सिवाना डायरीज - 125

 सिवाना_डायरीज  - 125


"सुण जीवन संगराम री, एक बात निराधार।

चाले जां की जीत है, सोवें जा की हार।।"

- ऐसे ही गूगल पर पढ़ रहा था कुछ, तो नजर पड़ी इस दोहे पर। बहुत ठीक लग रहा है ये जीवन के लिए। 'चाले जां की जीत है' - सही-सही व्याख्या है जीवन की। मुझे भी अब बस चलते जाना है। बहुत बढ़ा लिया अब इस माथे का भारीपन। अब बस इसे अपनी मेहनत से सरल करना है। 


बहरहाल, आँखें बाड़मेर की होटल कलिंगा में खुली आज। नहा-धोकर रवाना हुए हम सब किराडू मंदिर देखने जाने के लिए। रास्ते में छोले-भटूरे खाने के लिए भी रुके। किराडू मंदिर गजब के हैं। ग्यारहवीं सदी के सोलंकियों का एक बड़ा केंद्र था परमारों का ये शहर। एक लोककथा के अनुसार एक साधु के श्राप से शापित है ये पेराफेरी। रात को आज भी कोई नहीं रुक पाता है वहाँ। खूब सारी फोटोग्राफी के बाद वापस बाड़मेर आये, तब नया परचेज किया अपना ट्राई-पाॅड मिला वहाँ। सागर देने आ गया था रोड़ पर ही। बायतू शाहनवाज भैया के यहाँ खाना खाया और अभी रात आठ बजे तक पहुँच पाया हूँ घर। बिस्तरों पर लेटे-लेटे आगे की सुध ले रहा हूँ।


मन को मंजिल वाले खूँटे पे बांधकर रखा है अभी तक तो। बस वहीं रखना है अब इसे। चलो अभी शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

18-12-2022

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