सिवाना डायरीज - 127

 सिवाना_डायरीज  - 127


"उसको जीने के सिवा और कोई वादा न होगा।

तुम उसे मेरी सुबह कह दो, कुछ भी ज्यादा न होगा।।"

- खूब अंधेरों में भी उजला लगता है प्यार का चेहरा। मैं जब-जब सोचता हूँ प्रेम, मेरे सामने आ जाता है एक मुखड़ा हँसता-मुस्कुराता सा। कई दफा लगता है कि क्यों ना कल्पनाओं में ही निकाल दूँ पूरी जिंदगी, यूँ मुस्कुराहटें सोचते-सोचते। सच में तो यही किये जा रहा हूँ। मगर ये ठीक कहाँ हैं! मुझे करने होंगे ऐसे काम जो खुशी दे पाये किसी को। भैया का बर्थ-डे है आज। मुझे घर की याद आई दिन-भर। कोटड़ी चारभुजानाथ जी के गये थे सब, मुझे भी जाना हैं।


बहरहाल, ऑफिस में ही रहा आज दिन-भर। लेसन-प्लान के आगे एग्जीक्यूशन और टीचर्स-रिव्यू भी तो लिखने थे उस वर्ड-फाईल में। थोड़ा और ठीक करके दिनेश भाई को भेजी फाईल बस। यही हुआ मुझसे दिन-भर में। शाम को बच्चों के साथ डांस भी किया खूब सारा। बोले तो भैया का बर्थ-डे सेलिब्रेट हो गया। हरीश भैया के साथ खाना भी बाहर खाया और लास्ट में गाजर का हलवा भी। कुल मिलाकर दिन अच्छा हो गया।


मन उलझा रहा आज उस एक काॅल के कारण। जख्मी शेर जैसा बर्ताव करने लगा हूँ। कोई छेड़ भी दे तो उसी पर हमला कर दूँ। रोक रखा है खुद को। देखता हूँ जिंदगी कहाँ ले जायेगी...


- सुकुमार 

20-12-2022

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