सिवाना डायरीज - 143
सिवाना_डायरीज - 143
सेल्फ रियलाइजेशन अच्छी बात है, मगर कब तक करते रहोगे! सेल्फ रियलाइजेशन खुद में इम्प्रूवमेंट की फर्स्ट स्टेप है। बट इसी स्टेप पर खड़े रहकर आसमां थोड़े ही चूमा जा सकेगा। 'मैं अच्छा हूँ', 'मैं अच्छा होने की कोशिश लगातार कर रहा हूँ' और 'मैं सबको खुश रख लूँगा' का ढिंढ़ोरा और कितना पीटोगे? बनके बताओ अच्छा, रखके बताओ सबको खुश और सबसे पहले रहके बताओ चुप। किसी से बात करते हुए पाँचवी लाईन में ये बोल देना जरूरी नहीं है कि 'मुझे लिखने का शौक है।' जिसको पहचानना होगा, वो खुद-ब-खुद पहचान लेगा। क्यों बताना किसी को कि मेरे किताब आ चुकी है एक और एक आने में हैं! अगर समझदार है कोई, तो कभी ठीक नहीं मानेगा इस बिहेव को।
आजकल खुद को ही समझा रहा हूँ अक्सर। कोई मेरे ठीक इंसान हो जाने का इंतजार कर,रहा है शायद और मैं उसे लगातार गलतफ़हमी में रखे हूँ कि मैं बन रहा हूँ। निष्ठा और सत्यनिष्ठा जैसे शब्द बस जीभ से निकल रहे हैं, व्यवहार से नहीं आजकल। अब कोसने लगा है मन खुद को। सुबह से शाम होने का इंतज़ार किसी ढंढ़ूस-कामचोर आदमी की तरह कर रहा हूँ आजकल। ऑफिस में लाइब्रेरी की मिसिंग बुक्स की लिस्ट बनी बस दिन-भर में। और कुछ न हो पाया। फूलण वाले जगदीश जी के घर काॅफी मिल गई आज तो। अपनी गर्लफ्रेंड होती तो शायद इतनी बातें न होती, जितनी आजकल विनोद से करना लगा हूँ। यार हो गया है अपना। सिवाना आने के बाद सबसे खास। एकांत ठीक जा नहीं रहा और समय से पहले ही बिस्तर में हूँ। माथे की नसों का अपना ही द्वंद्व चल रहा है। अभी चुप रहने में ही भलाई है। जय सियाराम...
- सुकुमार
05-01-2023
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