सिवाना डायरीज - 118

 सिवाना_डायरीज  - 118


'पूछ लेते वो बस मिजाज मेरा,

कितना आसान था इलाज मेरा।

मैं मोहब्बत की बादशाहत हूँ,

मुझ पे चलता नहीं है राज मेरा।।'

- फहमी बदायूँनी जी का शेर मुझे खुद की याद दिला देता है। याद दिला देता है कि कोई हाल-चाल पूछ ले। कोई पूछ ले कि सच में ठीक हो ना! कोई पूछ ले कि मन से भी ठीक हो ना! इंतज़ार भी करूँ या नहीं, बीच में रहता हूँ। और इसी बीच में, हमेशा इंतजार भी करता रहता हूँ। इंतजार उसका जो कहकर गया है कि धरती इधर से उधर हो जाये, वो फिर से नहीं लौटेगा। इंतज़ार उसका जो बस इंतज़ार रह जाना है। न जाने क्या होगा, कुछ भी नहीं पता! लोगों को सम्भालने के लिए जाना जाता हूँ, खुद भटक रहा हूँ।


बहरहाल, रविवार छुट्टी के दिन जैसे जल्दी ही निपट गया। सुबह क्रिकेट खेला सिवाना बड़ी स्कूल में आज। मजा आया। लौटकर घर के छोटे-बड़े काम निपटाये और पहुँच गया दो बजे ऑफिस। टीचर्स को बुलाया था हरीश भाई ने शंका-समाधान और टीएलएम गाइडेंस के लिए। चार बजे के लगभग हिंगलाज माता के गये आज सब लोग। परिवार सहित सुरेश भैया, हरीश, एक भैया रोहित राठौड़ और अपन। वापस आकर डुग्गू और बब्बू के साथ पिज्जा निपटाया रमेश मार्केटिंग वालों के यहाँ और फिर भाभीजी के यहाँ बाजरे के सोगरे। सिवाना आने के बाद पहली बार बाजरे के सोगरे खाये जोरदार वाले गुड़ और सब्जी के साथ। वहाँ से लौटकर अब बिस्तरों में हूँ।


मन ठीक रहा क्योंकि इधर-उधर होने नहीं दिया। ऑफिस के एक गमले में एक गुलाब खिलने को है। मैं इसे अपनी जिंदगी से जोड़कर देख रहा हूँ। जाने क्यों! चलो अभी शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

11-12-2022

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