सिवाना डायरीज - 113

 सिवाना_डायरीज  - 113


"अचार भी प्रेम है।"

- असिस्टेंट प्रोफेसर साहब और हमारे बड़े भैया विष्णु शर्मा जी की डायरी पढ़ रहा था। कई बार सारा का सारा और कई बार नाम मात्र का, रोटी के साथ प्रेम का ही तो काम है अचार का। कितने खूबसूरत तरीके से समझाया है विष्णु जी ने अचार और प्रेम को। मेरी दृष्टि में भी प्रेम की परिभाषा यही है, वो अलग बात है कि मैं खुद नहीं चल पा रहा उस पर। अब से कोशिश रहेगी कि इस पर ही काम करूँ।


बहरहाल, अब से हर दिन अच्छा ही जाने वाला है अपना। क्योंकि अपन खुद के लिए जीना शुरू कर रहे हैं अब। बहुत हो गया सबकी चिंता करना। खूब हो गया सबके मन रखना। अब बस खुद के लिए। सुबह उठकर घर की तो कर दी सफाई, अब मन की भी करनी ही है। गर्ल्स अपर प्राइमरी स्कूल, मायलावास रहा दिन भर। अपने विनोद जी वाली स्कूल। प्राथमिक वाले तीनों टीचर्स के साथ बैठा आज। सब्जेक्ट डिसाइडेशन वाला काॅल्ड-वार खत्म किया। लंच के बाद आ गया ऑफिस। बीच में गाड़ी भी धुलवाई एक सर्विस सेंटर पर। शाम पाँच बजे एक नई लाइब्रेरी शुरू की है हरीश भाई ने बच्चों के लिए। वो सवा चार बजे ही आ गये बच्चे। भारी काम है उनको शांत रखना। सवा छः बजे मैं भी निकल लिया ऑफिस से घर के लिए। बेडशीट और टाॅवेल भिगो रखे है सर्फ के पानी में। अभी नहीं कर पाया साफ। अब कल ही होंगे।


मन ठीक रहा। इसके पास अब कोई विकल्प भी नहीं है। कोई सम्भावना है ही नहीं अब इसके लिए सब-कुछ ठीक हो जाने की। देखते हैं, क्या होता है जिंदगी में आगे। अभी तो गुड नाईट...


- सुकुमार 

06-12-2022

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