सिवाना डायरीज - 112
सिवाना_डायरीज - 112
'अश्वत्थामा हतो, नरो वा - कुंजरो वा।'
- धर्मराज युधिष्ठिर का एकमात्र आंशिक सत्य है ये जो गुरु द्रोणाचार्य को रोकने के लिए काम आया महाभारत के युद्ध में। कोमा के बाद वाली लाईन को भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शंख की आवाज में दबा दिया था। निर्णय लेने के टाईम-जाॅन में ये बहुत जरूरी है कि आप बात पूरी सुनें। जीवन की अधिकांश विफलताओं में सबसे बड़ा दोषी मैं खुद को मानता हूँ। मैंने भी अधिकांश निर्णय बिना पूरी बात सुने, बिना समझे और गुस्से-गुस्से में लिये हैं। खुद को जस्टीफाई करने के लिए आज भी चाहे जो तर्क हो मेरे पास। मगर मेरे सारे दुखों का असली कारण मेरे अपने निर्णय ही है, इसमें कोई दो-राय नहीं।
बहरहाल, आ गया हूँ फिर से अपने सिवाना। सुबह साढ़े पाँच एक्जेक्ट उतरा था यहाँ। आते ही सोया जो दस बजे पहुँचा मोहन जी की स्कूल मालियों का बेरा में। तीसरी-चौथी-पाँचवी को एक साथ लेकर गणित और हिंदी में काम किया कुछ। यहाँ भी स्तर तो गर्ल्स अपर प्राइमरी मायलावास जैसा ही है। पाँचवी कक्षा ठीक है, चौथी थोड़ी ठीक और तीसरी पर बहुत जरूरत है काम करने की। शब्द और अक्षर पहचानने पर काम किया आज हिंदी में तो और गणित में वो ही गिनती। लंच बाद सातवीं और आठवीं में रहा बारी-बारी से। फिर ऑफिस आकर मेल चैक किये पिछले चार दिनों के सारे ही। बाद में बाल-साहित्य की किताबों पर नम्बर-टेग्स भी लगाये हरीश भाई और मैंने। घर आकर फतेहसिंह जी लोढ़ा के लिए काम किया आज एक छोटा सा और फिर भास्कर पढ़ते-पढ़ते झोंके आने लगे हैं।
मन ठीक नहीं है रोज की तरह। मगर अब कारण समझ आने लगा है। समझ आने लगा है कि मैंने भी कहाँ की है कोशिश इसको ठीक रखने की। किसी और के आने-जाने से मन का ठीक-अठीक रहना कभी भी ठीक नहीं। और अगर ये नहीं है ठीक, तो जरूरी भी नहीं है ठीक करना। अब खुद पर ध्यान देना है बस। ईओ-आरओ की डेट आ गई है और आरएएस की वैकेंसी भी आ जायेगी जल्दी ही। बहुत हो चुकी ये बहानों वाली जिंदगी...
- सुकुमार
05-12-2022
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