Posts

Showing posts from November, 2022

सिवाना डायरीज - 106

 सिवाना_डायरीज  - 106 "बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो। चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे।।" - निदा फाजली जी का ये शेर बचपन बचाने का पुरजोर आग्रह है। एक युग जिसमें बच्चे बड़े नहीं, मशीन हो जाते हैं। उसमें निदा फाजली जी का ये शेर काफी फिट बैठता है हमारी सारी व्यवस्थाओं पर। सर्दी की छुट्टियों में धूप सेंकना बच्चे जानते ही नहीं ट्यूशन की क्लासों के आगे। गर्मी में इमली तोड़ने जाने का टाईम समर कैम्प निगल गये हैं पूरा। खाना खाकर मोहल्ले की गलियों में दौड़ने वाले बच्चे बाईजू'ज की ऑनलाइन क्लास में हैं। गेहूँ का पीसना डालने बच्चे कहाँ जाते हैं अब! राशन की दुकान पर केरोसिन के लिए लगने वाली लाईन हमेशा के लिए खत्म हो गई है। एक गैस सिलेंडर के जुगाड़ में पूरा रविवार खत्म हो जाता था। मैंने तो कई सारे दोस्त सिलेंडर की लाईन में ही बनाये हैं।  बहरहाल, फिर से स्कूल चले हम। आज दिन-भर थे अपन मायलावास की गर्ल्स अपर प्राइमरी की तीसरी कक्षा के बच्चों के बीच। विनोद जी हैं वहाँ अपने परम सखा। खूब एनर्जेटिक और सहज प्राणी। कह रहे हैं कि आपके आने से बूस्ट मिला है मुझे भी, बाकि मैं...

सिवाना डायरीज - 105

 सिवाना_डायरीज  - 105 "जो एक बार संघ का स्वयंसेवक होता है, वो हमेशा स्वयंसेवक होता है। और हाँ, मैंने उन्हें नहीं छोड़ा, उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मसला ये है कि अब संघ को भी वो ही कार्यकर्त्ता ठीक लगते हैं जो भाजपा को सपोर्ट करे। भले ही वे मंचों से यूँ कह दे कि संघ कार्यकर्त्ता को किसी राजनैतिक दल से कोई मतलब नहीं हैं, मगर ज़मीन पर जो बीजेपी का नहीं, वो संघ का नहीं हो सकता।" - गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और संघ के पूर्व प्रचारक रहे शंकर सिंह वाघेला जी का इंटरव्यू सुन रहा था अभी लल्लनटाॅप चैनल पर। सौरभ भैया कितनी जोरदार तैयारी के साथ जाते हैं इंटरव्यू लेने! ये बात आप साक्षात्कार देखकर खुद ही समझ जायेंगे। शंकर सिंह वाघेला जी से काफी हद तक सहमत हूँ मैं। धरातल पर यही स्थिति है संघ की और पिछले काफी समय से तो संघ और भाजपा में अंतर कहाँ रह गया है! संघ के खंड कार्यवाह अपने वार्ड के पार्षद के साथ फोटो खिंचवाकर स्टेटस अपडेट करने से बड़े बन रहे हैं। खैर, कभी लिखूंगा इस विषय पर और भी। बहरहाल, आ गया हूँ वापस अपने सिवाना। बेग की दोनों लेसेज रात को ही टूट गई थी, आज चप्पलें भी ले गया कोई बस से...

सिवाना डायरीज - 104

 सिवाना_डायरीज  - 104 "संस्कृति में ही एक आदमी, दूसरे का सहारा होता है। इसलिए भी गाँव मुझे ज्यादा प्यारा लगता है।।" - फुफाजी के एक्सपायर होने के बाद बैठक लगी हुई है भुआ के घर के बाहर। हरिजनों के किसी दुल्हे की बिंदोली निकल रही थी बाहर। मैं भीतर था। एकदम से गोर किया कि बेंड की आवाज बंद हो गई है। बाहर आकर देखा तो शांति हो रखी थी। बिंदोली का बेंड और उसमें उपस्थित सब लोग चुपचाप निकल रहे थे वहाँ से। गली के नुक्कड़ से बेंड फिर से बजने लगा और लोग फिर से नाचने लगे। संस्कृति का बस यही भाव मुझे शहरों से दूर और गाँवों-कस्बों के पास खींचता है। लोग कितना सम्मान करते हैं एक-दूसरे के इमोशन्स का।  बहरहाल, घर पर दूसरा दिन पूरा घूमने-फिरने के नाम रहा अपना। घर से तैयार हो पहले अवधेश के यहाँ, फिर मौसी के गया। अवधेश के पापाजी का एक्सीडेंट हो गया था एक छोटा सा। तो खैरियत पूछने गया था। मौसी के यहाँ तो जाना ही था बरखा से मिलने। वहाँ से निपट गिफ्ट चाॅईस से गिफ्ट ले विशाल की शादी में चला गया। खाना-वाना खाकर यतींद्र साहित्य वाले फतेहसिंह जी लोढ़ा के पास गया। थोड़ी देर में खूब सारी बातें कर लेने के ...

सिवाना डायरीज - 103

 सिवाना_डायरीज  - 103 "वो है ही नहीं जब ख्वाहिशों के आसमां में। तो हम भी क्यूँ हैं ऐसे बेकार के जहां में।।" - सब-कुछ ठीक है, मगर कुछ है जो कम लग रहा है। कुछ है जो बहुत अकेला महसूस करा रहा है बार-बार। कुछ है जो एकदम निढ़ाल महसूस करवा देता है खुद को। कुछ है जो मार देता है एकदम से भीतर से। कुछ है जो कुचल देता है सारी ख्वाहिशें। कुछ है जो कम है मिल रहे इत्ते प्यार के बीच भी। बार-बार ये क्यूँ लगता है कि यूँ दूर होना जीवन का सबसे बड़ा नुकसान है! बहुत ऊहापोह में जी रहा हूँ आजकल। कुछ समझ नहीं आ रहा। पल में मन करता है कि अभी ही काॅल कर लूँ और पल में उनकी बताई खुशी याद आ जाती है। आदमी करे तो करे क्या! भरे मेले में अकेला हो जाता है। बहरहाल, लगभग महीने भर बाद घर हूँ आज। दीपावली पर था लास्ट टाईम। फुफाजी का तीसरा है आज। नहा-धोकर जीजी(बुआजी) के यहाँ हो आया। गले लगकर रो पड़ी बुआजी। खुद को स्पेशल महसूस कर ऊब आने लगी है आजकल। पापाजी साथ लेकर जाते हैं, तो उनको बहुत खुशी मिलती है। मगर मैं बाहर हू आजकल। कोई नौकरी कर रहा हूँ। मास्टरों को ट्रेनिंग देता हूँ। ये सब बताते हुए पापाजी अच्छा महसूस करते ह...

