सिवाना डायरीज - 133
सिवाना_डायरीज - 133
'पहले फैसला लेकर फिर संभावनाओं पर विचार करना बिल्कुल वैसे ही है जैसे मन का उत्तर लिखकर फिर प्रश्न में उसके अनुरूप स्थितियाँ बनाना।'
- विकास दिव्यकीर्ति सर का 'फैसले कैसे लें' एपिसोड देख रहा था अभी यू-ट्यूब के उनके नये चैनल पर। लगा कि अनन्त गलतियाँ कर जाते हैं हम अक्सर इस विषय पर। मैंने तो कई की है। एक बार 'सनकी' की संज्ञा भी मिली हुई है और कई बार महसूस हुआ भी है कि हाँ मैं थोड़ा-थोड़ा वैसा ही हूँ। तुरंत निर्णय लेकर फिर हर जगह उसे जस्टीफाई करते रहना अक्सर हर कोई करता रहता हैं। मैं खुद को ठीक करने की कोशिश के कितने भी दावे कर लूँ, असल में मैं भी उनसे इत्तर नहीं हूँ।
खैर, नींद नहीं खुली आज बस में तो थापन तक पहुँच गये लेटे-लेटे ही। फिर आसोतरा जगतपिता ब्रह्माजी की शरण में उतरे। मंगला आरती में भी गया वहीं फिर सवा छः बजे एक भैया की गाड़ी में सिवाना के लिए बैठा। एकांत जो पहले काफी समय से सध हा था, आज फिर हार गया। दिन-भर ऑफिस में ही रहा मैं। उपस्थिति वाला सारा काम लगभग कर दिया है शाम तक। दिनेश भाई बालोतरा बुला रहे हैं परसों से ही। उनका कहना ठीक है कि डाॅक्यूमेंटेशन अंग्रेजी में होना ज्यादा ठीक है और मुझे इस पर ही ध्यान देना चाहिए। लंच में घर जाकर फिर बाफले बने आज। पढ़ाई के नाम पर बस मन में बन रही हैं योजनाएँ। ज़मीन पर कुछ नहीं है।
मन को बांधा है आज। चाहकर भी नहीं दे रहा रिप्लाई। विकास सर को फाॅलो कर रहा है - 'जिक्र क्या, जुबां पर नाम न आये।' बाकि सब ठीक है। अभी तो शुभ रात्रि...
- सुकुमार
26-12-2022
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