सिवाना डायरीज - 154
सिवाना_डायरीज - 154 मंजिलें तय की हो किसी और के ही रास्ते! बेतरतीब जिंदगी को इससे ज्यादा और क्या जानिये!!! - सब-कुछ अपना है। लिखा हुआ भी और परिस्थितियाँ भी। उलझा हुआ है सब-कुछ। मन, दिल और शायद रूह भी। कहाँ? - बस यही पता नहीं चल पा रहा। जिंदगी किस मोड़ मुड़ेगी, इसके इंतजार के अलावा और कुछ बस में भी नहीं दिख रहा। आज से फिर शुरू हुये बच्चों के साथ वाले दिन, टीचर्स के साथ वाले दिन। उमसिंह की ढाणी और पीपलून स्कूल्स की अपनी-अपनी समस्याएँ हैं। पहली में टीचर्स एनर्जेटिक नहीं है और दूसरी में इंफ्रास्ट्रक्चर। आज दिन-भर इन्हीं दोनों में रहा। ऑफिस में भी तो आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता और मेंटर-टीचर्स की सेकंड फेज की ट्रेनिंग स्टार्ट हो गई है। नये साल की कई नई योजनाएँ हैं हमारे साथ। कुछ अध्यारोपित और कुछ स्वयंस्वीकार। पिज्जा खा लिया आज एक बार फिर हरीश भाई के साथ। शाम का ऐसा ही चल रहा है। परिश्रम करने की सारी कोशिशें अगले दिनों पर टाली जा रही है और लड़ाई की तारीख पास खिसके जा रही है। जीवन बस चल रहा है और कुछ नहीं... - सुकुमार 16-01-2023