सिवाना डायरीज - 102

सिवाना_डायरीज  - 102 "कोयल अपना घोसला कभी नहीं बनाती। वह अपने अंडे दूसरों के घोसले में बनाती है। और जब उन अंडों में से पहला बच्चा निकलता है, वह बाकी बचे अंडों को गिराकर अपना कॉम्पिटिशन खत्म कर देता है। Life is a race. अगर भागोगे नहीं तो पीछे रह जाओगे।" -जिंदगी जीने के कौशल में आज के जमाने में बेहद व्यावहारिक मगर नैतिक धरातल पर बेहद संवेदनहीन डायलॉग है ये थ्री-इडियट्स मूवी का। हारा हुआ महसूस करता हूँ जब व्यावहारिक जमीन पर पाता हूँ खुद को। बाकी रही नैतिक धरातल की बात, वो पूरा ठीक तो नहीं है। मैं जानता हूँ ये बात। बस अब ठीक करनी है। बहरहाल, घर आना था आज। आ गया हूँ। सुबह ऑफिस पहुँचकर सुरेश भाई का बकाया काम निपटाया और फील्ड अड्डा पर टीचर्स अटेंडेंस फिल की। लगभग सवा तीन बजे वाली रोडवेज में बैठकर मोकलसर, रमणीया, बिशनगढ़, जालौर, आहोर, तखतगढ़ होते हुए सांडेराव पहुँचा शाम पौने सात बजे। यहाँ से देसूरी, चारभूजाजी और गोमती चौराहा होते हुए राजसमंद आया और फिर एक टेक्सी में अपने घर। रात को ग्यारह बजे घर आकर खाना खा पाया आज तो। भैया लेने आ गया था हाई-वे पर। फुफाजी रह-रहकर याद आ रहे हैं। माँ आ...

सिवाना डायरीज - 101

 सिवाना_डायरीज  - 101 "साँप ! तुम सभ्य तो हुए नहीं नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया। एक बात पूछूँ--(उत्तर दोगे?) तब कैसे सीखा डँसना-- विष कहाँ पाया?" - कभी-कभी लगता है अज्ञेय जी मुझ पर कर गये हैं ये कटाक्ष। अपने सभ्य और संस्कारित होने की केंचुली जाने कब साथ छोड़ देती है मेरा, मैं खुद ही नहीं जान पाता। सच तो यह है कि जब कोई काफी समय साथ/पास रहकर भी अगर कोई मेरी बड़ाई न करे, तो मुझे अच्छा लगता बंद हो जाता है। मैं इंतजार में होता हूँ कि जहाँ हूँ, वहाँ विशेष रूप से दिख क्यों नहीं पा रहा। अपने लिए ही सोच रहा था आज कि अगर कहीं कोई माॅटिवेशनल स्पीच देने की भी कहे मुझे, तो बोलने को आधा घंटे से ज्यादा कुछ नहीं है मेरे पास। और उसमें भी वही घिसी-पिटी दो-तीन कहानियाँ और एक कविता। सबके सामने प्रेम की ठीक-ठीक परिभाषा देते-देते भी थक चुका हूँ मैं, जबकि खुद उन पर रत्तीभर भी अमल नहीं कर पाता। बहुत बुरा महसूस कर रहा हूँ आजकल। अंदर ही अंदर घुट रहा हूँ।  खैर, दिन बराबर निकले जा रहे हैं। एक और निकल गया एक बुरी खबर वाली सुबह के साथ। फुफाजी शांत हो गये हैं। मम्मीजी का फोन आया था सुबह लगभग साढ़े...

सिवाना डायरीज - 100

 सिवाना_डायरीज  - 100 "रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा। जैसे कोई चुटकी ले नर्म-नर्म गालों में।।" -बशीर बद्र जी का शेर है ये और पता नहीं क्यों पर कल से मैं बड़ा रोमेंटिक हुए जा रहा हूँ अकेले में ही। एक कविता की चार लाईन्स के बाद हरीश भाई भी बोल उठे की लक्षण ठीक नहीं दिख रहे तुम्हारे। महसूस कर रहा हूँ कि फिर से लौटना ही चाहिए मुझे उस दुनिया में जहाँ बस प्यार है। मैं किसी एक के भरोसे सारा कुछ पा लेना चाहता था। अब संभला हूँ। संभलकर जाना कहाँ हैं, ये अभी भी फिक्स नहीं है, मगर सम्भला हूँ बस।  खैर, सौंवा दिन है मेरा आज फाउंडेशन जाॅइन किये और अमावस्या भी। सुबह-सुबह ही फूलण वाले अपने मंदिर चला गया था। पूरे हवन में बैठा स्टार्ट से लेकर एंड तक। मजा आया। एक बुजूर्ग से बाऊजी चुन्नाराम जी के घर भी गया जो मेरे दादाजी के हमनाम भी है और दिखने में उनके जैसे भी। काॅफी पीकर घर पहुँचा तब तक साढ़े दस हो गई थी आज। उनका बहुत आग्रह है कि कभी छुट्टी के दिन रात को आओ। खूब सारी हथाई करेंगे। यहाँ हथाई से उनका मतलब बातचीत हैं। मारवाड़ी भाषा का शब्द है। घर से आज मैं अपनी वन ऑफ फेवरेट स्कूल निम्बे...

