सिवाना डायरीज - 139
सिवाना_डायरीज - 139
जो आ रहा है, यह है या नहीं अपना - के द्वन्द्व के बीच तीस की शाम ही प्रिंट ले आया मैं नये साल के रिजोल्यूशन्स और डेली-शिड्यूल का जनता फोटो काॅपी वाले से। नया साल मनायें - न मनायें, अपना वाला चेत में आयेगा - ये तो फिरंगियों वाला है और इस दिन नया होता क्या है कुदरत में? - इन्हीं सारी उहापोहों के बीच कैलेंडर भी बदल गया पूरे भारत के घरों में। मंदिरों के पुजारियों ने भी 'अपना नववर्ष चैत्र में'' वाला मैसेज फारवर्ड करके ठाकुर जी की मूर्ति को थोड़ा और करीने से सजाया है आज। ऑफिस के सामने वाले छप्पर वाले घर के चौथी क्लास के जीतू ने नहा-धोकर नया कुर्ता पहना है आज। व्हाट्सएप पर सुनामी है पर्सनल वाली विशेज की और ग्रुपों में ज्यादातर में दिनकर जी की 'ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं' वाली कविता इधर-उधर हो रही है। पर्सनल विशेज को मैं भी 'सेम टू यू' को काॅपी करके पेस्ट किये जा रहा हूँ।
सुबह सवा तीन से मशीन बना लिया था आज तो खुद को। राजस्थान की नदियाँ कितना-कुछ समेटे हैं खुद में। उन्हीं का थोड़ा सा सार अपन ने भी समेटने की कोशिश की आज। सुरंगें पानी की भी होती है और वो भी राजस्थान में, सोच का स्तर ही नहीं है इतना तो अपना। इतवार इतवार लगा ही नहीं आज। सुबह नौ से शाम की साढ़े सात हो गई ऑफिस में। सिवाना और बालोतरा ब्लाॅक्स की मीटिंग थी वार्षिक योजना और आकलन को लेकर। दोपहर में गणेश जी के साथ भैरव होटल जा आया लंच करने। शाम को रघुनन्दन जी ने चूरमा-बाटी खिलाकर नया साल बना दिया। शाम होते-होते सधता एकांत फिर निकल गया गलत राह पर। सुबह पढ़ी रामचरितमानस की चौपाइयों का संदेश मन में कहीं न कहीं दबा रह गया। मनोहरा का काॅल अनएक्सपेक्टेड था। बहुत खुश होने की जरूरत भी नहीं मगर। बाकि तो,
'दिन-महीने-साल गुजरते जायेंगे
हम प्यार में जीते प्यार में मरते जायेंगे।'
और देखते हैं नये साल के रिजोल्यूशन्स वाला कागज कब तक नहीं घिसेगा! बाकि जय-जय। स्वागत 2023...
- सुकुमार
01-01-2023
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