मन_एक्सप्लाॅर - 2

 #मन_एक्सप्लाॅर - 2


चौराहे वाले घर की पोळ से जीजी(बुआजी) वाले कमरे के उस छोटे से बारह-पंद्रह फुट के रास्ते में ही मिल जाते थे मेरे साढ़े छः फुट लम्बे फुफाजी। कभी चारपाई पर लेटे, कभी एटलस की अपनी साईकिल निकालते और कभी धूल से सने चमड़े वाले जुत्तों में पैर डालते। जो नहीं मिलते थे तो छाती में जमें साॅफ्ट-स्टाॅन फैक्ट्री के धूल के कण खंसवा देते थे उन्हें। घर के बाहर भी वे दिख जाते थे अक्सर अपनी साईकिल के हैंडल पर दूध की केतली लटकाये, हाथ में लकड़ी की पतली सी डंडी लिये और पीली वाली उस गाय को अपने नोहरे की तरफ ले जाते हुए...


पिछले गुरुवार को फुफाजी चले गये। ये 'चले गये' हमारे यहाँ अनन्त यात्रा का दूसरा नाम है। घर से नोहरे के बीच के रास्ते में ही दबा दिये उन्होंने अपने सारे अरमान, सारे मस्तियाँ, सारी खुशियाँ और दुखड़े-रगड़े भी। आज जब हम सब अपने होने को जस्टीफाई करने में लगे हैं, मैं तो बस यही सोचता रह गया कि एक आदमी जिंदगी से अपनी शिकायतें किये बिना ही कैसे जा सकता है!!!


मुझे कभी-कभी ईश्वर पर भी भरोसा नहीं होता। अजीब प्राणी है वो सच में। जब उसका मन हुआ भेज दिया तार आ जाने को। कई बार वो आदमी को मौके भी नहीं देता ये बता देने का कि आखिर जाने से पहले वो क्या चाहता है! बात अधूरी चीजों की नहीं हैं, ख़्वाब, अरमान, सपनें अगर सभी के पूरे हो जायें तो फिर जिंदगी को पहेली ही क्यूँ कहें हम। मगर अपने हिस्से के मौके तो मिलने ही चाहिए ना आदमी को कि वो भी कुछ बोल सके ऊपर जाकर। मुझे तो यूँ लगता है कि फुफाजी देवताओं के साथ भी वैसे ही जी रहे होंगे इन दस-ग्यारह दिनों से।अपनी मस्ती, अपने अल्हड़पन और अपने ही तरीके से।  चाय दो तो चाय पी ली, रोटी मिली तो रोटी खा ली और कुछ नहीं मिला तो प्याज-मिर्ची से भी काम चला लेंगे। सोफे पर बिठा दिया तो बैठ जायेंगे, कुर्सी दे दो तो भी ठीक और जो कुछ न मिला तो दीवार और ज़मीन के समकोण पर ही बैठ गये उकड़ू। वैसे स्वर्ग में तो फैसिलिटीज ज्यादा होगी ना! मगर फुफाजी को इस सबसे भी क्या। ये तो अपने चोंचले हैं...


सिवाना से फुफाजी की पोळ तक आते-आते तीन दिन का सफर तय किया मैंने। पापाजी जीजी के पास ले गये और जीजी गले लगाकर फफक पड़ी एक बार फिर। इन तीन दिनों में मेरी आँखों में अंतिम शैय्या पर लेटे फुफाजी के बगल में जीजी की टूटती-चुड़ियों और उजड़ते सिन्दूर ने कई बार झकझोरा था मुझे। बात उम्र की नहीं है, बात प्रेम की है। अभी आये बच्चे से लेकर चले जाने को तैयार किसी बुजूर्ग तक, सबकी जिंदगी किसी न किसी प्रेम के भरोसे ही चल रही होती है। किसी को जिंदगी भर खरी-खोटी सुनाना भी उसका अपना प्रेम है सुनने वाले के लिए। भले फुफाजी का अपना कोई मत हो ही ना, मगर जीजी और फुफाजी को हर बार एक ही तरफ खड़े देखा है मैंने अब तलक जिंदगी के हर फैसले में। मेरी जीजी अकेली हो गई है अब। फुफाजी के जिस साये में जीजी जी रही थी, उसे केवल वो ही महसूस कर सकती हैं। अब धूप काटेगी उन्हें भी। हर फैसले में पीछे खड़े इंसान की कमी खलेगी उन्हें। वैसे भी अपने मन के जीवनसाथी के चले जाने का दुख कैसा हो सकता है, ये कोई भी महसूस कर सकता है...


बहरहाल, फुफाजी को कुंकुम पत्रिका आई और वे निकल लिये अपने रास्ते। ये भी न सोचा कि हमारे बुलाने पर वो ऊपरवाला भी आया था या नहीं हमारे किसी उच्छब में। जीजी को तो गुस्सा आ रहा होगा इस बात पर! मगर हो क्या सकता है अब! मेरे फुफाजी जोड़ने के लिए ही बने थे। राग-द्वेष उनको मरते दम तक नहीं छू पाया। इस बार तो उन्होंने जीजी से भी न पूछा और चल लिये उससे भी रिश्ता जोड़ने जिन्हें शायद मैंने कभी उनके साथ नहीं देखा!!!


हार्दिक श्रद्धांजली फुफाजी...🙏


- सुकुमार

02-12-2022

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