सिवाना डायरीज - 99

 सिवाना_डायरीज  - 99 "मुश्किलें पड़े तो हम पे इतना कर्म कर, साथ दें तो धर्म का चलें तो धर्म पर। झूठ से बचे रहें सच का दम भरें, दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें।।" -गुड्डी फिल्म का है ये गीत और मुझे हमेशा ऊर्जा देता है। जब भी सोचूँ इसकी एक भी लाईन, साहस बढ़ जाता है जिंदगी में कुछ ठीक-ठाक करने का। शतक पूरा होने वाला हैं चूँकि अपना सिवाना आये, तो उत्साहित भी हूँ ही। ईश्वर जिस तरह की ऊर्जा बनाये हैं मुझमें अभी, बस वो जारी रखें। बाकि अपन देख लेंगे। एक मुझे 'भोळा को भगवान' लाईन ठीक लगती है। मैं चाहकर भी भोला नहीं हो पा रहा।  बहरहाल, आज ट्रेनिंग के दूसरे चरण का प्रथम दिन था। हम तीनों में से मेरा फिक्स था ऑफिस में ही रुकना। दोनों बैचों के चार एमटीज से एक भी नहीं आया। सिवाना पीईईओ स्कूल में पीईईओ'ज की मीटिंग भी थी तो। एक तरफ मोटाराम जी और एक तरफ मुकेश जी को तैयार किया फिर अपन ने। लंच से पहले एक तरफ रहा और लंच के बाद दूसरी तरफ। बोल-बोलकर गला बैठ गया आज शाम तक तो। पता नहीं क्यों पर लाईम-लाईट में जाने का शौक हो गया है मेरे को। सच पूछो तो ये सेशन लेना विभाग की या फाउंडेशन क...

सिवाना डायरीज - 98

 सिवाना_डायरीज  - 98 "यहाँ लिबास की कीमत है, आदमी की कम। मुझे गिलास बड़ा दे दीजिए, दारू बेशक कम कर लीजिए।।" -बशीर बद्र जी का ये शेर कितना सच घोटे है खुद में। सच्ची-सच्ची तो हम सब शाॅ-केस ठीक करने में ही लगे हैं अपना-अपना। अंदर से भले कच्चे ही रह जायें। मैं खुद के लिए ज्यादा कह रहा हूँ ये सब बात। सतही पढ़ाई, सतही ज्ञान और सतही सोच हाशिए पर ले जा रही है मुझे और मैं हूँ कि अभी भी ख्वाबों में ही जी रहा हूँ। धरातल पर मैं क्या हूँ, कैसा हूँ - सोचना भी परेशान कर देता है मुझे। मैं कैसा हूँ, ये पूनम रावत से जाकर पूछे कोई। मैं कितना बदतमीज हूँ, श्वेता विश्नोई से जाकर पूछे कोई। अकेलापन कितना घटिया जाता है मेरा, मेरे तन-मन से पूछो। मगर जो भी है, अब सब ठीक करना है। सब-कुछ। बहरहाल, ट्रेनिंग चल रही है ऑफिस में समावेशी शिक्षा की और मैं दौड़ रहा हूँ आज सुबह से ऑफिस और प्राथमिक विद्यालय, पिपलियानाथजी की कुटिया के बीच। लर्निंग असेसमेंट किया आज धन्नाराम जी की स्कूल के बच्चों का हिंदी विषय में। बच्चे बहुत प्यारे हैं सच में। लंच करने ऑफिस ही गया। वहाँ सरकारी रोटियाँ बराबर तोड़ रहा हूँ मैं आजकल। लं...

सिवाना डायरीज - 97

 सिवाना_डायरीज  - 97 "अजनबी रास्तों पर भटकते रहे। आरजुओं का इक काफिला और मैं।।" -ताबिश मेहदी जी का शेर है ये और सबको अपनी-अपनी जिंदगी का लगता है। अब जब हम एकांत के साथ-साथ अकेले भी हैं, तो हमारा भी यही हाल है। रोज हसरतें पनप रही है, और रोज सूरज अस्त भी हो रहा है। कभी खुद को समेटने की कोशिश, कभी किसी के पास हो जाने की और कभी कहीं दिल लगाने की। सारी चल रही है कोशिशें। कितना सही - कितना गलत है ये सब, कुछ समझ नहीं आ रहा। बस वो खालीपन भरना मुश्किल हो रहा है। बहरहाल, रविवार तय था ऑफिस में अपने होने का। हरीश भाई जयपुर गये हैं और सुरेश जी के घर पर काम हैं कुछ। मतलब ना कि फुल-फ्लेश अपन ही रहे आज ट्रेनिंग में कर्ता-धर्ता। घर पर साफ-सफाई पूरी वाली की आज। ऑफिस पहुँचते ही गुलबर्गा से मिलन दीदी की काॅल आ गई। खूब प्रोत्साहित करते हैं वे मुझे आगे बढ़ने को। ढेरों बातें हुई समाज और पर्सनल वाली। राजसमंद वाले डिम्पल दीदी, बिजौलिया वाले कुसुम दीदी, टोंक वाली राधिका जी और केकड़ी वाले नीलम मे'म के साथ बीता फ्री टाईम ट्रेनिंग में ही। सच बोलूँ तो मैअअं गया भी उन के लिए ही था वहाँ। समावेशी शिक्षा ...

सिवाना डायरीज - 96

 सिवाना_डायरीज  - 96 "गर फिरदौस बर-रू-ए-जमीं अस्त। हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त।।" -मुगल बादशाह जहाँगीर ने पहली दफा कश्मीर को देखकर बोला था ये फारसी शेर कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। वैसे राजस्थान का कश्मीर उदयपुर को कहा जाता है और बाड़मेर का हमारे सिवाना को। हमारा सिवाना भी यों कम नहीं है अपनी सुंदरता के मामले में। ड्रोन से कभी कोई ऑवर-व्यू ले, तो बहुत खूबसूरत तस्वीर आयेगी अपने सिवाना की भी। बचपन से जीके में पढ़ते आये हैं कि छप्पन की पहाड़ियाँ बाड़मेर में है, यहाँ आकर जाना कि बाड़मेर के कश्मीर सिवाना में है। कुछ अपनी तरह की अलग ही विशेषताएँ हैं सिवाना कि जो इसे और भी खूबसूरत बनाती है। मसलन नीचे बलूई मिट्टी और ऊपर पहाड़ियों की ऊँचाई, मने न संक्रमण क्षेत्र है ये अरावली और थार का। अनार की खेती इतनी पनपी है पिछले समय में कि लोग करोड़पति हो गये हैं, केवल अनार-अनार से। एक बाऊजी बता रहे थे कि यहाँ के बाजरे का टेस्ट ज्यादा अच्छा हैं सांचौर-धोरीमन्ना से। और वैसे भी पहाड़ियाँ हैं तो महादेव जी हैं ही।  खैर, अच्छा दिन शनिवार का। आज से समावेशी शिक्...

