सिवाना डायरीज - 142

 सिवाना_डायरीज  - 142


कितने खूबसूरत होते हैं ना वे लोग जिन्होंने अपनी खुशियाँ अपनों की खुशियों में खोज ली हो! कितने प्यारे होते हैं ना वे लोग जिन्होंने अपने प्रेम को गले लगाकर विदा किया हो! कितने हिम्मत वाले होते हैं ना वे लोग जो आह तक नहीं निकालते किसी चेहरे पर मुस्कुराहट जोड़ने के लिए जहनी तौर पर खुद पूरा टूट जाने के बाद भी! कितने अलबेले होते हैं ना वे लोग जिन्होंने अपने अल्हड़पन को दबा दिया किसी की जड़ता को अलबेला करने के लिए! कितने मासूम होते हैं ना वे लोग जिन्होंने सब-कुछ पाकर भी लुटा दिया! कितने संजीदा होते हैं ना वे लोग जिन्होंने सबका हँसकर स्वागत किया और हँसकर ही विदा किया! अच्छे लोगों की परिभाषा मेरे लिए बस इतनी सी है कि वो खूबसूरत, प्यारे, हिम्मत वाले, अलबेले, मासूम और संजीदा हो ना हो, प्रेमी हो बस। वैसे भी इंसानियत और मोहब्बत की परिभाषाओं में हेरफेर बस शब्दों का है। 


कृष्णा भैया के ही नाम रही सुबह। दुनिया-भर का सब-कुछ जानते हैं वो। ऐसा उन्हें लगता है। बाड़मेर बस-स्टेंड के सामने वाले की तरफ छोले-भटूरे वाला अड्डा बाड़मेर होने पर सुबह-सुबह का अपना स्थायी पता हो गया है अपना। टाईम पर पहुँच गए थे आज डीआई। पहले सेशन में बातें दूसरों के सम्मान से शुरू होकर अपना स्वाभिमान बचाये रखने तक की हो गई। आने वाले साल की योजना को कुछ और रोचक तरीके से बनाया जा सकता था। खैर, शाम को थोड़ा सा विरोधाभास आज फिर हुआ। वैसी ही अप्रत्याशित एक बैठक आज फिर एक्सटेंड हुई। हर ब्लाॅक के एक साथी का वहीं रुकना हुआ। अपन आ गये हैं सिवाना दस बजते तक। फिक्र रहती है हमारे दिनेश भाई को। कैब ठेठ घर के सामने लाई। 


आज सिवाना वाले घर ऐसे एक्साइटमेंट में आया हूँ जैसे कोई इंतज़ार कर रहा हो मेरा। जबकि कोई भी नहीं है दुनिया में ऐसा। शरीर सो जाना चाहता है थककर मगर कोई घुट्टी हो तो मन को पिलाओ। दूर जा रहे लोगों तक दिन में दस बार जा-आकर भी थकता नहीं है। जाने किसका झूठा पानी पिया है इसने...


- सुकुमार 

04-01-2023

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