सिवाना डायरीज - 107
सिवाना_डायरीज - 107
"होठों पे मुस्कुराहट के साथ
खुशियाँ ही देने का वादा मिलता।
मेरी जेब टटोलने वालों
दिल टटोलते तो कुछ ज्यादा मिलता।।"
- जिस सफर में हूँ, नहीं होना चाहता। सफर ये नहीं चुना था मैंने और कोई जबरदस्ती भी नहीं लाया मुझे इधर। खुद ही चल पड़ा हूँ गलत राह पर। वो सब गलत किये जा रहा हूँ, जिसकी सलाह मैं किसी को नहीं देता। बनावटीपन अपने आगोश में लिये हैं मुझे। मैं इसके सारे कपड़े उतारना चाहता हूँ अब बस।
बहरहाल, एक और दिन बीत गया ऐसे ही। कल वाली स्कूल में ही गया आज भी। मेरे अनुमान से मायलावास गर्ल्स स्कूल के पाँचवी के बच्चों का ही स्तर ठीक है, बाकि सब एक जैसे हैं। विनोद जी और कुसुम दीदी बहुत मेहनत कर रहे हैं। शुरुआती एक घंटा चौथी और पाँचवी में रहा मैं और बाकि समय तीसरी कक्षा कल की तरह ही। एचएम अशोक जी के छोटे से आग्रह पर मिड-डे-मील की दाल-बाटी निपटाई आज लंच में। विनोद जी बहुत साॅफ्ट इंसान है। उनके साथ रहना ठीक लग रहा है। हाफ-डे के बाद मैं ऑफिस आ गया था आज फिर। आरपी शंकर जी के साथ बात करना माॅटिवेट करता है। शाम को हम तीनों ने मिलकर नेक्स्ट मंथ की कुछ प्लानिंग की। हरीश भाई के साथ आज एक और पिज्जा-पार्टी हो गई रमेश मार्केटिंग वालों के यहाँ। बस पास्ता का स्थान इस बार गार्लिक ब्रेड ने ले लिया। खा-पीकर घर आकर अब बिस्तर में हूँ और आजकल यही डेली-रूटीन हो गया है। परेशान भी इसीलिए हूँ।
मन बस में नहीं है। आँखें प्रतीक्षा में हैं इसकी कि कभी कुछ सुकून चमके जिंदगी में। देखते हैं क्या होता है। फिलहाल तो शुभ रात्रि...
- सुकुमार
30-11-2022
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