सिवाना डायरीज - 95

 सिवाना_डायरीज  - 95 'हम लबों से कह न पाये, उनसे हाल-ए-दिल कभी। और वो समझे नहीं, खामुशी क्या चीज है।।' -निदा फाजली जी की लिखी और जगजीत जी की गाई एक गजल का पार्ट है ये। हर अंक आदमीं की पीड़ा। जो पूरा मुखर हो उसकी भी। जिसने सामने वाले की तो चूं तक नहीं सुनी, उसकी भी। जिसको जो चाहा मिल गया उसकी भी और जिसको न मिला उसकी भी। आपकी, मेरी, इसकी, उसकी, सबकी। सबके मन का दुख है ये। सच बोलूँ तो जिसे चाहते हैं, उससे सब-कुछ कहना हमेशा बाकी रह जाता है। कुछ-न-कुछ छूट जाता है, जो उसको कहना था। दूर होने से पहले सारी संतुष्टि मिल जाये, पर बातें खत्म हो जाने वाली संतुष्टि नहीं मिल पाती।  बहरहाल, बाड़मेर रहे आज दिन-भर हरीश भाई और अपन। सुबह सात बजे निकल लिये थे सिवाना से बालोतरा के लिए और वहाँ से सौरभ भाई की एर्टिगा जिंदाबाद। कोविड के बाद हुये लर्निंग लाॅस का लर्नर्स असेसमेंट करना है अब, बस इसी पर थी बैठक। शिव ब्लाॅक के काॅर्डिनेटर और अभी बाड़मेर से ही देख रहे महावीर भाई ने लिये सारे सेशन। सेशन शुरू होने से पहले आज अपनी स्वजातीय पूजा जी मुझे दस मिनट का कहकर हाॅल से बाहर ले गई और दो-तीन मिनट की ...

सिवाना डायरीज - 94

 सिवाना_डायरीज - 94 "तू, तू है वही दिल ने जिसे अपना कहा तू है जहाँ मैं हूँ वहाँ अब तो यह जीना तेरे बिन है सजा हो मिल जाए इस तरह, दो लहरें जिस तरह ओ मिल जाए इस तरह, दो लहरें जिस तरह फिर हो न जुदा, हाँ ये वादा रहा..." -आशा भोसले और किशोर कुमार का गाया ये गीत याद आ रहा है आज जाने क्यों बार-बार। माथा भरा रहता है आजकल। खुद को खाली करने के लिए, मन की बात का डायलाग करने के लिए कोई नहीं है पास। बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ। फिर भी ये आशावादी गाना याद आ रहा, देखिए।  खैर, एक और बासी दिन। जिंदगी अपने पहियों पर बस दौड़े जा रही है बस। मैं भी इसी पर टिका हूँ अभी तो। उठकर भी सुस्त ही रहा सुबह भी। नहा-धोकर ऑफिस गया पहले, और बाद में अम्बा दीदी वाली स्कूल। कानसिंह की ढाणी स्कूल हैं शानदार, मगर बहुत पारंपरिक रूप से। हम हर बार बच्चों के नहीं सीख पाने के लिए उनकी सामाजिक स्थिति ठीक न होने की दलील नहीं दे सकते। दलपत जी, अम्बा दीदी और बच्चों के साथ खूब बातचीत हुई। लंच के बाद वही ट्रेनिंग में रहा अपनी होशियारी दिखाते हुए। बहुत उड़ रहा हूँ आजकल। शाम को सुरेश भैया धरा पर ले आये। सही भी है बिना प्लान के...

सिवाना डायरीज - 93

 सिवाना_डायरीज  - 93 'आँखें तुम्हारी दुख भी तुम्हारा थोड़े आँसू दुनिया के भी भर लो। मन मुताबिक न चल रहे हो जब दिन, दिनों के मुताबिक मन को कर लो।।' -बस इसी दौर से गुजर रहा हूँ अभी। कुछ भी ठीक नहीं लग रहा, जबकि खराब कुछ भी नहीं चल रहा। मैं दुनिया के दुखों को कम करने के ख्वाब देखता था एक दौर में। आज अपने दुख इतने बढ़ा लिये हैं कि ये उम्र इन्हें ठीक करने में भी कम ही लग रही। सुकून ढूंढ़ रहा हूँ हर कहीं। जहाँ थोड़ी भी उम्मीद नहीं, वहाँ भी। मशीन कर लिया है खुद को। बस फ्यूल फिल करो और चलाओ इसे।  बहरहाल, वैसा का वैसा दिन, जैसा मैं नहीं चाहता। बहुत उबाऊ और बहुत ही थका देने वाला। निम्बेश्वर स्कूल गया था आज। वही एज युजअल वन ऑफ माई फेवरेट स्कूल। बच्चों के साथ धोरीमन्ना वाली स्कूल के बाल-मेला और गांधी जयंती पर अजीम प्रेमजी स्कूल वाले विडियो देखे लेपटाॅप पर। खूब सारी बातें हुई लर्निंग पर। लंच के बाद ऑफिस आ गया, जहाँ ट्रेनिंग चल रही है न्यूली जाॅइंड टीचर्स की। लंच में आजकल सरकारी रोटियाँ तोड़ रहा हूँ मैं आजकल। जबकि कर कुछ नहीं रहा उसके लिए। दिन-भर बैठा ही रहा बस ट्रेनिंग में। सच बोल रहा...

