग करने के लिए कोई नहीं है पास। बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ। फिर भी ये आशावादी गाना याद आ रहा, देखिए। 


खैर, एक और बासी दिन। जिंदगी अपने पहियों पर बस दौड़े जा रही है बस। मैं भी इसी पर टिका हूँ अभी तो। उठकर भी सुस्त ही रहा सुबह भी। नहा-धोकर ऑफिस गया पहले, और बाद में अम्बा दीदी वाली स्कूल। कानसिंह की ढाणी स्कूल हैं शानदार, मगर बहुत पारंपरिक रूप से। हम हर बार बच्चों के नहीं सीख पाने के लिए उनकी सामाजिक स्थिति ठीक न होने की दलील नहीं दे सकते। दलपत जी, अम्बा दीदी और बच्चों के साथ खूब बातचीत हुई। लंच के बाद वही ट्रेनिंग में रहा अपनी होशियारी दिखाते हुए। बहुत उड़ रहा हूँ आजकल। शाम को सुरेश भैया धरा पर ले आये। सही भी है बिना प्लान के दौड़ रहा हूँ इधर-उधर मैं। बस स्कूल्स जाकर आ रहा हूँ और क्या! फर्स्ट बार से पाँच विजिट बाद के बदलाव के बारे में कहने को कुछ नहीं है मेरे पास। शाम को घर आकर दो दिन के बचे हुए दूध की खीर बनाने की कोशिश की। फट गया दूध। मसाला-पापड़ बना-खाकर काम चलाया। भैया की टीम तीसरा मैच फिर हार गई आज। मसला यह है कि सारथी सुपर-जायंट्स केवल सुनाराम पर टिकी है। सोते-सोते रात के एक बज गये हैं। अभी थोड़ी देर पहले हलवा बनाया मैंने आज आधी रात में। 


मन वैसा का वैसा है, जैसा ठीक नहीं होता है। अभी सो ही जाता हूँ। शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

17-11-2022

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