सिवाना डायरीज - 106
सिवाना_डायरीज - 106 "बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो। चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे।।" - निदा फाजली जी का ये शेर बचपन बचाने का पुरजोर आग्रह है। एक युग जिसमें बच्चे बड़े नहीं, मशीन हो जाते हैं। उसमें निदा फाजली जी का ये शेर काफी फिट बैठता है हमारी सारी व्यवस्थाओं पर। सर्दी की छुट्टियों में धूप सेंकना बच्चे जानते ही नहीं ट्यूशन की क्लासों के आगे। गर्मी में इमली तोड़ने जाने का टाईम समर कैम्प निगल गये हैं पूरा। खाना खाकर मोहल्ले की गलियों में दौड़ने वाले बच्चे बाईजू'ज की ऑनलाइन क्लास में हैं। गेहूँ का पीसना डालने बच्चे कहाँ जाते हैं अब! राशन की दुकान पर केरोसिन के लिए लगने वाली लाईन हमेशा के लिए खत्म हो गई है। एक गैस सिलेंडर के जुगाड़ में पूरा रविवार खत्म हो जाता था। मैंने तो कई सारे दोस्त सिलेंडर की लाईन में ही बनाये हैं। बहरहाल, फिर से स्कूल चले हम। आज दिन-भर थे अपन मायलावास की गर्ल्स अपर प्राइमरी की तीसरी कक्षा के बच्चों के बीच। विनोद जी हैं वहाँ अपने परम सखा। खूब एनर्जेटिक और सहज प्राणी। कह रहे हैं कि आपके आने से बूस्ट मिला है मुझे भी, बाकि मैं...