सिवाना डायरीज - 130
सिवाना_डायरीज - 130
"प्रेम में ठगना बहुत जरूरी है। जब प्रेम बहुत गहरा हो जाता है, तब प्रेमिका प्रेमी को छलिया, ठग और कपटी कहने लगती है। जो जितना बड़ा ठग होगा, वह उतना ही बड़ा प्रेमी।"
- हरिशंकर परसाई जी घर-परिवार-संसार लिखते हैं। कितनी सच्ची बात है ना ये। ये ठग कहलाना कितना मिठा है ना! इस छलिया में कान्हा हो जाना महसूस होता है। इस कपटी हो जाने में भी खूब मजा है। जब प्रेमिका असल में ये उपमाएं देने लग जाये, तो समझिये कि परवान चढ़ रहा है प्रेम।
बहरहाल, शुक्रवार और अमावस एक साथ रही आज। व्रत निभाया अपन ने ढंग से। सुबह आठ बजे ही ऑफिस पहुँचकर कल की मूवी वाली रिपोर्ट तैयार की। उसके बाद डिंपल दीदी की स्कूल राजकीय प्राथमिक विद्यालय, छोटी हिंगलाज जाना हुआ। छोटी सी स्कूल है। छोटी सी से मतलब 20-25 नामांकन वाली। मगर सबके सब बच्चे हँसते-मुस्कुराते दमकते चेहरों वाले। 'गुड माॅर्निंग' के बजाय 'राधे-राधे' बोलते हैं हिंदी के शब्द पढ़ना उन बच्चों को भी आता है, जिनका स्कूल में नामांकन नहीं हुआ अभी तक। खुशमिजाज है सब के सब। खूब सारे खेल, कविता, कहानियाँ और पढ़ाई की बातें हुई। जब आने लगा तो बच्चे कक्षा के दरवाजे पर खड़े हो गये। डिंपल दीदी बहुत अच्छा काम कर रही है इन पर। वहाँ से लौटकर ऑफिस में ही रुका शाम तक। अनुअल डाटा और फील्ड-अड्डा का बचा सारा काम मुझे ही करना है अगले वीक में। दोनों भैया बड़ी बेरहमी से दिये जा रहे थे मुझे ये काम। मूड थोड़ा ऑफ हुआ, मगर हरीश भैया ने तीन-चार शीट्स तो अपडेट करवा ही दी दो घंटों में। शाम को घर आकर खाना बनाया-खाया और अभी घर के लिए बस में हूँ। स्लीपर सीट पर किसी ने तम्बाकू-गुटखा थूका हुआ है तो, सीटिंग सीट ले ली है। भीलवाड़ा वाले एक अंकल मिले हैं पास वाली सीट पर जो मोकलसर एसबीआई में लगे हैं। बस चले जा रही है और सर्दी बढ़ती जा रही है धीरे-धीरे।
मन ठीक है। अब बस भटकते भन से घर का अंतिम दौरा है ये। अब बहुत जरूरी होगा, तभी जाया जायेगा। अभी रेस्ट कर लेते हैं थोड़ा सीट पर ही थोड़ा सिकुड़कर। गुड नाईट...
- सुकुमार
23-12-2022
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