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Showing posts from September, 2022

सिवाना डायरीज - 46

 सिवाना_डायरीज  - 46 "My whole childhood is lie...!!!" -बचपन में शक्तिमान और शाका-लाका-बूम-बूम बहुत सच्चे लगते थे। ड्राइंग-पेंटिंग कभी इतनी ठीक नहीं रही, मगर पेंसिल से उकेरा हुआ सच हो जाये - इस चक्कर में ठीक-ठाक कर लेने की कोशिश होती थी। डब्ल्यू डब्ल्यू एफ में देखा था एक बार जब जाॅन सीना ने अपने प्रतिद्वंदी के माथे पर कुर्सी दे मारी थी। लगा था मर ही जायेगा सामने वाला। लहूलुहान भी हो ही गया था। मगर अगली फाईट में फिर उसी तरह आया जैसे यहाँ स्टार्टिग में था। छपा हुआ सारा शाश्वत सत्य लगता था। किताब में कही गई बात ईश्वर द्वारा कही हुई प्रतीत होती थी। मैं तो ये भी सोचता था बचपन में कि लड़कियाँ फिमेल्स के पेट से आती है और लड़के मेल्स के पेट से। चूहे-शेर की बातचीत, कछुए-खरगोश की दौड़, कौए की प्यास और हाथी का दर्जी की दुकान पर कीचड़ फेंकना सब कुछ सच लगता था। इसी तरह और भी अजीबोगरीब कई चीजें थी जो आज जताती है कि बचपन में सच कुछ भी नहीं था। ऊपर वाली लाईन उठाई है आज मैंने लल्लनटाॅप के आज वाले ही एपिसोड से और सोच रहा हूँ कि कितनी सच है ना ये! राजस्थान और कांग्रेस की इंटरनल डेमोक्रेसी में भ...

सिवाना डायरीज - 45

 सिवाना_डायरीज  - 45 "Children aren't coloring books. You don't get to fill them with your favorite colors." -खालिद हौसेनी सर का ये क्वोट बच्चों को हमारे पढ़ाने के लिए केवल एक संसाधन मान लेने को मना करता है। सच तो यही है कि अधिकतर शिक्षक अपने-अपने चाक पर अपनी तरह की डिजाइन दे, गड़ लेना चाहता है बच्चों के नाम के घड़े। मगर कोई भी उस मिट्टी से नहीं पूछता कि वह मटका ही होना चाहती है या मूरत। हमने सभ्यता और शिक्षा के जो पैरामीटर्स सेट कर दिये हैं दुनिया में, बच्चे उनको लोहे की लकीर मान ले बस। अगर यह होना ही शिक्षक होना है तो क्षमा करना अभी हमें और जरूरत है शिक्षक होने के लिए जरूरी संसाधन जुटाने की। बहरहाल आज विजिट थी अनीस और राजीव की अपनी एलआरसी में। हमारी सारी व्यवस्था भी चाक-चौबंद थी। कल वाले वाकये से मेरा बाहर आ पाना मुश्किल सा लग रहा था मुझे। जाजम, गद्दियाँ, पानी की बोटल्स और स्नेक्स अपने जिम्मे थे। सबकी व्यवस्था की लंच से पहले। लंच के तुरंत बाद आ ही गये अनीस(बैंगलोर), राजीव(जयपुर), रवि(बाड़मेर) और दिनेश(बालोतरा)। वीटीएफ ऑर्गेनाइज की हमनें 'हमारे विद्यालय में क्रिय...

सिवाना डायरीज - 44

सिवाना_डायरीज  - 44 'आदमी सच और सही बोले, मगर यह जाँचकर कि समय और स्थान उपयुक्त है कि नहीं।' -अपने ही मन की उपज है ये। खुद को जस्टीफाई करने की कोशिश करूँ तो यूँ लगता है कि गलत कहा क्या था? मगर जब खुद के भीतर जाऊँ तो यह भी पाता हूँ कि अगर यह सच और सही है तो पहले निर्धारित किया था क्या मैंने यह भी कह जाने को। जो एकदम से सत्य है, वो ये है कि मेरा बड़बोलापन रहा जिम्मेदार आज मन का मिज़ाज खराब करने को। तो बात यह है कि आज बाड़मेर टीम की सीईओ और स्टेट-काॅर्डिनेटर के साथ मीटिंग में जब अवसर मिला मुझे बोलने का तो कुछ ऐसा ही कह गया मैं जो सच तो है मगर डाइजेस्टेबल नहीं। हाँ, खुद के लिए भी नहीं। मनोहरा की बार कहती है मुझे कि तुम्हें तो स्टेज मिलना चाहिए बस। शिक्षा विभाग में सामान्यतया किसी भी वर्कशाॅप के प्रारंभ में सहजता की कोई गतिविधी करवाई जाती है। मुझे मेरे लिए भी जरूरी लगी वो। बात यह है कि खुद पर काम करना ही चाहिए मुझे। टर्निंग पाॅइंट फील हो रहा है मुझे ये जिंदगी का। देखता हूँ कितना खरा उतरना हूँ अपने ही कहे पर। बहरहाल,  दिन ठीक-ठाक।  सुबह होटल कलिंगा में ही खुली नींद और उठते ही म...

सिवाना डायरीज - 43

 सिवाना_डायरीज - 43 "जो लोग कहते हैं कि ये नहीं किया जा सकता, उन्हें उन लोगों को नहीं टोकना चाहिए जो ये कर रहे हैं।" -जार्ज बर्नार्ड शाॅ साहब का प्रेक्टिकल माॅटिवेशनल क्वोट है ये। एकदम खरा-खरा। हम सब जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे कभी समझदारी के नाम पर तो कभी खुद को माॅर-इंटलिजेंट प्रूव करने की कोशिश में किसी न किसी को रोक रहे होते हैं कुछ बड़ा करने से। "ये काम तो हो ही नहीं सकता। पंद्रह सालों का अनुभव है हमें। खूब कोशिशें की हमनें। मगर नहीं हो पाया। सच तो यह है कि इम्पोसिबल ही है ये" - कहकर किसी नये जोश की धधकती आग पर पानी छिड़क दिया जाता है अपने सीनियर होने का हवाला देकर। "हम सफल नहीं हो पाये थे इसमें। मगर हो सकता है तुम कुछ नये ढंग से करो इसे। वैसे भी कोशिश करने में क्या जाता है" - कहकर साहस बढ़ाने में जाता क्या है अपना! एक ऐसा इंसान जिसे देखकर, जिसे सोचकर हर कोई माॅटिवेट हो जाये, हर कोई मुस्कुरा उठे - क्यों नहीं बन सकते हम। मैं तो इसी व्यक्तित्व निर्माण की इसी प्रक्रिया में लगा हूँ। खैर, नवरात्रि का दूसरा दिन। अनीस जी की विजिट की तैयारियों में बिता पूरा दिन।...

