सिवाना डायरीज - 123

 सिवाना_डायरीज  - 123


"एक जिंदगी में आदमी प्रेम करना सीख पाये या न सीख पाये, बस इंसान के इंसान होने की कदर करना सीख जाये। पूरी दुनिया ठीक हो जायेगी।"

- खूबसूरत लग रही है ना बात। कितना सुकून भी दे रही है। मैं भी वक्त की जिस नाव में सवार था। बहुत ठीक लगता था उस नाव में रहना मुझे। नाव की लकड़ी को ही गालियाँ दे दी एक बार मैंने। नाव उलट गई आगे जाकर। सीधी-सपाट बात यह है कि अगर मानवीयता का सम्मान न होगा, तो प्रेम भी जल्दी ही छिटकेगा आपसे।


बहरहाल, लास्ट वर्किंग डे ऑफ दिस वीक। प्लान तो था कि ऑफिस में ही रुककर इयरली रिव्यू लिखेंगे। बट सुरेश भाई बिजी थे तो अपन भी निकल लिये आज हरीश भाई के साथ। दो स्कूल्स में जाना हुआ आज। निर्मला मे'म वाली निम्बला नाडा स्कूल और मेली वाली ही मेघवालों की ढाणी स्कूल। निम्बला नाडा स्कूल बहुत अच्छी लगी सच में। सुंदर सा कैम्पस और पेड़-पौधे खूब सारे। तीसरी-चौथी-पाँचवी के बच्चों के साथ बैठा मैं। खूब हँसे सब मिलकर। मेघवालों की ढाणी स्कूल में भी बाधा दौड़ खेला हमनें। घर लौटकर दाल-टुक्के बनाकर खाये और फिर ऑफिस गया। संतोषी माता का व्रत शुरू किया हैं फिर से। खट्टा नहीं खाना है अब। मगर बाई-मिस्टेक किशमिश दे दी थी आज निम्बला नाडा वाले एक सर ने। घर आकर घूम आये आज थोड़ा सा किरण भैया के साथ। अब नींद भी आने लगी है। कल सुबह बाड़मेर निकलना है।


मन ठीक रहा आज। बांधे रखा मैंने इसे अपने मिशन के खूंटे से। बस अब यही चलता रहे, ऐसी कोशिश है...


- सुकुमार 

16-12-2022

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