सिवाना डायरीज - 92

 सिवाना_डायरीज  - 92 'कभी भी अच्छा बनने की कोशिश मत करो। बर्बाद हो जाओगे।।' -थम्बनेल है अवध ओझा सर के एक यू-ट्यूब विडियो का। कंटेंट भी जबरदस्त है उस जबरजस्त आदमी का। प्रेक्टिकल जिंदगी समझा रहे हैं। खास ये है कि उसके कमेंट सेक्शन में मैंने पाया कि उसे देखने वाले सारे लोगों के पास अपनी एक अच्छाई है, जिसका फायदा किसी और ने उठाया है। सोच रहा हूँ इस बात को लेकर रेंडमली भी अगर मैं लोगों के बीच जाऊँ, तो भी यही सीन सामने आयेगा कि सुनने वाले की किसी एक अच्छाई का उसको कितना नुकसान हुआ है। इवन सब के सब लोग, हाँ दुनिया-भर के, यही कहेंगे कि सही में ज्यादा अच्छा आदमी होना ठीक नहीं है यार। सब के पास अपने अच्छे होने के कारण हुई धोखेबाजी की कहानी है। इन सबके बीच मैं केवल यही सोचता रहता हूँ कि अगर सारे आदमी अच्छे हैं दुनिया में, तो बुरा कौन है! खैर, वीक का दूसरा दिन। सुबह-सुबह मालियों का बेरा स्कूल में और फिर नवनियुक्त शिक्षकों की ट्रेनिंग में। मालियों का बेरा स्कूल में मजा आता है सच में। तीसरी और चौथी कक्षा के बच्चों के साथ बात करने का मजा ही कुछ और है। उस स्कूल में हो-हल्ला बहुत होता है बच्चो...

सिवाना डायरीज - 91

 सिवाना_डायरीज  - 91 "Don't judge any book by it's cover." -कितनी सही है ना ये बात! अगर आप सच में मैच्योर है, तो ये गलती वैसे ही नहीं करोगे आप। आदमी पुतला है सच में अच्छाईयों और बुराईयों का। अगर ध्यान से देखो तो कहाँ कोई भी किसी एक सेट में फिट बैठता है। निदा फाजली जी का शेर है ना वो- 'हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी। जिसको भी देखना हो, कई बार देखना।।' इसे मेरी कमी कहो या खासियत, मगर एक बात तो है। मैंने आज तक जिंदगी के सारे प्रयोग खुद पर ही किये हैं। फिर सीखना चाहा है उनसे। तो बात यह है कि मैंने खुद को ही देखा है यूँ कि कितना ही शैतान भरा है मुझमें भी और थोड़ा-बहुत इंसान भी। मेरे मन में आ जाती है कई बार किसी भी तरह से खूब सारे पैसे कमाने की अनैतिक योजनाएँ। मैं खुद के प्रति भी वफादार नहीं रह पाया आज तक और और किसी के प्रति भी। दिल कभी नहीं करता कि किसी का भी दिल दुखाऊँ, मगर क्या पता थोड़ा-बहुत आवेश तो जेनेटिक भी है। मैं कितना सच्चा हूँ, मुझे खुद को संदेह रहता है इस बात पर। कुछ समझ नहीं आता। कई बार लगता है जिंदगी के इकत्तीस साल यूँ ही बर्बाद कर दिये और कई बार लगत...

सिवाना डायरीज - 90

 सिवाना_डायरीज - 90 'जीवन-भर में प्रेरणा देने वाले कई लोगों के साथ-साथ मैं अपनी गर्लफ्रेंड के लिए भी कहना चाहूँगा कि अगर वो नहीं होती, तो शायद मैं फर्स्ट रेंक पर नहीं आ पाता। उसका साथ मुझे हमेशा बूस्ट करता रहा है।' -2018 में यूपीएससी टाॅपर रहे कनिष्क कटारिया का ये सेंटेंस प्रेम वाली मेरी जो परिभाषा है, उसको फुलफिल करता है। मतलब ना कि इससे ज्यादा सकारात्मक और क्या होगा जब सार्वजनिक तौर पर इस तरह की बात कह दी जाये। जब बना था यूपीएससी टाॅपर, तब किसी इंटरव्यू की बात है ये। पर मैंने सुनी सौरभ भैया के लल्लनटाॅप चैनल पर मास्साब अवध ओझा जी के मुँह से। उनकी भी यही परिभाषा है प्रेम की कि अगर वो आपको आगे बढ़ा रहा है, तो वह सही मायनों वाला प्रेम है। बाकि कहानियों का क्या, सबके साथ घटती है। बहरहाल, छुट्टी का दिन था, मगर केवल दस्तावेजों में। घर की साफ-सफाई करके सुबह दस बजे पहुँच गया था मैं ऑफिस यूथ-मीटिंग के चलते। मगर हरीश भाई, भूपेंद्र बन्ना और मेरे अलावा और कोई नहीं पहुँचा।ग्यारह बजे तक सुरेश भैया भी आ गये। यूथ मीटिंग तो हो न सकी, बस बातें ढेर सारी की हमनें। इसी बीच कुरियर वाले का मैसेज भी...

सिवाना डायरीज - 89

 सिवाना_डायरीज  - 89 "ध्यान दो, केवल समय ही नहीं जा रहा, जिंदगी भी जा रही है..." -किसी के व्हाट्सएप स्टेटस में देखा ये क्वोट। शीट पर लिखकर सिरहाने वाली दीवार पर चिपकाने का मन है। जीवन का कटू सत्य भी यही है। खुशमिज़ाजी में जीने और मंजिल तक दौड़ने की कोशिशों में संतुलन बनाना ही पड़ेगा। अपने हिस्से आये अंधेरों का रोना रोने बैठेंगे, तो जिंदगी-भर रोते ही रह जायेंगे। और सच्चाई यह है कि यह रोना भी पूरी जिंदगी हमें ही रोना है। लोग सांत्वना देंगे, उजाले नहीं। उजाले तो हमें ही बटोरने होंगे।  बहरहाल, शनिवार है आज। मेरे अकेलेपन वाला शनिवार। मैं भी बटोरने में लगा हूँ आजकल अपने हिस्से वाले उजाले। सुबह जल्दी उठ लगभग 25 किलोमीटर दूर वाले फूलण गाँव जा आया। गुरू जम्भेश्वर भगवान जी का मंदिर हैं वहाँ। बहुत बड़ा, बहुत ही सुंदर। मैं पहुँचा, हवन भी उसके बाद ही शुरू हुआ था। कल वारने की कोशिश की है मैंने मन के सारे कलुषों को हवन की ज्योति में। शब्दवाणी का मर्म भीतर घुसाने की कोशिश की। पास के देवड़ा गाँव में रहने वाले जगदीश जी अपने घर ले गये। वहाँ काॅफी पीकर फिर आया अपने सिवाना। घर की साफ-सफाई करक...