सिवाना डायरीज - 42

 सिवाना_डायरीज  - 42 -हेलो, खाना खाया तुमने? -नहीं, फास्ट है ना आज। नवरात्रि स्थापना का। -ओह, हाँ। मैं तो भूल ही गई थी। बताया तो था तुमने दिन में। फलाहार में कुछ लिया कि नहीं? -खा ली है खिचड़ी। अभी दूध पी लूँगा और... -हम्म...लव यू -लव यू ठू...सुनो, नये वे से प्रपोज करता हूँ आज तुम्हें। इन प्रोपर पाॅलिटिकल मैनर। -अरे! मतलब! मैं समझी नहीं! -कुछ नहीं समझना। तुम तो बस एज्यूम करो कि मैं पैरों में बैठा हूँ तुम्हारे। -क्या बकवास कर रहे हो यार। प्यार का प्रपोजल है ये स्लेवनेस का? -सुनो तो सही। मैं पैरों में बैठा हूँ तुम्हारे और धीरे से बोला - "डियर, क्या तुम मेरी आलाकमान बनोगी?" -हाहाहाहा। आलाकमान! ये होता क्या है यार? खूब सुन रही हूँ आजकल न्यूज में कि आलाकमान के कहने पर गहलोत ने ये किया, आलाकमान ने खड़गे और माकन को भेजा, आलाकमान ने वादा कर रखा है पायलट को सीएम बनाने का, आलाकमान ने विधायक दल की बैठक आयोजित करने की कहा था, आलाकमान ये, आलाकमान वो, फलाणा, ढीकळा, ये वो सब...आखिर होता कौन है ये आलाकमान? -जिसके पास सारी शक्ति हो। -ओह, अच्छा! तब तो मुझे नही बनना तुम्हारी आलाकमान। हम प्यार क...

सिवाना डायरीज - 41

 सिवाना_डायरीज  - 41 साला अभी थियेटर्स में लगी 'ब्रह्मास्त्र' का "केसरिया तेरा इश्क है पिया...", 2015 में रिलीज्ड 'दिलवाले' का "रंग दे तु मोहे गेरुआ..." और 'शादी में जरूर आना' फिल्म का "इश्क का रंग सफेद पिया..." जैसे लिरिक कंफ्यूज किये देते है हमें कि इस़क का रंग कौनसा ठीक है हमार वास्ते!!! इ रंगों का फेर उलझाई रखत है हमार जिंदगी भी। सच बोलूँ तो रंगों के इ मायाजाल मां ही उलझत गई है सारी दुनिया। इ फलां धरम का रंग, इ फलां देस का रंग, इ फलां जाति का रंग, और तो और भगवानन ने भी बांट दिये हैं रंगों में हम। -एक नया शब्द पढ़ा आज डिस्कवरी-प्लस पर देवदत्त पटनायक के एक शाॅ में। वह था - 'असूर्यस्पर्शा', अर्थात वह खूबसूरत लड़की जिसे सूर्य भगवान ने स्पर्श भी न किया हो, अर्थात नितांत गौरवर्ण, अर्थात झाई और छाया गुजरी भी न हो जिससे, अर्थात सन-बर्न की विपदा से कोसों दूर। एक और शब्द पर गौर किया - 'कर्पूरगौरंग' अर्थात कपूर के जैसे रंग वाले, अर्थात अत्यंत धवल, अर्थात पूर्ण गौरवर्ण। महादेव जी का स्मरण करते हुए रोज पढ़ते हैं ये शब्द, मगर ...

सिवाना डायरीज - 40

 सिवाना_डायरीज  - 40 'बरसत हरसत सब लखे, करसत लखे न कोय। तुलसी प्रजा सुभाग से, भूप भानु सो होय।।' -समाजवाद की अनगिन परिभाषाओं और उदाहरणों के बीच आज के दैनिक नवज्योति अंक में कुछ और अच्छी खुराक मिली मुझे। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की ऊपर वाली पंक्तियों का समाजवाद काफी पहले कुमार विश्वास सर के एक उद्बोधन में समझ चुका हूँ। राम मनोहर लोहिया जी ने आधुनिक समाजवाद को अपने ही ढंग से देखा और दिखाया है। मगर जो आज पढ़ा, वो कुछ ज्यादा ही ठीक लगा मुझे। अग्रवाल समाज के प्रणेता महाराज अग्रसेन जी की भी जयंती है परसों नवरात्रि स्थापना के दिन ही। नवज्योति में खूबसूरत लेख आया है आज एक 'जयंती-विशेष' में। बताया गया है कि समाजवाद की एक परिभाषा अग्रसेन जी के समय वांछितों के लिए 'एक रुपया एक ईंट' भी थी। बाहर से आकर नगर में बुने वाले परिवार के लिए नगर का प्रत्येक कुटुम्ब एक रूपया और एक ईंट देगा, जिससे नवागंतुक परिवार अपना समुचित प्रबंध कर सके। अथर्ववेद का एक श्लोक है - 'शत-हस्त समाहार(सहस्त्र हस्त संकिर), जिसका अर्थ है - सौ हाथों से कमाकर हजार हाथों में बांट दो। महाराज अग्रसेन की श...

सिवाना डायरीज - 39

 सिवाना_डायरीज  - 39 'भोजन करके पधारियेगा।' या 'खाना खाकर आये हो या जाकर खाओगे!!!' -साल मुझे ढंग से याद नहीं। शायद 2017 या 2019 8 हो, मगर हाँ, पूजनीय सरसंघचालक जी के भीलवाड़ा प्रवास पर पूरे विभाग के एकत्रीकरण का कार्यक्रम था। एकत्रीकरण में एक भी गाँव न छूटे, इन तैयारियों में थे हम भी सब। ऑफिस से लौटकर शाम को यही कोई 07:30 निकला था मैं अकेला घर से सांगवा, तिलोली और एकलिंगपुरा में सम्पर्क के लिए। ज्योतिष-नगरी कारोई का आबादी क्षेत्र शुरू होने से तुरंत पहले ही दायीं वाली सड़क जाती है सांगवा के लिए। घूम गया। सुनसान सड़क और घुप अंधेरा था। करीबन सात-आठ किलोमीटर गाड़ी चला लेने के बाद भान आया कि शायद खूब आगे आ गया हूँ। आस-पास कोई घर या बस्ती भी न दिखाई दी अंधेरे में। थोड़ा और चलने पर एक कच्चा सा घर दिखा बड़े से दरवाजे वाला। एक पीला लट्टू जल रहा था अहाते में और नीचे पीली लीपी हुई थी। साँकल बजाने पर एक बुजुर्ग सी माता आई पीछे वाले छप्पर से निकलकर। राम-राम कर सांगवा का रास्ता पूछा तो बताने लगी कि एक मील पीछे छूट गया है। मैं धन्यवाद देकर मुड़ा कि वह हमारी मेवाड़ी में बोली - "भा...

