सिवाना डायरीज - 140
सिवाना_डायरीज - 140
कंप्यूटर-स्क्रीन पर राईट-हेंड क्लिक कर रिफ्रेश बटन पर क्लिक करना एक नई संभावना देता है कि अब कुछ नहीं अटकेगा। उलझी हुई उसकी जिंदगी में पावर-बटन भी केवल साँसें रोकने के लिए नहीं है, रिस्टार्ट का विकल्प है। घड़ी की सुईयों से निकले वक्त की पीठ पर मेहनत का थोड़ा रेगमाल रगड़ेंगे तो चमक जरूर आयेगी। जिंदगी खेती है, फसल काटकर समेट घर ले जाने के बाद भी जो खेतीहर रोज खेत जाता है, वो खेत अगली बारी दूसरों से ज्यादा निपजता है। हाई-वे पर चलने वाली ट्रकों का अंतिम लक्ष्य उनका गंतव्य होता है, रास्ते में सबसे आगे हो जाना नहीं।
व्यक्ति की विद्वता का प्रमाण उसका आचरण है। चित्तौड़ वाले माणिक जी से बात करना खुद को बूस्ट करना है। एक जोरदार वाले खरे आदमी। इतने खरे कि किसी भी चलताऊ कविता को उसके लिखने वाले के सामने चलताऊ कह दे। कुछेक मसलों को छोड़ दें तो जिंदगी की राह बनाने वाले माणिक। खुद को ठीक करने की कोशिशों में सीकर वाले जय भैया को भी काॅल करके माफी मांग ली आज। करीब सवा घंटा बात कर लेने के बाद एक बार फिर महसूस किया कि अगर नहीं करता काॅल तो जिंदगी के सबसे संजीदा शख्सों में से एक को खो रहा होता। हिंगलाज माता की भभूत एक बार फिर कपाल-केंद्र, ललाट और कंठों पर ओढ़ ली आज। हर बार की तरह एक बार फिर भगवान को भी बहका आया अपने मन की ही तरह। देवली वाले रघुनन्दन जी वाहक बने उसके दर तक ले जाने के लिए आज।
धमाल फिल्म के मानव की तरह महसूस होता है खुद का होना ही कभी-कभी। 'पता नहीं ऐसी सिचुएशन्स में मैं ऑटोमेटिकली आगे कैसे आ जाता हूँ'' वाली। आईआरसीटीसी एप पर बाड़मेर के लिए बालोतरा से ट्रेन तो देखी, पर उसका करेंट रनिंग-स्टेटस न देखा। चार घंटे लेट थी। सुरेश जी और हरीश भाई के सामने चुप ही रहा। पटरियों पर करेंट जहाँ नहीं दौड़ता, उन जगहों पर सड़कें ही अंतिम विकल्प होती है। सिणधरी चौराहे से होटल के लिए ऑटो में बैठते ही आरजे याद आ गया आज। काॅल किया तो आदेश मिला कि जहाँ हो, वहीं उतर जाओ। मैं वहीं आ रहा हूँ। पीजी काॅलेज के गेट पर अपनी काॅलेज वाली जिंदगी की फिल्म्स बना रहा था कि आरजे आ गया।
पाँच साल बाद अपने यार से मिलना बांछे खिला गया सच में। बातुनी मेरे जितना ही हैं आरजे भी, बस जिंदगी को थोड़े सलीके से जीने वाला। बेतरतीबी तो हमारी बातों में थी बस। भाभीजी ने पहले काॅफी पिला फिर हलवा-लापसी और रोटी-सब्जी भी खिला दी, मगर बातें खत्म नहीं हुई हमारी। करीबन दो-ढाई घंटों में बीते पाँच साल नाप लिये हमनें। बाड़मेर की शिक्षा व्यवस्था, घर-परिवार, देश-भर में घूमने-फिरने और मेरी शादी के चर्चे वाली बातों की सारी देहरियाँ छू आये हम एक ही शाम में। जो दो चीजें गौर करने और सीखने वाली थी मेरे लिए, उनमें से एक तो मेरे दोस्त राम का मनमौजीपना और दूसरा भाभीजी का डेडिकेशन अबाउट एक्जाम। सुरेश जी को काॅल करके बता दिया गया है कि कल सुबह डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट में ही मिलते हैं। लगभग साढ़े दस बजे रजाई में घुस जाने के बाद जहन में एक बात आते ही होठ मुस्कुरा रहे हैं बार-बार कि आरजे सच में जिंदगी के सबसे बेहतरीन तोहफों में से एक है मेरे लिए...
शुक्रिया मेरे राम, साथ होने के लिए। गुड नाईट...
- सुकुमार
02-01-2023
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