सिवाना डायरीज - 148

 सिवाना_डायरीज - 148


'रोहित! जो चीजें जैसी है, वैसी स्वीकार करना सीखो। मिल पाना या नहीं मिल पाना आर दि अदर थिंग, आपकी रिलेशनशिप हेल्दी होनी चाहिए। दूसरों को पाने की कोशिशों के बजाय अगर खुद पर ध्यान दोगे, खुद को खुश रखने की कोशिश करोगे तो मुझे लगता है तुम ज्यादा खुश रहोगे।' - सिगरेट मुँह में लिए मेरे रूम-पार्टनर किरण बता रहे हैं मुझे। हर एक कश में जिंदगी की एक कशमकश सुलझाते हुये किरण बहुत अपने लग रहे हैं। क्रिटिकल थिंकिंग, एनालिटिकल थिंकिंग और हायर इमोशनल एक्सप्रेशन जैसी टर्म्स पर भी क्लासेज हो सकती है, ये मैंने पहली बार अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी मे देखा है। किरण भी यहीं के उत्पाद है, तो मेरी छुपाई जाने वाली बात को पकड़कर उन्होंने सिद्ध किया कि पढ़ा-सिखा कुछ भी बेकार नहीं जाता है। 


बहरहाल दूसरा दिन बहुत अनमना-सा निकला यहाँ। आँखें पौड़ी, रावत और उत्तराखंड के उस अक्स में मनोहरा को तलाशती रही। कोशिश मैंने भी कि एक पर्याप्त दूरी रखने की। तरजीह ही नहीं हो जब आपके आस-पास होने की, तो मुझे लगता है आपको हट जाना चाहिए वहाँ से। मैंने ऐसे ही किया। वैसे ऐसे व्यवहार बदलते इंसान मैंने कम ही देखें हैं। पहले दिन और दूसरे दिन में बहुत अंतर रहा। इंट्रो अबाउट फाउंडेशन और यूनिवर्सिटी विजिट थी आज सेशन्स में। नो डाउब्ट, इट इज ऑसम। शाम को होटल लौटकर स्वीमिंग पुल और बैडमिंटन का आनंद लिया और एक बार फिर डी-मार्ट हो आये हम। जिंदगी दौड़े जा रही है और मैं ठहरा हुआ हूँ। मन नहीं लग रहा...


- सुकुमार 

10-01-2023

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