सिवाना डायरीज - 131

 सिवाना_डायरीज  - 131


"बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो।

चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे।"

- निदा फाजली का ये कहना ही बच्चों का असल में विकास है। जमाना जब बच्चों को कंप्यूटर कर देना चाहता है, तब ये कहना ज्यादा जरूरी लगने लगता है। जिंदगी के सबसे हसीन लम्हों को जीने देने के बजाय बच्चों को यूँ बारहमासी मशीन बना देना कहाँ ठीक है! अपने मन वाले सर्वे के मुताबिक नब्बे से ज्यादा प्रतिशत है बचपना छिन जाने वाले बच्चों का। जाने क्या बनाना था और जाने क्या बना रहे हैं हम बच्चों को।


बहरहाल, घर हूँ आज। अपने घर। सुबह से शाम तक बचपना ही जीया आज। बस से आकर सोया तो हूँ ही नहीं। जोया, ईशू, आस्था, कानू और शिवाय से ही घिरा रहा दिन-भर। ईशू, आस्था और शिवाय के स्कूल जाने से पहले ही 'आई एम कलाम' का आधा पार्ट देख लिया हम सबनें। फिर नहा-धोकर मामासा के संयोजन में चल रहे आश्टे-डू-अखाड़े की राज्य-स्तरीय चैम्पियनशिप में जोया और कानू के साथ चला गया। निक्की उधर ही थी तो वह भी साथ हो गई। नाश्ता भी करके आये राहुल की दुकान पर। तनुज मिल गया यहीं। बहुत दिनों बाद मिला तो महसूस हुआ कि बहुत बड़ा और समझदार भी हो गया है वो। शाम को तनीषा और छोटे वाले कानू को भी ले आये हम अपने यहाँ। सबने मिलकर कम्पलीट की 'आई एम कलाम' और फिर डांस करने लगे 'बम-बम बोले, मस्ती में डोले' गाने पर। शाम को सिया भी आ गई तो आँख लगने तक उसी के साथ रहा। बस यही रहा दिन।


मन और मेरा अच्छा होना दोनों ठीक से सध रहे हैं। बस अब लक्ष्य की तरफ धक्का देना हैं खुद को। बाकि सब ठीक है। शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

24-12-2022

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