मन_एक्सप्लाॅर - 1
मन_एक्सप्लाॅर - 1
ब्रेक लेना चाहता था एक। ब्रेक खुद को अकेले करने का। ब्रेक, कि न किसी को दिखूँ और न ही देख सकूँ। ब्रेक, कि जो हासिल करना है वहाँ तक जाकर ही सबके सामने आऊँ। कोशिश भी की। एक लम्बी कोशिश। कोशिश, जिसमें रात को चद्दर शरीर पर डालने से पहले दिमाग अगले दिन का शिड्यूल बनाता है। कोशिश, जो एक अच्छी सुबह के साथ शुरू होकर खत्म होते-होते एज युजअल हो जाती है। कोशिश, कि बिल्कुल कम बोलना है, अच्छा और कम खाना है और खुद को बस उस हासिल के लिए तैयार रखना है। खुद पर काम करना है। खुद को शरीर, मन और डेली-बिहेव से आइडियल स्टेट में ले आना है। ये सब लिखना-पढ़ना कितना अच्छा लग रहा है ना? लेकिन मौन के साथ मुस्कान चाहिए होती है और खाने पर कंट्रोल से पहले अपने मन पर कंट्रोल। 'आज थोड़ा बिगड़ गया, अब कल से एकदम ठीक कर लूँगा।' -सोचते-सोचते इकतीसवें पड़ाव के अहाते में खड़ा हूँ। तीस तक कभी महसूस ही नहीं हुआ कि किशोरावस्था से बहुत दूर है तीसवां-इकतीसवां पड़ाव। अब लगता है। अब महसूस होता है। महसूस होता है कि आदतें, नेचर और लाईफ-स्टाईल बच्चों जैसी होने से ही आदमीं बच्चा नहीं हो जाता है। सोचने वालों को मैच्योरिटी एक दिन महसूस करवा ही देती है कि उम्र मायने रखती है मेरे भाई! सही क्या है? सबसे छिटक कर गुमनाम जीते हुए हासिल की तरफ बढ़ना या सबके बीच अपने खुश होने को जाहिर करते हुए भी उसी की तरफ बढ़ते जाना! सुकून दूसरे में मिलता है। पहले वाले से तो माथा भर सा गया है पिछले दिनों। पहले वाले में थोड़ा सुधार करना ठीक लग रहा है। बाकी देखते हैं, क्या होता है! सलाह/सुझाव/विचारों का स्वागत है। वैसे मेरी एक दोस्त का कहना है कि सोचता बहुत हूँ। जोर दूँ, तो सच भी लगती है उसकी यह बात...
- सुकुमार
25-04-2021
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