मन_एक्सप्लाॅर - 3
मन_एक्सप्लाॅर - 3
मेरे हिस्से के कई तनाव वह अपने कमरे की खूँटी पर टाँगे रखता है। मेरे हाथों की रेखाओं में जो राजयोग बताया था किसी ज्योतिष ने कभी, उसका सपना मेरी आँखों से ज्यादा उसकी कोशिशों में पलता है। मन में कुछ खास कर जाने का बीज बोया भले ही मैंने है, मगर उसे सबसे ज्यादा खाद-पानी उसी ने दिया है। कई बार मिट्टी बदली मेरे मन ने अपनी ही जिद से, अपनी परवाह से मगर उसने सूखने न दिया कभी इस पौधे को।
जिस समाज में रहता हूँ, वयस्क-श्रेणी में आते ही अपना हिस्सा मांगने लगे हैं बच्चे पिताजी से। मगर तीस की देहरी के ऊपर-नीचे खड़े हम दोनों ने खुद को पिताजी का हिस्सा मान रखा है। जब कभी खुद के लिए सोचता हूँ तो हो सकता है उस 'खुद' में मैं अकेला रहूँ, पर उसके खुद में हम सब शामिल रहे हैं हमेशा। मुझे खुद से ज्यादा यक़ीन भी यकीनन उसी पर है कि कभी मैं नुकसान कर लूँ खुद का, मगर वह नहीं होने देगा।
भैया-भाईसाब की हमारी केमिस्ट्री लगभग सबको उलझाये रखती है। बहुत ज्यादा नहीं जानने वाले हमेशा कंफ्यूज रहते हैं कि बड़ा कौन है! मेरा मन हमेशा यही कहता आया है कि दो साल पहले जमीन पर आ जाने के बाद भी शायद मन मेरा उसके इंतज़ार में ही रहा। तभी तो उम्र एक तरफ रखने के बाद जिंदगी के हर मायने में वो मुझसे बड़ा है। एक खास बात यह भी है कि लोग दोस्तों में भाई ढूंढ़ते हैं, मैंने भाई में दोस्त पाया है। तभी तो उसके सामने उड़ेल सकता हूँ मैं मन का सारा कुल जमा...
अभी आँखें बंद कर बस भगवान को थेंक-यू कहने का मन है कि उन्होंने मेरे मन का दूसरा भाई भेजा जमीन पर मुझे सम्भालने के लिए। हमेशा मेरे साथ होने के लिए ढेर सारा शुक्रिया भैया।
जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ...
- सुकुमार
20-12-2022
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