सिवाना डायरीज - 147

 सिवाना_डायरीज  - 147


सफल होने के लिए और क्या ही चाहिए! थोड़े बड़े संकल्प, उनको पूरा करने के लिए छोटी-छोटी कोशिशें और उनके हिसाब से बदलती आदतें। कहने-सुनने में क्वोट जैसी हो गई ना बात! मगर जाने क्यों हम कर नहीं पाते हैं। ज्ञान बहुत बाँटते हैं हम सब। मैं इस हम सब में पहला हूँ। सुबह उठकर क्लब हाउस तरफ गया, तो ये भी सबको ढिंढ़ोरा पीट-पीटकर बताऊँगा। होटल गार्डिनिया काॅम्फाॅर्ट्स बहुत शानदार होटल है। तैयार होकर,लगभग बारह बजे पहुँच गये थे हम अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी। एंटर होते ही एक नई तरह की दुनिया दिखी मुझे। बहुत खुलापन है यार यहाँ पर। बातें कुछ भी कर लें, अपने बच्चों को इनके जैसा तो नहीं बनाना मुझे। ज्यादातर लड़कों के बाल 'जऊ' जैसे हो रखे हैं। मानता हूँ ऐसी टिप्पणी ठीक नहीं, मगर इंसान इंसान जैसा तो दिखे। आने वाले पाँच दिन यहीं निकालने हैं हमें। लंच का कुप्रभाव लेकर कैफेटेरिया जा आये हम।


उत्तराखंड, पौड़ी और रावत जैसे कुछ शब्दों से अपनापन लगा। सेम डे जाॅइनिंग और कभी भी चाय नहीं पीना भी समानता रही। अक्स देखने लगा मैं उस चेहरे में अपनी मनोहरा का, मगर शाम होते-होते मैं मुक्त हुआ इन सब फालतू के बंधनों से। दिलिप जी ने लिया आज फाउंडेशन के इतिहास का सेशन। भारी आदमी है वो। प्रेमजी के साथ बैठकर योजना बनाई थी उन्होंने फाउंडेशन की। मेरे राष्ट्रवाद और वैश्वीकरण के प्रश्न को अपेक्षित रूप से टाल दिया गया यहाँ।


ग्रीनरी बहुत हैं यहाँ। पाँचवी बिल्डिंग तक पहुँचने वाले पेड़ है। बस हमारा मन ही नहीं उठ पा रहा अपनी जमीन से। खैर अभी सो जाता हूँ। गुड_नाईट।।।


- सुकुमार 

09-01-2023

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