सिवाना डायरीज - 38

 सिवाना_डायरीज  - 38 'कुछ लोग जीवन इतना यथार्थ जीते हैं कि दूसरों के चेहरों पर प्रसन्नता लाने के लिए मनुष्य में जो कृत्रिमता आवश्यक होती है, वे उसे भी भूला देते हैं।'  -अजीब सी है ये दुनिया इस मामले में। 'मैं ऐसा ही हूँ। खरा-खरा। किसी को सच्ची बात चुभे तो चुभे।' - बोलकर हम खुद को ही दूर कर देते हैं अपनेपन से। लाॅकडाउन के दौर में वागर्थ में एक प्रसंग पढ़ा था सम्पादकीय में कि दुनिया में झूठ सच के कपड़े पहनकर शासन कर रहा है और सच झूठ के कपड़े पहनकर दुनियाभर में अपनी बात कहता डोल रहा है कि मैं सच हूँ, मैं सच हूँ। मेरा अपना सोचना बस इतना है कि जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं है कि अपना एक रवैया जिसे हम अपना स्वाभिमान भी कह देते हैं, से पूरी जिंदगी ठीक से निकाली जा सके। सौ बात की एक बात यह है कि स्वाभिमान और अहंकार के बीच की पतली रेखा कोई-कोई बिरला ही पाट पाता है। बहरहाल, ठीक-ठाक दिन। कुछ पाया और बहुत कुछ खोया भी। इसी खोने के बाद अपने निर्णय बदले हैं मैंने कई दफा। यूपीएस, थानमाता, हिंगलाज जाना हुआ आज। सरोज मे'म एचएम है पिछले चार सालों से। दस सालों से एक ही स्कूल में हैं वे। कार्...

सिवाना डायरीज - 37

 सिवाना_डायरीज  - 37 वह हिंगलाज माता के मंदिर में था परसों। तभी काॅल आई- "ओये, की होलो?" उसे मजाक सूझी...धीमे से बोला- "हिंगलाज माता मंदिर आये हैं यार।" "हिंगलाज माता! मगर वो तो बलूचिस्तान में है ना?" उसका निशाना ठीक लग रहा था। थोड़ी डर-भरी आवाज में बोला- "हाँ, यहीं...ध्यान ही नहीं रहा यार। गलती से इस पार आ गये हम।" "अरे! मगर बाड़मेर की सीमा थोड़े ही पाकिस्तान से लगती है?" "लगती है। मैप चैक करो तुम। जैसलमेर के बाद सबसे बड़ी सीमा इसी की लगती है।" "ओह, हाँ यार! मगर तुम उधर गये कैसे? किसी ने रोका नहीं तुम्हें? बाॅर्डर भी तो होगी ही?" उसका निशाना सही राह पर था। बोला- "हाँ यार! हम क्या करें? इधर तारबंदी भी नहीं है बाॅर्डर पर। हम तो पगडंडी पर सीधे-सीधे आ गये। वो तो यहाँ मंदिर के पुजारी डांट रहे हैं कि ध्यान क्यों नहीं दिया तुमने? बाॅर्डर पर पत्थर लगे हुए थे कि भारत सीमा समाप्त - पाकिस्तान सीमा प्रारंभ।" "हाँ तो तुम्हें दिखाई नहीं दिये वो पत्थर? अंधे हो क्या तुम?" वह फिर डरा-डरा सा बोला- "पुजारी जी ...

सिवाना डायरीज - 36

 सिवाना_डायरीज  - 36 काॅल पर हाय-हेलो के बाद- "तनु...कुछ कहो ना।" "क्या...?" "कुछ भी। कुछ अलग तरह से प्रपोज करो ना!" "यार...ये कैसी डिमांड है!" एक मिनट सोचने के बाद- "मन...घर में सबके लिए पापा ने एयरटेल फैमिली प्लान लिया है। तुम अपना नम्बर भी उसी में जुड़वाना पसंद करोगी!!!" "हाहाहाहा, तुम भी ना..." "अच्छा ठीक है, एक और नये तरीके से।" "हाँ..." "मन...क्या तुम अपने यहाँ वाले घर के वाई-फाई से रोज नेट चलाना पसंद करोगी!!!" "हे, ये थोड़ा हल्का हो गया।" "ओके, एक और ट्राई।" "हाँ..." "मन...हमारे एयरटेल पोस्टपेड नम्बर्स के बिल्स एक ही एड्रेस पर मंगवाना पसंद करोगी!!!" "हाहाहाहा...क्या बात है आज तुम एयरटेल, मोबाइल, वाई-फाई और इंटरनेट से बाहर ही नहीं निकल रहे!" "जस्ट किडिंग ओ..." "तनु...सबके उत्तर 'हाँ' में हैं..." और फिर दोनों महसूस करने लगे एक दूसरे को अपनी आँखों में। -बातें हैं, बातों का क्या! सोच रहा हूँ कितनी उल-जुलूल बातें हैं न...

सिवाना डायरीज - 35

 सिवाना_डायरीज  - 35 सुबह जब वो उससे मिलने गया। उसके लम्बे बालों में बायीं तरफ दो सफेद बाल दिखाई दिये उसे। वो दोनों भी बाकी की तरह ही सिर के पीछे की तरफ रास्ता बनाते हुये रिबन के सँकरे गोले से निकलकर पीठ पर आजाद झूल रहे थे। बिना कुछ सोचे ही बोल पड़ा वो- "अब समझ आया। मैं सोचूँ इतनी मैच्योरिटी कैसे आ जाती है लोगों में!" उधर से आवाज आई- "मैं समझी नहीं!!!" "कुछ नहीं, घिसना पड़ता है सोने-चाँदी के पत्थरों को गहना होने के लिए।" -बस इतना कहकर वो हँस पड़ा। उधर वो सोचती रही कि आखिर बात क्या हुई...!!! -श्रंगार रस जाने कितने ही भावों में जाने कितने तरीकों से लिखा गया है, हमारे साहित्य में। मगर ढलती उम्र को यूँ अपने नजरिये से सजा देने वाली उन दोनों की ये बातें सुनकर मुस्कुरा उठा मैं भी मन ही मन में। बहरहाल,  आजकल फुल बिजी है अपन। उसी कार्यशाला का दूसरा चरण प्रारम्भ हो गया है। किशोर-किशोरियों में प्रकृति-प्रदत्त आने वाले बदलावों को सम्भालने के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण। पहले दिवस का विषय बिल्कुल गत जैसा था - जेंडर-स्टीरियोटाईप। सेवानिवृत्ति की देहलीज पर खड़े एक सर से कई...

