सिवाना डायरीज - 109
सिवाना_डायरीज - 109
"शोर यूँ ही न परिदों ने मचाया होगा।
कोई जंगल की तरफ शहर से आया होगा।"
- फिर कैफी आजमी जी का शेर मेरे काम आ रहा है। जिंदगी ऐसी ही चल रही है। कुछ हलचल भी। हलचल मने थोड़ा बुरा मिक्स थोड़ा अच्छा। मगर तलाश रहा हूँ कि बाहर से कौन और क्या आया ऐसा। कुछ भी संतुष्टि वाला नहीं चल रहा जिंदगी में।
खैर, रात को देरी से पहुँचा था घर। सुबह उठकर स्टेडियम चले गये हम सब। कई दिनों बाद बल्ला भी थामा था हाथ में। ठीक ही खेले अपन तो। वहाँ से फ्री होकर घर आये और पूजा की शादी में ही रहे दिन-भर। सुबह राहुल और चिंटू के साथ गया। वहाँ सुनील की उदासीनता ठीक नहीं लगी। लंच करके वापस आ गये घर। शाम को फिर राहुल उपाध्याय और पवन के साथ वहीं गये जहाँ पंकज और अंकित पहले से हमारी इंतजार में थे। सब खा चुकने के बाद पंकज सहित हम चारों एक ही बाईक पर घर आ गये। अब सोने की तैयारी में हूँ।
मन प्रतीक्षा में ही है अभी और मैं चाहता हूँ कि ये प्रतीक्षा में ही रहे। शुभ रात्रि...
- सुकुमार
02-12-2022
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