सिवाना डायरीज - 111

 सिवाना_डायरीज  - 111


"जहाँ न हो पगडंडियाँ की उथल-पुथल।

ए जिंदगी, अब मुझे ऐसे सफर पर ले चल।।"

- थका हुआ हूँ मैं। जाने क्यों? समझ ही नहीं आ रहा। मन की ग्रंथियों की उथल-पुथल ने बहुत अस्थिर कर रखा है। कुछ भी सीधा, सरल और सहज नहीं हो रहा, जबकि मैं गीत उन्हीं के गाये जा रहा। उलझी हुई सी दिख रही है जिंदगी। सच बोलूँ तो हिम्मत भी जवाब देने लगी है। कई बार मर जाने का मन होने लगा है। नाटक पूरा मचा रखा है मैंने भी सब-कुछ ठीक होने का, खुद को खुश दिखाने का और बनावटीपन को ऑरिजनल दिखाने का। मगर सच तो नहीं है ना ये। टाईम निकले जा रहा है और मैं रोज कल से - कल से किये जा रहा हूँ। बहुत पीछे हूँ औसत से भी, हाँ बहुत पीछे। इतना कि कई बार पार पाना मुश्किल लगने लगा है। 


खैर, दिख तो मैं खुश ही रहा हूँ सबको। घर हूँ आज। लास्ट दिन है। इतनी जल्दी निकली छुट्टियाँ कि पूछो मत। सुबह उठकर स्टेडियम गया आज फिर। सब बच्चों को भी ले गया। क्रिकेट में भी कुछ खास न हुआ। घर आ दिन-भर  बिश्नोई प्रीमियर लीग के मैच देखने में रहा आज। अपनी चहेती दोनों टीमें मैच हार गई। घर आकर भीलवाड़ा एक शादी में जाने का विचार था, मगर न जा पाया। कान्हा मामासा के पास बैठना बहुत अच्छा फील देता है मुझे। बड़े नानीसा का बर्थ-डे था आज तो वो आये हुए थे पुर। मैंने भी वहीं पकौड़ियाँ निपटाई। शाम का खाना जीजी के यहाँ खाकर अभी बस में हूँ अपने सिवाना के लिए। फुफाजी का बारहवाँ है कल। नोहरे में भी रहा घंटे-भर। बेवाण लाये थे शाम को। महिला मंडल का सत्संग चल रहा था अभी नोहरे में। 


मन नहीं है ठीक। कुड़े में डाल देना चाहता हूँ अपना सारा अतीत। नई शुरुआत करनी है मुझे। बहुत पिछड़ा हूँ, मगर मैं लाऊँगा खुद को मैन-स्ट्रीम में फिर से। यही सोचकर बैठा हूँ बस में। सीट फिक्स नहीं थी आज, तो गैलेरी के लास्ट वाला स्लीपर दिया है किशोर जी गोरसिया ने। अभी सो जाता हूँ। शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

04-12-2022

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