सिवाना डायरीज - 88

 सिवाना_डायरीज  - 88 "अनुभवों को ही अब गुरू करो। जहाँ हो, वहीं से शुरू करो।।" -उम्र के हिसाब से काफी ठीक-ठाक रहा है मेरा सामाजिक और सार्वजनिक जीवन। खुद को सही सिद्ध करने की कोशिशों में हारता भी गया, तो भी लोगों के सामने उस निर्णय को अपनी विवशता ही बताया। गलतियाँ थी खूब सारी मन भी जानता है, मगर फिर हजारों करते चला गया। ऊपर वाली लाईन अपन ने ही लिखी है अभी। इकत्तीसवें पड़ाव से भी आधा आगे आ गया हूँ उम्र के मगर परिपक्वता केवल बातों में ही रही। मेरे पास वाले सारे लोगों के पास मेरी कोई न कोई कमी या गलती आज भी है और मैं भी भली-भाँति जानता हूँ इस बात को। आज फिर एक इमैच्योरिटी दिखाई और जिस मनोहरा पर इतना लिखा करता हूँ, उसे खो दिया। उसे खोने का दुख कितना होगा, ये तो समय ही बतायेगा। मगर आज तो खुश हूँ थोड़ा क्योंकि वह भी यही चाहती थी। अंत मुस्कुराते करने की सोचा था मैंने आज मगर बात गाली-गलौच पर ही खत्म हुई। कुछ भी खत्म होना सभी के लिए सुखद भी कहाँ होता है। मुझे खुद के बोले पर शर्म महसूस हो रही है। पश्चाताप की आग झुलसा दे मुझे आज तो भी कम है। मैं बस इतना कहूँगा कि मेरे जीवन में इस ट्रेजेडी...

सिवाना डायरीज - 87

 सिवाना_डायरीज - 87 दो क्वोट्स से बात शुरू करता हूँ- "प्रेम कभी गलत हो ही नहीं सकता। प्रेमी या प्रेमिका गलत हो सकते हैं। अगर आपने गलत जगह प्रेम किया, तो इसमें प्रेम की कोई गलती नहीं है। वह गलती आपकी है।" और, "आप खुद को जिस जगह पर प्लेस करते हो, वह जगह डिसाइड करती है कि आपकी वैल्यू क्या है। किसी अच्छे पत्थर की कीमत बाजार में दो सौ रूपये, संग्रहालय में बीस हजार और जौहरी के यहाँ दो लाख हो सकती है। यह आप पर है कि आप खुद को कहाँ पेश करते हो।" -पहला वाला अपने कारोई वाले शिव जी भाईसाहब के स्टेटस से उठाया है और दूसरा वाला आज स्प्रिंगबोर्ड वाली लक्षिता मे'म सुना रही थी। पहली वाली बात पिछले दो-तीन दिनों से निराश-हताश मेरे मन को सांत्वना भी है और सच्चा-सच्चा मोटिवेशन भी। दूसरी बात सच में सोचने लायक है। हम एंवई इधर-उधर भटकते रहते हैं खुद को तश्तरी में लिये किसी की खिदमत में पेश कर देने के लिए। जबकि वही ऊर्जा हमें खुद को और श्रेष्ठ करने में लगानी चाहिए। थ्री-इडियट्स वाले रेंचो का डायलाग सच में सही लग रहा है आज कि - 'सक्सेस के पीछे मत भागो। काबिल बनो। जो काबिलियत तुममें आ...

सिवाना डायरीज - 86

 सिवाना_डायरीज  - 86 "प्रेम मनुष्य को अपनी ओर खींचने वाला चुम्बक है।" -पता नहीं किसने कही है ये लाईन। मगर महिलावास के मालियों का बेरा वाली मिडिल स्कूल के ऑफिस में पुराने लिखे हुए पर सफेद कल्ली पोत दी है किसी पेंटर ने। मेरे अभी के हालातों को पूछे तो पद्मश्री मिलना चाहिए उसे। कतई सहमत नहीं हो पा रहा हूँ मैं उपर्युक्त पंक्ति से। मुझे खुद से दूर कर दिया है प्रेम ने। जाने क्यों? मगर कहना पड़ रहा है। नहीं लग रहा मन सच में कहीं भी। नहीं रहा जा रहा सहजता से। नहीं मिल रहा सुकून। हर तरह के जतन कर देख लिये पिछले कुछ समय से। मैं खुद से बहुत दूर हुआ हूँ पिछले काफी समय से। कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। चेहरे पर हँसी चिपकाये और खुद को समझदार दिखाने का चोला ओढ़े, घूम रहा हूँ दुनिया में। जाने क्यों इस बनावटीपन से बाहर नहीं आ पा रहा हूँ। करूँ तो करूँ क्या! कुछ समझ नहीं आ रहा। खैर, परसों वाला क्रम कल तोड़कर आज फिर बनाने की कोशिश की। उठकर पढ़ तो नहीं सका मगर माॅर्निंग वाॅक पर जा आया। नाश्ते और लंच के लिए एक ही खिचड़ी बना ली थी सुबह-सुबह। अम्बा दीदी वाली स्कूल गया था आज लंच से पहले और लंच के बाद उच्च प...

सिवाना डायरीज - 85

 सिवाना_डायरीज  - 85 "मेरे नैना सावन भादो। फिर भी मेरा मन प्यासा, फिर भी मेरा मन प्यासा।।" -आनंद बक्षी का लिखा और किशोर दा - लता दी का गाया ये गीत आजकल फिट बैठ रहा है अपने पे। गलत हो रहा है या सही! मगर ये जो भी हो रहा है, एक दिन होना ही था। आदमी कब तक भला बैठा रहेगा अपना मन बहलाकर ढलते सूरज को देखता, जबकि भोर सुनहरी लगती हो उसे। मेरे मन को खुश रखने के लिए आखिर वो क्यूँ खराब करे अपना मन रोज-रोज। एक तो ये प्रेम ऐसा है, जिसने अपनी खुद की कोई एक मानक परिभाषा तय नहीं की आज तक। तभी तो एक की तरफ से जो प्रेम दिख रहा होता है, दूसरी तरफ से वो दोस्ती का पहला पायदान भी नहीं। कई दफा मन बहलाने को फ्लर्ट करना भी यही है, और कई दफा पूरी जिंदगी दाँव पर लगा देना भी नहीं। जहाँ ये हो, वहाँ 'लव यू' का उत्तर भी नहीं मिलेगा कई बार और कई बार दोस्ती के पहले पायदान पर भी लेन-देन हो जायेगा। मैं क्यों बार-बार गुजर रहा हूँ यार उसी एक गली से! समझ नहीं आ रहा। बहरहाल, गुरू नानक जयंती है आज। कार्तिक पूर्णिमा भी। त्योहार, त्योहार भी तब ही लगता है जब आप घरवालों के आस-पास हो। बचपने में जी लिये हैं सारे त...

