सिवाना डायरीज - 98

 सिवाना_डायरीज  - 98


"यहाँ लिबास की कीमत है, आदमी की कम।

मुझे गिलास बड़ा दे दीजिए, दारू बेशक कम कर लीजिए।।"

-बशीर बद्र जी का ये शेर कितना सच घोटे है खुद में। सच्ची-सच्ची तो हम सब शाॅ-केस ठीक करने में ही लगे हैं अपना-अपना। अंदर से भले कच्चे ही रह जायें। मैं खुद के लिए ज्यादा कह रहा हूँ ये सब बात। सतही पढ़ाई, सतही ज्ञान और सतही सोच हाशिए पर ले जा रही है मुझे और मैं हूँ कि अभी भी ख्वाबों में ही जी रहा हूँ। धरातल पर मैं क्या हूँ, कैसा हूँ - सोचना भी परेशान कर देता है मुझे। मैं कैसा हूँ, ये पूनम रावत से जाकर पूछे कोई। मैं कितना बदतमीज हूँ, श्वेता विश्नोई से जाकर पूछे कोई। अकेलापन कितना घटिया जाता है मेरा, मेरे तन-मन से पूछो। मगर जो भी है, अब सब ठीक करना है। सब-कुछ।


बहरहाल, ट्रेनिंग चल रही है ऑफिस में समावेशी शिक्षा की और मैं दौड़ रहा हूँ आज सुबह से ऑफिस और प्राथमिक विद्यालय, पिपलियानाथजी की कुटिया के बीच। लर्निंग असेसमेंट किया आज धन्नाराम जी की स्कूल के बच्चों का हिंदी विषय में। बच्चे बहुत प्यारे हैं सच में। लंच करने ऑफिस ही गया। वहाँ सरकारी रोटियाँ बराबर तोड़ रहा हूँ मैं आजकल। लंच के बाद फिर असेसमेंट में लगा रहा। बच्चे तुतलाती आवाज में मारवाड़ी भाषा सिखा देते हैं मुझे। बहुत मजा आया सच में आज। शाम को घर आकर दलिया बनाया था आज मिक्स दलिये वाला। पेट ठस हो रखा है। व्हाट्सएप पर मैसेज आया था अभी पून्नू का। फिर ढंग से खत्म नहीं कर पाया मैं। खैर, अब तो नहीं ही लौटेगी वो। सच कहूँ तो मैं भी नहीं चाहता।


मन ठीक ही रहा। कहीं टिकाने की कोशिश कर रहा हूँ, मगर समझ नहीं आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ। देखता हूँ। फिलहाल तो शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

21-11-2022

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