सिवाना डायरीज - 34

 सिवाना_डायरीज  - 34 "तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिले!!!" -सुनते ही अपनी आँखें बंद करके उसने यूँ महसूस किया जैसे वह इस ज़मीन का सबसे उपजाऊ टुकड़ा हो।  "क्योंकि हमें अब मिलना था। यहाँ। इस छोटे से शहर में। पहली बार उस छोटे से पल के लिए। -और ज्यादा कुछ न बोल सका वो। "जानते हो! मेरे लिए आये हो तुम इस शहर में। पहली बार जब बात हुई थी, तभी विश्वास कर लिया था मैंने अपने मन पर।" -वह चुपचाप सुने जा रहा था। "अच्छा ये बताओ आलू-पराठा पसंद है तुम्हें? मैं कल नाश्ते में बनाऊँ!" -'हम्म' के अलावा कुछ न निकला मुँह से उसके कि अगला सवाल आ गया। "दही के साथ पसंद है तुम्हें या अचार के साथ? -अब दस सैकंड सोचकर बोला वो। "तुम्हारे साथ।" -बस यह ही कह पाया वो। "मैं यही एक्स्पेक्ट कर रही थी तुमसे। लव यू। अब सुनो चुपचाप कल सुबह सात बजे से पहले आ जाना ऑटो स्टेंड पर अपना ब्रेकफास्ट लेने। हम पास रह पायेंगे इसी बहाने दो-तीन मिनट। " -उसने हामी भर दी है। 'पराठे लेने जायेगा, तब कौनसी ड्रेस पहनेगा? सुबह नहाकर जाये या ऐसे ही चला जाये? चप्पल पहने या श्यूज प...

सिवाना डायरीज - 33

 सिवाना_डायरीज - 33 'राजनीति में कुछ सच नहीं होता, यही इसका सच है।' -फिल्म ताशकंत-फाइल्स का ये डायलाग मुझे हमेशा सच्चाई दिखाता रहता है। देखो ना, गरीब घर के बेटे मोदीजी अपने जन्मदिन पर चीते छोड़ रहे हैं, और सोने की चम्मच मुँह में लेकर पैदा होने वाले राहुल बाबा पैदल ही है, तिरंगा लहराकर वोट बटोरने वाले केजू भैया गुजरात में कह रहे हैं कि गुजरात माॅडल कुछ नहीं है, जो कुछ है दिल्ली माॅडल है। 'बिहार में बहार है, नीतिशे कुमार है' - नारे वाले नीतिश कुमार जी बिहार को समृद्ध करके अब भारत को समृद्ध करने चले हैं। तेलंगाना राष्ट्र बोलने वाले जी, सी. एस. राव जी अभी भारत राष्ट्र के प्रमुख बनने के सपने देख रहे हैं। ममता दीदी, शरद भाऊ, अखिलेश भैया और केजरीवाल जी भी - सब अपनी-अपनी संभावनाओं की तलाश में हैं पीएम हो जाने की। अपने राजस्थान की बात करें तो कांग्रेस की मीटिंग्स में जैसे कोई न कोई बोल ही देता है - 'सचिन पायलट जिंदाबाद।' वैसे ही खुद को पार्टी विद डिफरेंस कहने वाली भाजपा की बैठकों में भी 'केसरिया में हरा-हरा, वसुंधरा-वसुंधरा' की दबी-दबी सी आवाज आती रहती है। कुछ ख्...

सिवाना डायरीज - 32

 सिवाना_डायरीज  - 32 -"सुनो, एक दिन होगा जब हम पास बैठ एक-दूसरे का दुख अपनी आँखों से रो लेंगे।" -"हाँ, और फिर गले मिलेंगे। मैंने सुना है, दुख ऐसे ही कम होता है। जब उससे थोड़ा भी बाँट लें, जो सारा ले लेना चाहता है।" -"आपको नहीं लगता कि बहुत लेट मिले हम! हमें काफी पहले मिल जाना चाहिए था!" -"नहीं, सब चीजें उनके एक्जेक्ट टाईम पर ही हो रही है। हमें अब ही मिलना था, सो अभी ही मिले हैं।" -"काश, हम अभी भी साथ होते!" -"बट फरिश्ते साथ कहाँ रहते हैं! इतना स्योर हूँ कि रब ने किसी खास मकसद के लिए मिलवाया है हमें।" -और इतनी सी बात करके ही दोनों आज परी लोक की किसी कहानी के पात्र हो गये। सोच रहा हूँ जिंदगी इतनी मुश्किल भी नहीं है, जितनी गंभीरता से हम जिये जाते हैं। चेहरे पर मुस्कान रखो, तो कभी कोई आपको सोचकर बेवजह भी मुस्कुरा सकता है। फिर दुनिया पूछती रहती है - "कौन था वो, कौन था वो?"  खैर, यूपीएस के शिक्षकों की आत्म-सम्मान कौशल कार्यशाला का दूसरा दिन था आज। विषय रहा कि किस तरह बच्चे केवल लुक्स को बेस मानकर अपने आइडियल सेट कर लेते है...

