सिवाना डायरीज - 145
सिवाना_डायरीज - 145
शहर सारे एक जैसे होते हैं, बासी और उबाऊ कर देने वाले। आँखें चौंधिया जाती है चकाचौंध से। प्रतिस्पर्द्धा में संतुष्टि मिल ही नहीं पाती वहाँ। चेहरों की बात करूँ तो गाँवों से जो ताजा निकले थे, वे भी सारे बासी हो गये शहरों में आकर। गाँव अपनी बीघा की जमीनों को सिजारी दे, स्क्वायर फुटों वाले कमरों में शिफ्ट हो गये हैं। बड़े-बड़े औरे, उनके सामने कुंदों पर छबल्या वाला झुला लटकाये बरामदे, राजसी फील देने वाले विशालकाय दरवाजे और अपने में मजबूत ईंस और निवार समेटे पोळें आजकल शहरों के 01 बीएचके - 02 बीएचके से छोटी हो गई है। कभी-कभी छोटे शहर भी ठीक लगते हैं मगर वो भी अब मिनी मेट्रोपॉलिटन शहर हो रहे हैं।
सिवाना, समदड़ी, कल्याणपुर, मथानिया, ओसियाँ, लोहावट और फलोदी भी बदल रहे हैं खुद को जोधपुर की तरह हो जाने के लिए। बस का सफर इन छोटे शहरों के विस्तार को देखने का सफर भी होता है। ये देखने का सफर भी होता है कि कौनसा कस्बा राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग से कितना जुड़ा है और कैसे जुड़ा है। ठिठुरती सर्दी में शाॅल सिर पर ढंके सुबह सात बजे शुरू हो गया था अपना सफर। सिवाना बस-स्टेंड से जोधपुर स्थित दल्ले खां की चक्की स्टाॅप तक जोधपुर अपने और पैर पसारता बड़ा शहर ही लगा मुझे। एक नम्बर बस मैन सन-सीटी को क्राॅस करवाकर रायकाबाद बस-स्टेंड ले गई मुझे। बड़ा वाला बैग मुझे भी दिखने में किसी बड़े आदमीं जैसा महसूस करवा रहा था। रोडवेज बस-स्टेंड से अपना नया सफर शुरू हुआ लोहावट के लिए। पहले प्राचीन मंडोर, फिर नेफ्था आधारित पावरप्लांट वाला मथानिया, फिर अपनी बड़ी और ऊँची दीवारों और मंदिर के शिखर से ही दर्शन दे देने वाली सच्चियाय माता के घर ओसियां और फिर अपने जम्भेश्वर भगवान की एक साथरी वाला लोहावट।
पहले तक लोहावट मेरे लिए बस उस एक विशेष मंदिर वाली जगह के अलावा कुछ नहीं था। कभी-कभी छोटी-मोटी जानकारियों में वहाँ के विधायक किशनाराम जी द्वारा गजेंद्रसिंह खींवसर जी को भारी मतों से हरा देना थी। अब से मेरे लिए लोहावट मने मेरा जोधपुर वाला घर है। वहाँ दादीजी और माँ का मिश्रण एक माँ हैं। खूब समझदार और सज्जन रहे दादाजी है। बहुत लाड करने वाली मेरी दीदी कम भाभी है। मुस्कुराते भतीजे शुभम, हर्षित और रोहित है। सात भाईयों और भाभियों का प्रेम हैं। और सबसे खास, मेरे प्रेम भैया है। एक हीरा जो इस जिंदगी में कमाये सबसे खासों में से हैं। लोहावट से लगभग तीन किलोमीटर दूर उस घर में पूरा एक संसार बसता है।
फलों वाली प्लेट में सेब, अमरूद, बादाम, चीकू मेरे इंतजार में थे और मिठाइयों वाली प्लेट गुलाब जामून, चमचम, बिस्किट और नमकीन से पूरा कर रही थी खुद को। अपने छोटे भाई को पूरा सेलिब्रिटी वाला फील दे रहे थे हमारे प्रेम भैया। अनकंडीशन्ल लव है भैया का मुझसे। अपने एक-दो मित्रों को घर बुलवाकर मारवाड़ी पगड़ी भी पहना दी। सच बोलूँ तो मैं कतई इस सब के काबिल नहीं। खूब सारी बातों के बाद हलवा, खीर, दो सब्जियाँ, कढ़ी और रोटियों के अलावा मेरे फेवरेट तले हुए पापड़ ने मुझे मेरी दीदी कम भाभीजी और एक और भाभीजी के सामने नतमस्तक कर दिया। कितना कुछ कर जाते हैं यार इस परिवार के लोग! दीदी बहुत खुश थे कि मैं आज उनके घर आया हूँ। प्रेम भैया और संगीता भाभी राम-सीता से हैं मेरे लिए तो। फार्म-हाउस पर लहसुन, शकरकंद, सरसों, अनार, आम, प्याज और गेहूँ सब-कुछ बो रखा है उन्होंने। पुस्तकें पढ़ने के शौकीन भैया ने मुझे भी एक पुस्तक 'सबकी होती है कोई न कोई कहानी' गिफ्ट की।
शाम से रात फिर प्रेम भैया और दिनेश भैया के साथ सफर में ही हुई। वापस जोधपुर लौटकर हम बड़े भैया सुखदेव जी के घर रुके। बड़े भैया हेड-कांस्टेबल है जोधपुर शहर मे ही। क्या स्नेह दिया उन्होंने भी कि मैं नतमस्तक हूँ अभी तक। भाभीजी के हाथ की बाजरे की रोटी मिल गई शाम को। घी और गुड़ में चूर-चूरकर जो स्वाद लिया, वो अप्रतिम है। खूब खयाल रख रहे हैं ये अपना। उम्मीद है जिंदगी में कुछ अच्छा और बड़ा करके इन सबका सीना और चौड़ा करूँ। प्रेम भैया से बातें करते-करते ही नींद के झोंके आने लगे हैं। सुबह सिलिकाॅन-वैली के लिए फ्लाईट पकड़नी है। बाकि सब ठीक है...
- सुकुमार
07-01-2023
Comments
Post a Comment