सिवाना डायरीज - 84

 सिवाना डायरीज  - 84 "फिक्र करता है क्यों, फिक्र से होता है क्या? आज कर खुद पर भरोसा, फिर देख कल होता है क्या?" -सूर्यकुमार यादव की बायोग्राफी देख रहा था सुबह यू-ट्यूब पर। उसमें एंकर ने बोली थी ये लाईन्स। याद सी हो गई है। सच में हौसला बढ़ाने वाली भी है। क्या जीवन रहा है यार उसका। अद्भुत-अद्भुत-अद्भुत। रिटायर्मेंट की उम्र हो गई भारतीय टीम में आते-आते। अब इसके लिए उसकी किस्मत को दोष दें, भारतीय क्रिकेट के दुर्भाग्य को या क्रिकेट टीम चयन कमेटी में चुपचाप चलने वाली राजनीति को! ये बात यहीं छोड़ते हैं अभी। सब कह रहे हैं कि नया मिस्टर 360 मिल गया है अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को और इस मिस्टर 360 पर एक खूबसूरत ट्वीट वार्तालाप भी देखने को मिला एबी और स्काई का। हाँ स्काई निकनेम है सूर्य भैया का और एबी मिस्टर 360 का। कुल मिलाकर इन दोनों का जीवन बहुत इंस्पायरेबल है हमारे लिए। खासकर सूर्य भैया मुझ जैसे कभी-कभार हार मान जाने वाले के लिए।  बहरहाल, भारी सिर लेकर उठा हूँ सुबह। मगर हाँ, ठीक टाईम पर। कुछ चिंता हैं, जो खाये जायी रही है। उठकर वाॅक कर आया आज तो सीनियर सेकंडरी स्कूल में। नहा-धोकर ऑ...

सिवाना डायरीज - 83

 सिवाना_डायरीज  - 83 "बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! पूछेगा सारा गाँव, बंधु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, कँपते थे दोनों पाँव बंधु!" -एयरफोर्स के जोधपुर स्टेशन में तैनात अंकित भैया ने भेजा था निराला जी की इस कविता का विडियो। सच में सुनकर मजा आ गया। मैं भी इसी दौर से गुजर रहा हूँ आजकल। समझ ही नहीं रहता कि कहीं बोझ तो नहीं। शायद बोझ ही, तभी तो अहमियत जैसा क-का भी नहीं उस तरफ से! अकेले में होता हूँ तो सिहर उठता हूँ अक्सर। समझ ही नहीं आ रहा कुछ भी। बहुत ही ख़ुशनुमा निकले दिन का अंत यूँ होगा, सोचा न था। माँ-पापा आये हुये थे सिवाना और मैं बहुत खुश रहा दिन-भर। मगर शाम होते-होते दो दिन बाद होने वाला चंद्रग्रहण आज ही लग गया मेरे लिए तो। बहरहाल, सुबह गढ़ सिवाना हो ही आये आज हरीश भाई के नेतृत्व में। माँ-पापा भी पैदल ही चले हमारे साथ। वैसे भी अमृत जहाँ होता है, वहाँ हँसी तो होती ही है। कुछ फोटोज भी लिये ऊपर ही। वापस आकर पोहे खाये सबने और फिर तैयार हुए नाकोड़ा जी जाने के लिए। नाकोड़ा जी सच में अच्छी जगह है और वहाँ का प्रसाद तो सच में अद्भुत। बालोतरा...

सिवाना डायरीज - 82

 सिवाना_डायरीज  - 82 "चौक पुरावो माटी रंगावो आज मेरे पिया घर आवेंगे। खबर सुनाऊँ जो खुशी ये बताऊँ जो आज मेरे पिया घर आवेंगे।।" -मैं इस वाले फील में ही हूँ सुबह से। कल रात को लेट सोने के बाद भी जल्दी उठ गया आज। यही कोई लगभग पाँच बजे। रसोई के सारे सामानों को ढंग से पोंछा और साफ किया। गंदे कपड़े धोये। जिन्हें नहीं पहनता, उन्हें साईड किया। किराणा का खूब सारा सामान लाया। सब्जियाँ और फ्र्यूट्स भी। उन्हें रखने के लिए तीन बकेट्स वाला नया स्टेंड। छः नये प्लास्टिक के डिब्बे। नमकीन और बिस्किट्स और भी बहुत-कुछ। आज अपने माँ-पापा जो आ रहे थे सिवाना वाले घर। बहुत उत्साहित रहा दिन-भर। घर के सारे काम से दोपहर के बारह बजे तक फ्री हो पाया। इसके बाद महिलावास के मालियों का बेरा स्कूल में जा आया। मोहन जी, एकता मे'म और पीटीआई जी के साथ अपने स्केफोल्डिंग प्लान को लेकर चर्चा की। बीच-बीच में पापाजी से बात होती रही कि वे कहाँ तक पहुँचे।  लगभग सवा पाँच बजे अपने अमृत बाबू कार में लेकर आ ही गये सबको। सबमें माँ-पापा, गुड़िया, अमृत, हैप्पी और शिवाय शामिल है। दिनोंदिन खूब शैतान होता जा रहा हैं शिवाय। घर आ...