सिवाना डायरीज - 31

 सिवाना_डायरीज  - 31 "स्त्री पैदा नहीं होती, बना दी जाती है।" -नारीवादी लेखिका सिमोन द बोउवार की इस पंक्ति की अक्षरशः सत्यता आज के समाज को देखकर ही लग जाती है। अपने कलिग्स के रूप में केवल पुरूषों वाले संस्थानों में भी काम किया है मैंने और स्त्री-पुरुषों के सामूहिक वाले संस्थानों में भी। मेरा प्रीवियस वर्कप्लेस फुली मैन-ऑरियंटेड था। प्रत्यक्ष और परोक्ष लगभग तीन-चार हजार पुरुष। अकाउंट्स, आईटी या एडमिनिस्ट्रेशन में कोई एक-आध फिमेल एम्प्लोईज के अलावा। केवल पुरुष मित्रों के बीच बैठकर लड़की या स्त्री विषय पर जिस तरह की बातें कर जाते हैं हम लोग, यहाँ शेयर करने में भी शेम फील होती है। और जहाँ तक समानता की बात है, हममें भरा सारा प्रगतिवाद डोलने लगता है जब अपने बेटे के जैसे ही बेटी को नाईट पार्टी की अनुमति देने का फैसला करना हो। हमारा समानीकरण ध्वस्त हो जाता है अपने व्यवहार से ही अपनी पत्नी के होने पर भी जब घर आये मेहमान को पानी पिलाने के लिए ट्रे और गिलास सजानी पड़े। नारी सशक्तिकरण पर हमारा ही दिया वक्तव्य आँखें फाड़कर देख रहा होता है हमें, जब घर आते ही चाय न मिलने पर हम उफन रहे होते ...

सिवाना डायरीज - 30

 सिवाना_डायरीज  - 30 "खेल ही नहीं, दिल भी जितिये। शुभकामनायें..." -एक बल्ले पर अपनी मोहक कर्सिव हिंदी राइटिंग में लिखते हुए वह बल्ला  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कप्तान सौरव गांगुली को भेंट किया सन् 2004 में। सौरव के बगल में ही सचिन, कैफ और सहवाग भी खड़े थे। भारत सरकार की तरफ से वेल-विशेज पार्टी थी भारतीय क्रिकेट टीम को 2094-05 की सीरीज से पहले। भारत-पाकिस्तान के बीच इस क्रिकेट सीरीज की जब प्लानिंग हो रही थी, सचिन तेंदुलकर ने काॅल किया था बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला को। हँसते हुए कहने लगे - "क्यूँ मरवाना चाहते हो। ध्यान नहीं हैं क्या कि थोड़े दिनों पहले ही उनके राष्ट्रपति मुर्शरफ साहब भी मरते-मरते बचे हैं हमले में।" जगमोहन डालमिया चीफ थे बीसीसीआई के तब। अटल जी ने सीरीज के लिए हामी भरी मगर उप-प्रधानमंत्री आडवाणी जी तैयार न थे। पाकिस्तान ने वादा किया कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति कैडर की सैक्यूरिटी दी जायेगी इंडियन टीम को। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड चीफ शहरयार खान ने अपने जीवन का सबसे चुनौतीपूर्ण टास्क बताया इस सीरीज को। खूब सारी ऊहापोह के बीच हुई वह सीरीज जितना ज...

सिवाना डायरीज - 29

 सिवाना_डायरीज  - 29 "जब राजनीति में धर्म प्रवेश कर जाये तो रामायण होती है और धर्म में राजनीति तब महाभारत।" -पुराना कहीं पढ़ा हुआ है ये क्वोट। शाश्वत प्रतीत होता है। आज-आज में एक अखबार से, एक आज तक न्यूज चैनल से और एक सोशल मीडिया से तीन खबरें एक ही बिंदू के आस-पास दिखाई दी। पुष्कर में गुर्जर नेता स्व. कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला जी के अस्थि-विसर्जन कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं के  विरोध-प्रदर्शन पर राजस्थान सरकार के खेल एवं युवा मामलात मंत्री श्री अशोक चांदना जी को ट्विट करना पड़ गया कि- "मुझ पर जूता फिकवाकर सचिन पायलट यदि मुख्यमंत्री बने तो जल्दी से बन जाये क्योंकि आज मेरा लड़ने का मन नहीं है।  जिस दिन मैं लड़ने पर आ गया तो फिर एक ही बचेगा और यह मैं चाहता नहीं हूँ।" उधर देश के गृह मंत्री अमित शाह जी जब सूर्य नगरी जोधपुर के ओबीसी कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। दो बार के पूर्व सांसद जसवंतसिंह जी विश्नोई को मंच पर स्थान न देने को विश्नोई समाज की तौहीन बताया जा रहा है। दोपहर में लंच के वक्त न्यूज स्टार्ट की तो 2024 में विपक्ष के एक होने की संभावना पर उत्तर प्रदेश क...

सिवाना डायरीज - 28

 सिवाना_डायरीज  - 28 'हजार बर्क़ गिरे, लाख आंधियाँ उट्ठे। वो फूल खिलके रहेंगे, जो खिलने वाले हैं।।' -बटुकी धारणा गाँव की खो-खो टीम में आई है सिवाना, ब्लाॅक स्तरीय राजीव गांधी ग्रामीण ऑलम्पिक खेलने। नौ खास खिलाड़ियों के अतिरिक्त चुने गये तीन में से अंतिम वाली है वो। मुख्य टीम में इसलिए नहीं आ सकी क्योंकि ट्रायल के दिन वो टाईम पर न जा सकी। उसकी माँ का कहना था कि लड़कियाँ घर के काम के लिए होती है, ऐसे दौड़-भाग के लिए नहीं। और इस कारण वो उसे घर के काम में उलझाये रखती थी। पहला मैच जैसे-तैसे जीता धारणा ने, मगर तीन खिलाड़ी घुटने फोड़ बैठे अपने। पोस्ट-लंच पीटीआई मेडम खेलने वाले नौ खिलाड़ियों को चुन रही थी, बटुकी चुपचाप एक तरफ खड़ी थी। अपने खेल पर भरोसा तो है उसे मगर यह जानती है कि यहाँ एक्स्ट्रा ही बनकर रह जायेगी वो। इसी बीच सातवें नम्बर पर नाम बोला पीटीआई मेडम ने उसका। उसकी बाँछें खिल गई। टाॅस हुआ। उनकी टीम को 'रनर' बनने का मौका मिला। पीटीआई मेडम ने उससे पूछा - "बटुकी, रनर जायेगी तो आउट तो नहीं हो जायेगी ना जल्दी?" बटकी ने हामी में सिर्फ गर्दन हिला दी। धारणा की तरफ स...

