सिवाना डायरीज - 115

 सिवाना_डायरीज  - 115


अकेला बैठा हूँ। सोच रहा हूँ किस नम्बर पर लगाऊँ काॅल, जहाँ उड़ेल सकूँ खुद को। जिंदगी के सफर में जिस-जिस से खुद को हारा, वो अपनी जीत के जश्न में कुचलता गया मुझे। वैसे ये सब गलतफ़हमी है मेरी। सच्चाई तो यही है कि मुझसे ही न सम्भाला जा सका प्यार। केवल बातें ऊँची-ऊँची कर लेने से आदमी महान थोड़े बनता है। खरी-खरी बात तो यही है कि सब मेरे कारण ही हुआ है। मेरी जिंदगी का हर वो पल जो परेशान कर रहा है, उस सबका कारण मैं हूँ। जितना बनाया है, अगर वो मैंने बनाया है। तो फिर जितना धँसा है, वो भी मेरा ही किया-धरा है। ज्यादा सोचूँ तो माथे की नस फटने लगती है आजकल। पश्चाताप की आग में जलाकर मार देना चाहता हूँ खुद को। जानें क्यों, इतनी नेगेटिविटी आती जा रही है आजकल। सच में मनोहरा का जाना, मुझे रोज मार रहा है धीरे-धीरे। डर लगने लगा है कि एक दिन बुझ जायेगा ये दीप और धरे रह जायेंगे सब-कुछ रोशन कर जाने के इसके सपने।


बहरहाल, इस सप्ताह का चौथा दिन ठीक रहा अपना। अर्द्धवार्षिक परीक्षाएँ शुरू हुई है आज से उच्च प्राथमिक कक्षाओं की। हरीश और मैं पहली बार सिवाना के गवर्नमेंट काॅलेज गये थे आज। नियमित प्रोफेसर गिरधारी जी तो जोधपुर थे एक कार्यशाला में, एडहाॅक प्रोसेसर्स से मिलना हुआ। वहाँ से नरपत जी की लुदरड़ा वाली स्कूल और वापस आते हुए बिजलिया में सोनी जी की स्कूल जाना हुआ। डिम्पल का बर्थ-डे था तो अपने स्टेटस पर भी लगाकर थोड़ा तुफान लाया मैं अपनी ही जिंदगी में। ऑफिस आकर दो प्रिंट-रीच बनाई आज काफी दिनों बाद। वहाँ से निकल पास्ता और पनीर राॅल निपटाये आज फिर हरीश भाई के साथ। घर आकर बस बिस्तरों में हूँ।


मन कै टाईम ही नहीं मिला कुछ सोचने के। वैसे भी इसे अब खुद के लिए सोचना है। बाकि गुड नाईट अभी तो...


- सुकुमार 

08-12-2022

Comments