सिवाना डायरीज - 46
सिवाना_डायरीज - 46 "My whole childhood is lie...!!!" -बचपन में शक्तिमान और शाका-लाका-बूम-बूम बहुत सच्चे लगते थे। ड्राइंग-पेंटिंग कभी इतनी ठीक नहीं रही, मगर पेंसिल से उकेरा हुआ सच हो जाये - इस चक्कर में ठीक-ठाक कर लेने की कोशिश होती थी। डब्ल्यू डब्ल्यू एफ में देखा था एक बार जब जाॅन सीना ने अपने प्रतिद्वंदी के माथे पर कुर्सी दे मारी थी। लगा था मर ही जायेगा सामने वाला। लहूलुहान भी हो ही गया था। मगर अगली फाईट में फिर उसी तरह आया जैसे यहाँ स्टार्टिग में था। छपा हुआ सारा शाश्वत सत्य लगता था। किताब में कही गई बात ईश्वर द्वारा कही हुई प्रतीत होती थी। मैं तो ये भी सोचता था बचपन में कि लड़कियाँ फिमेल्स के पेट से आती है और लड़के मेल्स के पेट से। चूहे-शेर की बातचीत, कछुए-खरगोश की दौड़, कौए की प्यास और हाथी का दर्जी की दुकान पर कीचड़ फेंकना सब कुछ सच लगता था। इसी तरह और भी अजीबोगरीब कई चीजें थी जो आज जताती है कि बचपन में सच कुछ भी नहीं था। ऊपर वाली लाईन उठाई है आज मैंने लल्लनटाॅप के आज वाले ही एपिसोड से और सोच रहा हूँ कि कितनी सच है ना ये! राजस्थान और कांग्रेस की इंटरनल डेमोक्रेसी में भ...