सिवाना डायरीज - 132

 सिवाना_डायरीज - 132


"भक्त होने की पहली शर्त आदमी का भोला हो जाना है।"

- किसी कथा में सुनी थी ये बात। अपने ज्यादा सोचने वाली और तर्क-कुतर्क करने वाली आदतों के बीच कोशिश कर रहा हूँ कि असल में भोला बन जाऊँ। जिंदगी के हर लम्हें में जहाँ हार-जीत और क्या खोया-क्या पाया में उलझा रहता हूँ मैं, भोला होना जस्ट केवल इसका उलट हो जाना है। कहने-सुनने में कितना आसान लगता है ना ये सब। मुश्किल कितना है ये खुद भोले को भी नहीं पता।


बहरहाल घर पर दूसरा दिन। बबलू और मीनाक्षी भाभीजी की बोलमा का प्रसाद था बीड़े वाली माताजी के। माँ को सुबह जल्दी छोड़कर आया वहाँ। फिर नहा-धो तैयार होकर लगभग 11 बजे सिया के साथ अपन भी वहीं थे। दाल-बाटी खाई भरपेट। अरे हाँ, चूरमा भी। लौटकर आश्टे-डू अखाड़े के समापन कार्यक्रम में गया कि माँ की काॅल आ गई कोटड़ी चारभुजानाथ जी के यहाँ जाने के लिए।मेरा बहुत मन था, तो कल सुबह ही इच्छा जाहिर की थी मैंने। फिर मैं, पापा, सत्तु मामा, बड़े ताऊजी और माधव अंकल सब साथ गये अपनी ही कार में। काॅलेज का दोस्त कैलाश मिला वहीं। साथ में गोल-गप्पे खाये हम दोनों ने। लौटकर खिचड़ी खाई घर पर। भैया छोड़कर गया था अभी हाईवे पर। स्लीपर में लेटा हूँ फिर से अपने सिवाना के लिए।


मन ठीक रहा। एकांत सध रहा है। थोड़ा सा विकार आया था अभी स्लीपर में लेटते ही, मगर फिर सही किया मन। अब सब-कुछ ईश्वर को दे देने का मन है। 


- सुकुमार 

25-12-2022

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