सिवाना डायरीज - 27

 सिवाना_डायरीज - 27 "ओऽम् हीँ क्लाम् क्लीम् क्लुम  खाम खीम खुम स्वाहा कुरुं कुरुं आपदा उद्धारणाय, स्वर्ण आकर्षणाय श्री नाकोड़ा भैरवाय, मम् दरिद्रम् निर्मूल करणाय  लोकेश्वराय, साँणदाय, ओऽम् महा भैरवाय नमो नमः।।" -संगमरमर के एक खम्भे का सहारा था मुझे, जिस पर मनमोहक कारीगरी हो रखी थी। पसीना ललाट से बहता हुआ आँखों की पलकों पर भारी लग रहा था। एक लम्बी कतार जिसमें हर पीछे वाला आगे वाले को जल्दी आगे बढ़ने की कहता है और आगे वाला पीछे वाले को उलाहना देता है कि धक्का क्यूँ दे रहे हो। उस खम्भे के सहारे कमर टिकाकर यही कोई तीन-चार मिनट रहा होऊँगा मैं। मंदिर के अहाते में पाठ करने वाले श्रद्घालुओं को देख रहा था। हमारी कतार वाली रस्सी के दूसरी तरफ पास ही में एक भैया भैरव-स्तवन का पाठ कर रहे थे। उसी छोटी सी बुकलेट के पहले पेज पर ऊपर वाला मंत्र था। लिखा था - इस सर्वसिद्धीदायक कम से कम नौ बार या सत्ताईस बार जरूर पढ़ें। अपनी जगह से हटने से पहले नौ बार मैंने भी स्तवन किया इस मंत्र का। आगे जो हो भैरव दादा की इच्छा... खैर, बढ़िया दिन। बढ़िया क्योंकि नानाजी यहीं थे। सिवाना वाले अपने घर। कल रात ह...

सिवाना डायरीज - 26

 सिवाना_डायरीज  - 26 "मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या क्या याद है। वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है।। यूँ तो दश्ते-दिल में कितनों ने क़दम रक्खे मग़र। भूल जाने पर भी एक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा याद है।। उस बदन की घाटियाँ तक नक़्श हैं दिल पर मेरे। कोहसारों से समंदर तक को दरिया याद है।। मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो न हो पाया कभी। लेकिन उसको वो तरजुमे के साथ कलमा याद है।।" -पाकिस्तान के मशहूर शायर और मेरे साॅ-काल्ड होल टाईम फेवरेट तहज़ीब हाफी की गजल हैं। शुरुआती तीनों शेर कितने गज़ब लग रहे हैं ना! लग तो चौथा भी रहा है, मगर ये चुभ भी रहा है। बचपन से पढ़ता आया हूँ कला दो देशों के बीच की खाई को पाटती है, कला बाॅर्डर्स को पिघला देती है, कला दिलों को जोड़ देने के लिए है और भी ब्ला-ब्ला-ब्ला। मगर एक विडियो में इस शेर को सुनने के बाद एक अच्छे फनकार से इत्तर क्या रिस्पेक्ट दे पाऊँगा मैं हाफी सा'ब को! यहाँ तो बड़ी साफगोई से विवशता जताई जा रही है कि - 'मुझसे वो काफिर मुसलमाँ तो न हो पाया कभी।' मतलब क्या है इस लाईन का? यही ना कि उसको मुसलमाँ करना था मुझे! 'इज देयर एनी हिडन एजेंडा?' ...

सिवाना डायरीज - 25

 सिवाना_डायरीज  - 25 'वो जो खुद में से कम निकलते हैं उनके जहनों में बम निकलते हैं आप में कौन-कौन रहता है? हममें से तो सिर्फ हम निकलते हैं...' -बड़बोला हूँ मैं। शुद्ध हिंदी में वाचाल। काॅल आता है जब किसी का तो मिनिमम 05 मिनट ले लेता हूँ मैं। व्हाट्सएप पर जितने कन्वर्सेशन्स हैं, सामने वाले से दोगुना या तीन गुना मेरी ओर से लिखा गया है। बात खत्म होते टाईम भी कोई स्माईली या हाथ जोड़ने वाला इमोजी मेरा ही होगा। चाहकर भी न रोक पाया आज तक खुद को एक्सप्रेस करने से। कई बार तो रुक जाने के बाद खुद ही महसूस भी होने लगा है। एक इमेज है काफी टाईम से फोन में, जिसमें लिखा है - 'Stop telling people more than they need to know.' रख इसलिए रखी है इसे फोन में कि दिखती रहे, तो कभी आजमा पाऊँ खुद में। कई दफा कोशिश की, मगर अब तक तो सिफर ही रहा सब। ऊपर लिखी कुमार सर की लाईन हौसला देती है ऐसा ही करते रहने को! हाहाहाहा। आदमी चाहे तो अपने लिए अलग अर्थ निकाल ही लेता है किसी भी चीज का। सच तो यह है कि - 'अति सर्वत्र वर्जयेत।' मैं भी उसकी सीमा के आस-पास ही हूँ। खुद पर काम करना है। कोशिश में हूँ......

सिवाना डायरीज - 24

 सिवाना_डायरीज  - 24 'हुलस रहा माटी का कण-कण, उमड़ रही रस धार है। त्योहारों का देश हमारा, हमको इससे प्यार है ।। मनभावन सावन आते ही...'' -चौथी कक्षा की साहिबा और सुगना बुलवा रही थी धीमी आवाज में ये पूरी कविता चौथी-पाँचवी की कम्बाइन्ड क्लास को। मगर थोड़ी तो रटी हुई न होने के कारण और थोड़ी शरम के कारण हिचकिचाहट हो रही थी दोनों को। शिक्षक धन्नाराम जी के "जो...रूं बोलो, रोट्याँ कोनी खाई कांई!" कहते ही साहिबा की आवाज में और भी मंदी आ गई। अब इनका साथ देने का जिम्मा पाँचवी के नटखट कुशाल का था। कुशाल आया और फिर से जोर से स्टार्ट की कविता - 'हुलस रहा माटी का कण-कण।' अबकी बार कुशाल की आवाज दबाने को साहिबा और सुगना भी जोर-जोर से बोलने लगी। लास्ट वाला 'भारत माता की जय' तो पूरे स्कूल को गुंजायमान कर देने वाला था कुशाल के आते ही उन बच्चियों में भी जोरदार उत्साह आया। मुद्दे की बात यह है कि बाल-मनोविज्ञान समझ रहा हूँ आजकल। समझ रहा हूँ कि रटने, याद हो जाने और समझ आ जाने में कितना अंतर है! समझ रहा हूँ कि बच्चे सोचते कैसा होंगे आखिर? उन्हें कैसे दिखती होगी ये दुनिया? ...

