सिवाना डायरीज - 149
सिवाना_डायरीज - 149
ये हम पर है कि हम दुनिया को कैसे देखते हैं! समंदर खारा है, केवल इसलिए उसे कोसा नहीं जा सकता। उसका ही पानी बारिश बनकर हम तक पहुँच रहा है, हमारी प्यास बुझाने के लिए उसका शुक्रिया करना चाहिए...
मैं भी ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता हूँ आज कि उसने ऐसी जिंदगी दी। ऐसी जिंदगी जो हर कोई जीना चाहता है। कौन नहीं चाहता प्लेन्स में बैठना! कौन नहीं चाहता महंगी-महंगी होटल्स में रुकना! कौन नहीं चाहता रोज पनीर और काजू-करी खाना! कौन नहीं चाहता आये दिन नई जगह घूमना! कौन नहीं चाहता खुद को एक्सप्लोर करना! कौन नहीं चाहता नये-नये लोगों से मिलना! खूब शुक्रिया ईश्वर इस तरह के जीवन के लिए।
एक विश्व स्तर के विश्वविद्यालय के कैम्पस में दुनिया के पाँच सबसे बड़े फंडिंग वाली संस्थाओं में शामिल एक संस्था का अंग हूँ मैं भी। एक संस्था जहाँ दुनिया-जहां को देखने-समझने का अवसर मिल रहा है। एक संस्था जहाँ आपकी सुनी जाती है ध्यान से। कई विचारों से असहमत हूँ, मगर उस असहमति के लिए भी जहाँ स्पेस मिलता है। सुबह जल्दी ही जाना था आज होटेल से यूनिवर्सिटी। सबके साथ हो लिया मैं भी। सेशन्स आज यूनिवर्सिटी, पीपल और फिलेंथ्राॅपी पर थे तीनों। जानने समझने के खूब अवसर मिले। शाम को क्लब हाउस में बैडमिंटन खेला हम सबने मिलकर। सोने से पहले जब पूरा दिन देखा तो भाटिया आश्रम की टेस्ट-सीरीज के अलावा कुछ खास हुआ नहीं।
माँ से बात हुई थी थोडी लम्बी वाली। जो कुछ छिपाना चाहता हूँ, उभर-उभर कर आ रही है बाहर। देखता हूँ जिंदगी कहाँ ले जाती है...
- सुकुमार
11-01-2023
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