सिवाना डायरीज - 116
सिवाना_डायरीज - 116
'आने वाली पीढ़ियाँ मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस का ऐसा कोई कभी इस धरती पर चला था।'
- महात्मा गांधी के लिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन का सोचना था ये। आचार्य प्रशांत को सुन रहा था आज मैं गांधीजी के विषय पर। काफी हद तक सहमत हूँ मैं उनकी बातों से। बकौल आचार्य प्रशांत- "किशोरवय में मैं स्वयं भी बहुत परेशान रहा हूँ गांधीजी को सोच-सोचकर। कितनी ही जगह असहमत भी रहा हूँ उनके विचारों से। उनके कितने ही निर्णय आज भी ठीक नहीं लगते मुझे। मगर उन्हें कोई महात्मा, बापू या राष्ट्रपिता कहने लग जाये, उनका आग्रह नहीं रहा कभी भी। एज ए ह्युमन-बींग उनके एक जीवन से हमें इतना तो सीखने को भी मिल ही जाता है कि सीखने के लिए शायद उम्र ही कम पड़ जाये।"
बहरहाल, अपने दिन पर आते हैं। संतोषी माता का शुक्रवार हुआ करता था कभी मेरे लिए ये दिन। आज वीक का ऑफिसियली लास्ट वर्किंग-डे होता है बस। सवा तीन बजे एक्जेक्ट उठ गये थे आज अपन। दो घंटे पढ़ने के बाद दैनिक कामों में लग गए। चुकंदर नाश्ते में सुहा नहीं रहा पेट को और उनको ऐसे ही खराब होने देना मन को कभी नहीं जँचता। माॅर्निंग-वाॅक फिर से शुरू की है आज से। हायर सेकंडरी स्कूल मैदान में गया था रनिंग के लिए। आकर तैयार होकर अपनी फेवरेट स्कूल निम्बेश्वर पहुँच गए अपन समय पर। दिन-भर में दो-तीन कविताओं पर काम किया, एक कहानी पर और कुछ गतिविधियों पर। निम्बेश्वर महादेव जी के भी जाकर आया आज दुदाराम जी के साथ। अद्भुत स्थल है आशुतोष भगवान का। शाम को ऑफिस आकर दो कविताएँ और लिखी चार्ट्स पर। खाना हरीश भाई के साथ भैरव होटल पर निपटाया और फिर दूध-जलेबी भी खा ली। मतलब ना कि कुछ भी नहीं छूट रहा आजकल खाने-पीने में। रात के नौ-साढ़े नौ पहुंच रहा हूँ घर आजकल।
मन का नहीं पता चल रहा कुछ भी। पिछले पाँच-छह दिन तो बस निकले ही हैं इसके। मन कर रहा है कि कहीं जाकर छिप जाऊँ सबसे कुछ दिनों के लिए। अभी बस बिस्तरों में हूँ। शुभ रात्रि...
- सुकुमार
09-12-2022
Comments
Post a Comment