सिवाना डायरीज - 23

 सिवाना_डायरीज  - 23 'बेहद पतली गली है, उधर कार नहीं जाती।  और चूँकि कार नहीं जाती, इसलिए उधर सरकार भी नहीं जाती।' -कितनी सच्ची बात है ना! नहीं, नहीं व्यंग्य के सिरमौर परसाई जी का नहीं हैं ये क्वोट! एक उभरते लेखक प्रशांत सागर का है। पहले रेवदर(सिरोही) और अब दौसा में एसाॅ. प्रोफेसर विष्णु शर्मा जी के व्हाट्सएप स्टेटस से उठाया है अपन ने। सिवाना पहली जगह होगी जहाँ रहने के शुरुआती दिनों में ही मेरा मन कह चुका है कि अक्खी जिंदगी गुजारी जा सकती है इत्ते। दिमाग ने कुछ रोका यह समझाकर कि बुनियादी सुविधाओं का अभाव हैं यहाँ! कैसे सरवाइव करोगे? मगर मन तो मन है। इसे तो जो रम गया, वो रम गया। बात यह है कि सिवाना की बड़े-बड़े विला-बंगलों वाली पतली गलियों के लिए भी एकदम सच है ऊपर वाला क्वोट। -आठवीं कक्षा का एक बच्चा है गोपाराम। राजस्थान की सरकारी स्कूल्स की यूनिफॉर्म का पुराना वर्जन ओढ़े। पुराना वर्जन मने - काॅफी कलर वाली पुरानी ड्रेस। तीन जगह से घिसकर फटने में आया शर्ट और तीन-चार एक्स्ट्रा विंडो वाली पेंट। नई नहीं ली क्योंकि सरकार बदलते ही ड्रेस बदलने के पैसे नहीं है। सपना आईएएस बनने का ...

सिवाना डायरीज - 22

 सिवाना_डायरीज  - 22 सुबह-सुबह- राम-रेवाड़ी है आज। पहले जल में झूलने और फिर नगर-भ्रमण पर जायेंगे ठाकुर जी आज। जगह-जगह बेवाण निकलेंगे। कोई धोळी-फट धोती इसी रंग के कुर्ते के साथ इसलिए प्रेस कर रहा है कि कोई मना न कर सके बेवाण को छूने के लिए। चप्पलें आज धरनी ही नहीं पैरों में। हर छोटे-बड़े मंदिर ट्रस्ट ने लाल अबीर-गुलाल के कट्टे स्टाॅक कर लिये हैं। जो गढ़बोर पैदल नहीं जा सके, वे एक ही रात में पैंतीस किलोमीटर चलकर कोटड़ी पहुँच गये हैं। नई साख में खेतों में उगे मक्या-काकड़ी ठाकुरजी को अर्पण करने के लिए घरों में तैयार रखे हुए हैं। मोहल्ले की तरुणाई मोटर-साइकिलों पर ही पहुँच गई है ठाकुर जी के किसी न किसी घर। सुबह-सुबह मोहल्ले के मिलन-चौक में पापा-टाईप के लोग भी समूह बनाकर चर्चा कर रहे हैं शाम तक गढ़बोर, सिंगोली-श्याम या कोटड़ी पहुँच जाने की। मंदिरों के पुजारियों ने भी सजा दी हैं पालकियाँ। मंदिरों के बाहर वाली दुकानों वालों ने घर के दो-तीन सदस्यों को बढ़ा दिया है आज दुकानों पर। फूल-माला, नारियल, अगरबत्ती, गुलाल और प्रसाद की अच्छी ग्राहकी रहने वाली है आज। व्हाट्सएप और इंस्टा पर स्टेटस ...

सिवाना डायरीज - 21

 सिवाना_डायरीज  - 21 "हेलो, सर प्रणाम। चरण स्पर्श!" "हेलो, खुश रहो, खूब खुश रहो। कौन दुष्यंत!" "नहीं सर। रोहित कुमार विश्नोई...सुकुमार..." "ओह, रोहित! यार तेरा नाम क्यों नहीं आया यार इस फोन में! नम्बर चेंज किये क्या तुने?" "नहीं सर। वही है नम्बर तो। चलो कोई नहीं। कैसे हैं आप?" "मैं बढ़िया यार। तु बता, कैसे याद कर लिया आज!" "सर आपने बहुत ही खूबसूरत पत्र लिखा आज।" मैं अपनी बात पूरी करता, इससे पहले ही वे बोल पड़े-  "अरे वाह! तुम तो रोज धमाके करता है जो कुछ नहीं। और मेरे एक लिखे की इतनी बड़ाई। "नही सर। मेरा लिखा कुछ भी नहीं है आपके सामने। मैं सीख रहा हूँ अभी आपसे और सबसे पहले तो साॅरी कि मैंने आपसे बिना पूछे इस पत्र को आज काम में ले लिया और अब धन्यवाद हमें आज के दिवस पर इतना प्यारा कंटेंट देने के लिए।" "अरे नहीं-नहीं यार! ये तो गंगा है, जितने लोगों को पार लगाये उतना बड़िया।" "जी सर। शिक्षक दिवस पर एक संगोष्ठी में वाचन किया आज मैंने इसका हमारे ब्लाॅक के कुछ शिक्षकों के सामने। सबको खरा-खरा मन ...

सिवाना डायरीज - 20

 सिवाना_डायरीज  - 20 "मेरा विषय-सुख एक स्त्री पर ही निर्भर था और मैं उस सुख का प्रतिघोष चाहता था। जहाँ प्रेम एक पक्ष की ओर से भी होता है, वहाँ सर्वांग में दुख तो नहीं ही होता। मेरा ख़याल है कि इस आसक्ति के साथ ही मुझमें कर्तव्य-परायणता न होती, तो मैं व्याधिग्रस्त होकर मौत के मुँह में चला जाता, अथवा इस संसार में बोझरूप बनकर जिंदा रहता। 'सवेरा होते ही नित्यकर्म में लग जाना चाहिए, किसी को धोखा तो दिया ही नहीं जा सकता'  - अपने इन विचारों के कारण मैं बहुत संकटों से बचा हूँ।" -क्या गजब का साहस था ना बापू में! जैसा जीया, हूबहू लिख दिया। अपनी कमियों और गलतियों को जो काटते-छाँटते, तो भगवान बना देते लोग उन्हें। हड्डियों के ढांचे जैसा शरीर लिये उन कृशकाय महात्मा जितनी अभिव्यक्ति जुटाने का साहस जुटा पाना सचमुच असम्भव की श्रेणी में रखा जा सकता है। खैर, गांधी जी की 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' स्टार्ट की है। लगभग पचास पेज ही पढ़ पाया हूँ अभी तो। एक दूसरी डायरी में कुछ बिंदू भी मार्क किये हैं, जिन पर बहुत कुछ लिखा-सोचा जा सकता है।  वैसे राधाष्टमी और दधीचि जयंती का दिन मेरा बापू...

