सिवाना डायरीज - 137

 सिवाना_डायरीज - 137


"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब-कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।।"

- कबीर जी का दोहा आगे बढ़ने को माॅटिवेट करेगा अब मुझे। सच यह भी है कि धैर्य सबसे बड़ा है। अतीत अच्छी स्मृतियों का गुलदस्ता रहे तो ठीक है, बाकि पीछे खींचने की रस्सी न हो जाये बस। बड़ा लक्ष्य लिया है, तो समय भी बड़ा ही लगेगा। एकदम से जलने वाली आग दो-तीन दिनों की होती है, मुझे साबित करना है कि ये आग आज-कल में जली हुई नहीं है। 2022 अपनी अंतिम सीढ़ियों पर खड़ा है। दरवाजे पर 2023 खड़ा है। देखा नहीं है कि उदास है या मुस्कुरा रहा है। मगर हाँ, जो नहीं मुस्कुराये तो भी मुझे भरनी हैं इसमें मुस्कुराहटें।


खैर, आलस्य में बीता दिन। सुबह से बैठा हूँ वार्षिक प्रतिवेदन तैयार करने में। मगर बहुत परेशान कर रहा है इसका ये फाॅरमेट। ग्यारह बजे के लगभग सिवाना के जैन समाज का क्रिकेट टूर्नामेंट देखने गया था रघुनन्दन जी के साथ। शानदार आयोजन है उनका। उससे पहले ही कमरे की ठीक से कर ली थी साफ-सफाई। लौटकर साजिया बनाया व्रत खोलने के लिए। कथा भी गैस के सामने खड़े होकर ही की आज संतोषी माता की। बाकि दिन-भर में एक-दो चक्कर पाव-भाजी वाले लोभजी के लगा आया। बस यूँ ही निकल गया दिन। नई दिनचर्या बनाई है खुद के लिए। मन तो है कि ये रिज्योलूशन अब केवल कागजी नहीं रहेंगे। बाकि देखते हैं कि कितना बड़ा नौकर हूँ मैं अपनी आदतों का। 


अपने मन का साफ्टवेयर रिबूट होना चाहता है अब। कैनवास पर पुराना लिखा सब-कुछ मिटा देना चाहता है। अब जो भी लिखा जायेगा, सब-कुछ नया और सुंदर लिखा जायेगा बस। शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

30-12-2022

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