सिवाना डायरीज - 81

 सिवाना_डायरीज  - 81 "पिता दीन्ह मोहि कानन राजू। जहाँ सब भाँति मोर बड़ काजू।।" -यहाँ बाड़मेर में होटल कलिंगा में ही सुबह-सुबह मेरे वन ऑफ फेवरेट श्री विजयशंकर मेहता जी को सुन रहा था। रामजी कह रहे हैं माँ कौशल्या से ये बात जब दशरथ जी ने आधी रात को बुलाकर अपनी विवशता बताई थी उनको। कल भोर जिनका राजतिलक तय हो और पूरी नगरी इसकी तैयारी कर रही हो, उस व्यक्तित्व के माथे पर एक भी सिलवट नहीं ये सुनकर भी कि सुबह से उसे जंगलों में भटकना है! मुझे लगता है गोस्वामी जी की कलम भी रो पड़ी होगी एक बार तो। स्वयं माँ कैकेयी भी कितनी खुश रही होगी, ये बाद की रामकथा में पता चलता है। लेकिन सबसे ज्यादा प्रसन्न हमारे रामजी थे। प्रसन्न थे कि पिता के वचनों को निभाने का दायित्व मिला है। आज का परिवेश देखता हूँ तो सब-कुछ इसका उलट दिखता है। मैं जहाँ से नेटिवली आता हूँ वहाँ तो पन्द्रह-सोलह साल के बच्चे अपने पिताजी से हिस्सा मांगने चले जाते हैं। उन पैसों से बुलेट, आईफोन और स्कार्पियो तक देखी है मैंने। सोचता हूँ तो मन करता है कि जितना ला पाऊँ रामजी को खुद में, रामजी उतना सामर्थ्य देते रहें। खैर, आज बाड़मेर गणित ...

सिवाना डायरीज - 80

 सिवाना_डायरीज - 80 'जब मैं था तब गुरू नहीं, अब गुरू हैं हम नाय। प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय।।' -कबीर जी कह गये थे मध्यकाल में और अपने राजस्थान में अभी मुझे प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है नये वाले हाईकमान के साथ गहलोत जी और पायलट जी के संदर्भ में। काफी चुप रहे फारूक अब्दुला के जंवाई जी इस बार। खूब हो-हल्ला मचा, पर इधर से उफ्फ तक नहीं की उन्होंने। राजकुमार पैदल ही है अब तक और हाईकमान बदल गये हैं। जो हाईकमान हुए हैं, उनसे बहुत उम्मीदें हैं श्रीनगर के कंवरसा को। अभी जो बोले ये, ज्ञानी टाईप की बात थी। मेरा मानना है कि इनकी आपसी लड़ाई में आम कार्यकर्त्ता परेशान है इनकी पार्टी का। ओसियां की बिटिया रानी और खाचरियावास वाले प्रताप जी सीधे पायलट नहीं बन रहे हैं, लेकिन उनके विमान को धक्का तो दे ही रहे हैं। उधर जोशी जी, कोटा वाले शांति जी और पुष्कर मेले के कर्म-धर्म में व्यस्त धर्मेंद्र बाबू आड़ बनकर खड़े हैं उनके विमान के। बहरहाल, बाड़मेर में दूसरा दिन रहा आज। पूरे दो सत्र ऑनलाइन रहे। तेलंगाना के सांगारेड्डी जिले में ईसीई पर अच्छा काम हुआ है। वहाँ के काॅर्डिनेटर ने ऑनलाइन सेशन लिये...

सिवाना डायरीज - 79

 सिवाना_डायरीज  - 79 दिल चरखे की एक तु डोरी, सूफी इसका रंग हाय। इसमें जो तेरा ख्वाब पिरोया, नींदें बनी पतंग।। दिल भरता नहीं, आँखें रजति नहीं - २ चाहे कितना भी देखती जाऊँ, वक्त़ जाए मैं रोक ना पाऊँ। तु थोड़ी देर और ठहर जा सोणिया,  तु थोड़ी देर और ठहर जा... -सिवाना से बाड़मेर आते हुए नये लड़कों के जैसे राजस्थान रोडवेज की एक सीट पर कानों में इयरफोन ठूँसे बैठा हूँ मैं। बहुत दिनों बाद कुछ सुनने का मन हुआ तो ये चला लिया। कुमार नाम के लिरिक राईटर ने लिखा है ये गीत। गीत कहूँगा तो कम होगा। यूँ कह दूँ कि उन्होंने लिखा है मेरे जैसे कइयों का मन। कुछ-कुछ लिखा हुआ ना, कहीं से भी पड़ जाये कानों में। उतर जाता है भीतर और घर लेता है बाहर से भी। आदमी बस एक तार की चाशनी हो जाता है।  बहरहाल, अब से तीन दिन बाड़मेर शहर की धरती पर लादेंगे अपना वजन। दो दिन तो आंगनवाड़ी कर्मचारियों के साथ काम करने संबंधित प्रशिक्षण है और एक दिन हमारे बाड़मेर की गणित टीम की बैठक। सुबह जल्दी ही निकल गये थे सिवाना से अपन और बालोतरा से सौरभ भाई के साथ बाड़मेर के लिए दूसरी बस पकड़ी। बायतू वाली टीम भी इसी बस में आ ...

सिवाना डायरीज - 78

 सिवाना_डायरीज  - 78 "हेलो, क्यूँ मुँह फुलाये हो दो दिन से?  जो कुछ भी भरा है मन में, बोलो" -इसे उम्मीद थी उससे इन्ही लाईन्स की, मगर थोड़ी मिठास के साथ। "नहीं, नहीं। कुछ भी नहीं। कहाँ फुलाये हूँ मुँह!  ठीक से तो बात कर रहा हूँ तुमसे।" -इसे लगा बात को थोड़ा और खींचने पर शायद वो मिठास भी आ जायेगी। "हाँ, नहीं फुला रखा हैं मुँह! दिख रहा है वो तो जब से जोधपुर से आये हो, तब से ही।" -उधर किसी के नाराज होने पर यूँ कारण पूछ लेना ही चरम है उनके पोलाईट होने का। "थोड़ा ढंग से, मीठेपन से नहीं बोल सकती तुम? जब पता ही हैं तुम्हें तो!" -इधर अब दरकने को था बांध। साफ-साफ कह दिया। "यार विश...तुम जानते हो ना कि मैं ऐसे ही बोलती हूँ।  तुम्हारी तरह उतना साॅफ्ट नेचर है ही नहीं मेरा।" -इस बार उसके ये बोलने में थोड़ा और मीठापन था। "हम्म, मगर फिर भी।  चलो अब गले लगाओ।" -इसका सख्तपना जनरली उसके थोड़े से मीठेपन से ही पिघल जाता है।  "हाँ...लगा लिया। और वो भी कसकर। अब टेसूएँ मत बहाने लग जाना तुम।" -ये महसूस कर रहा था उसका यूँ गले लगाना। "लव ...