सिवाना डायरीज - 19

 सिवाना_डायरीज  - 19 'पूर्वाग्रह एक दीमक है। यह व्यक्तित्व को खोदता है। इसलिए नहीं कि इसकी भूमि उर्वरित हो। अपितु इसलिए कि खोखली हो जाये इसकी जमीन। विकास की सड़क पर लगा ये वह पुराना हाॅर्डिंग है, जिसकी प्रासंगिकता सड़क के किसी पेच-वर्क के समय की है। एक सीधी-सपाट सड़क पर 'सावधान! आगे गड्ढ़ा है। कृपया धीरे चलें।' का बोर्ड राहगीरों की गति ही कम करेगा।' -एक बार फिर किसी किताब, इंटरव्यू या आर्टिकल से नहीं उठाया है मैंने क्वोट! मन से लिखा है। कोशिश में हूँ कि कुछ ठीक तो मैं भी लिख पाऊँ। मसला ये है कि कल एक शख्स से मिला था। गज़ब की पर्सनलिटी है साहब। आर्मी में दो साल सर्विस देकर राजस्थान के शिक्षा विभाग में आये हैं। सीधे शब्दों में यूँ भी कह सकते हैं स्वैच्छिक अग्निवीर। टैलेंट कूट-कूटकर भरा हुआ। बस एक मानसिकता जो मुझे ठीक न लगी उनकी कि हमारे देश में सब के सब लोग भ्रष्ट है। कोई भी ठीक नहीं हैं, कोई भी। ना मैं, ना आप और ना कोई और भी। मतलब ना कि शक या पूर्वाग्रह इस कदर कि आदमी खुद को भी मन से चाह न पाये। खैर सीखना-सीखाना चलता रहेगा। दुनिया एक ही तरह के लोगों से थोड़े बनी है! खूब ...

सिवाना डायरीज - 18

 सिवाना_डायरीज  - 18 "पानी को पतीले में डाल आँच में रखने पर गुनगुना होकर, गर्म होकर, फिर थोड़ा उबलकर एक सीमा तक वह सब कुछ सहने की कोशिश करता है। मगर जब आँच उस हद से ज्यादा ही कर दी जाये तो वह पहले तो पतीले से बाहर निकलने लगता है और फिर एक सीमा बाद उसके ढक्कन को भी अपने वेग से नीचे गिरा देता है।" -पूर्व केंद्रीय मंत्री और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद सहनशीलता की सीमा की बात कर रहे थे बीबीसी के साथ हुए अपने एक इंटरव्यू में। सुबह नाश्ता करते टाईम आज यू-ट्यूब ने रिकमंडेड में सबसे ऊपर ये दे दिया, तो यही देख लिया। कुछ भी कहो, आदमी भला है यार! मुझे सरप्राइज इस बात पर होता है कि अपने विचारों से इत्तर जाते ही हम कैसे कोसने लग जाते हैं साथ वाले को भी। जय-वीरू की जोड़ी थी ना कांग्रेस में अपने गहलोत साहब और आजाद जी की! एक क्षण लगा गहलोत साहब को आजाद जी को कोसने में। मसला केवल इतना है कि हम किस तक असहिष्णु हो चुके हैं। हमें कुछ भी नहीं सुनना अपने विचारों के इत्तर। और जो भी इनसे इत्तर है, सारा का सारा खराब है। अब तो ईश्वर ही भरे हम सबमें असहमति को भी सहन करने का सामर्थ्...

सिवाना डायरीज - 17

 सिवाना_डायरीज  - 17 'शहर या गाँव, खेल के मैदान जितने ज्यादा होंगे, हाॅस्पीटल्स की संख्या वहाँ उतनी ही कम होगी।' - पीईईओ क्षेत्र मवड़ी में था आज। राजीव गांधी ग्रामीण ऑलम्पिक अभियान के प्रथम चरण के समापन कार्यक्रम में अध्यक्ष जी की ये लाईन जोरदार ही लगी मुझे। दिन-भर यही चलती रही मन में। वो एक और लाईन है ना कि - 'एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।' सरल सत्य हैं दोनों मगर फाॅलो कुछेक प्रतिशत ही कर पाते हैं लोग। खुद में भी हर रात सोने से पहले प्लानिंग बना लेता हूँ कुछ नया इनिशियेटिव लेने की, मगर अगली सुबह एक अकेला शब्द आलस्य इन दोनों वाक्यों को मात दे देता है। जीवनचर्या में सुधार की बहुत जरूरत है। बहरहाल पहली इंडिपेंडेंट विजिट थी आज मेरी। अपने सिवाना के पास ही मवड़ी स्कूल में गया था। पुरानी राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय और राजकीय माध्यमिक विद्यालय को मर्ज करके बनाई गई सीनियर सेकंडरी स्कूल। मतलब पहली से बारहवीं तक एक ही। चार से पांच घंटे अच्छे निकले। खूब जाना, खूब सीखा और कई सम्पर्क भी बने। छोटे बच्चों के साथ समय बिताना दिमाग की कई ग्रंथियां खोल देता है...

सिवाना डायरीज - 16

 सिवाना_डायरीज  - 16 सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची। नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥ जय देव जय देव... - यू-ट्यूब पर जयाकिशोरी जी द्वारा गजानन जी की इस स्तुति वाली विडियो के साथ कोशिश कर रहा था मैं भी आज गणपति जी को खुद में उतारने की। दोनों हाथ मिला सूर्यचक्र पर टिकाकर आँखें बंद कर रखी थी। इधर-उधर भटकते मन को बार-बार ला रहा था गणेश जी के चरणों में। अफसोस, मगर टिक न पाया। खुद को अगर सही तराजू में रखूँ तो मुझे उनके श्रीचरणों में टिकने योग्य भी अब बनना है।  गणेश चतुर्थी की छुट्टी नहीं है स्कूल्स में, ये सुबह 09 बजे पता चला मुझे। अपने ऑफिस पहुँचने के बाद पाया कि चाबी भी घर भूल आया है, तो पास के मेला मैदान स्कूल में हो आया। जफर सर और रंजनि मेडम से थोड़ी देर बात कर सातवीं कक्षा के बच्चों को कुछ विचारकर कहानी बनाने का काम दिया और बच्चों ने बहुत मन से अपने-अपने तरीके से कहानी के कई एंगल मोड़े। लंच बाद एलआरसी पर यूथ-मीटिंग रखी गई जिसमें कोविड-वैक्सीनेशन में सहयोगी साथियों को प्रमाण पत्र भी दिये गये। कुल मिलाकर व्यस्त रहे दिन-भर ही आज भी। गणेश चतुर्थी है आज। बचपन से उनकी और कार्तिक...