सिवाना डायरीज - 77
सिवाना_डायरीज - 77 इमदाद अलो बहर जी का एक शेर है - 'हम न कहते थे हँसी अच्छी नहीं। आ गई आखिर रुकावट देखिए।।' बहुत उड़ता रहता हूँ मैं। कभी यहाँ, कभी वहाँ। और बातों पर विश्वास कर ले मेरी कोई तो उनको दुनिया के श्रेष्ठ लोगों में से एक लगूँ मैं। एक राजस्थानी कहावत है - 'पढ़ो मण भर, लिखो कण भर।' मैं उलट हो रहा हूँ इसका आजकल। स्पेसिफिक इसी इश्यू पर भी और जिंदगी के बाकि हिस्सों में भी। सीधे शब्दों में कहूँ तो फैलता ज्यादा हूँ। किसी को पहली बातचीत में ये क्यूँ बताना कि लिखने का शौक है और एक किताब पब्लिश हो चुकी है अपनी? मगर क्या करूँ आदतों से मजबूर हो गया हूँ। सही अर्थों में तो हर जगह खुद को खास महसूस करना और करवाना बहुत पीछे धकेल रहा है मुझे। इन सबके इत्तर रिश्तों के मामलों में हमेशा डिफेंसिव खेलता रहा, तो उतना प्यार मिलना बंद हो गया जितना मिलना चाहिए था। माणिक सर सही कहते हैं कि आदमी बीस-पच्चीस लोगों से घिरा एक संसार है। उसका उठना-बैठना, सोचना-लिखना और जीना उन्हीं लोगों के लिए या उन लोगों के बीच ही होता है। मुझे कभी-कभी लगता है कि वो बीस-पच्चीस भी नहीं है मेरे पास तो। बहरहाल...