सिवाना डायरीज - 119
सिवाना_डायरीज - 119
"मेरी बाइक की पिछली सीट जो अब तक अकेली है,
इधर लगता है उसने कोई ख़ुशबू साथ ले ली है !
मगर इस बीच मैं बाइक पे जब-जब बैठता हूं तो,
मुझे लगता है कांधे पर कोई नाज़ुक हथेली है !!"
- इमरान प्रतापगढ़ी जी की लाईन्स है ये। पहली दफा ही यूँ लगा कि मैं थोड़ी और ठीक लिखने लगूँ शायरी, तो लिख लूँगा ऐसी भी। दो-तीन दिन से काफी जिक्र सुन रहा हू उनका तो, आज सर्च मार लिये गूगल और यू-ट्यूब पर। राज्यसभा सांसद है कांग्रेस की तरफ से नये-नवेले। मुझे अच्छा लगा एक डिबेट में उनको सुधांशु त्रिवेदी जी से बहस करते देखते। जैसे-तैसे कोई आया है कांग्रेस की तरफ से थोड़ी ढंग से बहस करने वाला।
बहरहाल, नया सप्ताह हो गया है शुरू। नाश्ते में कुछ नहीं खाया आज और निकल लिया मैं स्कूल विजिट पर। लौटते-लौटते भूख ने हालत खराब कर दी। उच्च प्राथमिक विद्यालय, मालियों का बेरा जाना हुआ आज। तीनों टीचर्स को साथ लेकर बैठा। अपनी बात ढंग से कह दी आज। अपर प्राइमरी में परीक्षाएँ चल रही है धड़ल्ले से। मोहन जी उसी में बिजी रहे। घर आकर मेगी बनाकर खाई। शाम को ऑफिस से निकलने के बाद हरीश और मैंने चाउमीन और दूध-जलेबी भी निपटाई। अभी मन को सारे टार्गेट कल से शुरू करने का दिलासा दे बिस्तरों पर हूँ बस। वैसे किरण भैया के साथ नाईट-वाॅक पर भी जा आया आज तो।
मन ठीक है। कुछ और अच्छा करने का सोचे जा रहा है। परेशानी यही है कि ये सोचता ही है बस। खैर, ईश्वर करे सब ठीक हो और जल्दी से हो। बाकि जय-जय...
- सुकुमार
12-12-2022
Comments
Post a Comment