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Showing posts from October, 2022

सिवाना डायरीज - 77

 सिवाना_डायरीज  - 77 इमदाद अलो बहर जी का एक शेर है - 'हम न कहते थे हँसी अच्छी नहीं। आ गई आखिर रुकावट देखिए।।' बहुत उड़ता रहता हूँ मैं। कभी यहाँ, कभी वहाँ। और बातों पर विश्वास कर ले मेरी कोई तो उनको दुनिया के श्रेष्ठ लोगों में से एक लगूँ मैं। एक राजस्थानी कहावत है - 'पढ़ो मण भर, लिखो कण भर।' मैं उलट हो रहा हूँ इसका आजकल। स्पेसिफिक इसी इश्यू पर भी और जिंदगी के बाकि हिस्सों में भी। सीधे शब्दों में कहूँ तो फैलता ज्यादा हूँ। किसी को पहली बातचीत में ये क्यूँ बताना कि लिखने का शौक है और एक किताब पब्लिश हो चुकी है अपनी? मगर क्या करूँ आदतों से मजबूर हो गया हूँ। सही अर्थों में तो हर जगह खुद को खास महसूस करना और करवाना बहुत पीछे धकेल रहा है मुझे। इन सबके इत्तर रिश्तों के मामलों में हमेशा डिफेंसिव खेलता रहा, तो उतना प्यार मिलना बंद हो गया जितना मिलना चाहिए था। माणिक सर सही कहते हैं कि आदमी बीस-पच्चीस लोगों से घिरा एक संसार है। उसका उठना-बैठना, सोचना-लिखना और जीना उन्हीं लोगों के लिए या उन लोगों के बीच ही होता है। मुझे कभी-कभी लगता है कि वो बीस-पच्चीस भी नहीं है मेरे पास तो।  बहरहाल...

सिवाना डायरीज - 76

 सिवाना_डायरीज  - 76 'हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी। जिसको भी देखना है, बार-बार देखना।।' -निदा फाजली के इस शेर में 'आदमी' की जगह अगर 'दिन' भी रख दिया जाये तो मैं तो गलत नहीं कहूँगा इसे। कल मेरी जिंदगी का आज तक का सबसे अच्छा दिन था और आज! आज भी अच्छा था सुबह से शाम तक तो। शाम से रात और अब आधी रात तक आते-आते खूब बदला है दिन भी। वो होता है ना जब आदमी टूट जाता है एकदम से। शारीरिक रूप से टूटने को तो आराम लेकर ठीक किया जा सकता है, मगर मासिक टूटन के आराम का कोई प्रामाणिक उपचार कहाँ खोज पाये हैं हम अभी तक! जब उसे कुछ नहीं सूझता। वह चले जाना चाहता है सबसे दूर। अभी-अभी तो उसी फेज में हूँ मैं भी। क्यों? इसका उत्तर इस टूटन के जाने के बाद ही समझ आये मुझे शायद। बहरहाल धमाकेदार थी दिन की शुरुआत। वैसे भी खम्मू जी बाऊजी के पास होता हूँ, तब सब-कुछ श्रेष्ठ ही होता रहता है जिंदगी में। यूरोप से फोटोग्राफर्स का एक दल आया है इंडिया ट्यूर पर। उनके संयोजक क्रिट्स फ्रेंच हैं। क्रिट्स के अलावा 05 लोग और फ्रांस से, 01 स्विट्जरलैंड से, 01 बेल्जियम से और 01 जर्मनी से है। जोधपुर में पर्याव...

सिवाना डायरीज - 75

 सिवाना_डायरीज  - 75 'East is east and west is west. Never the twain shall meet.' -रुडियार्ड किप्लिंग की कविता 'The ballad of east and west' की ध्रुव पंक्तियों को क्वोट करते हुए NEP-2020 के संदर्भ में राजस्थानी भाषा के संवर्धन के मायने तलाशते एक बाऊजी की शंका थी कि अंग्रेजी भाषा को स्टेटस-सिम्बल क्यों न माना जाये अगर वो सच में आपको बाकि सबसे एक पायदान ऊपर या नीचे खड़ा रखती है? प्रश्न पूछने का उनका अंदाज और प्रश्न की प्रेक्टिकल प्रवृत्ति दोनों अद्भुत लगी मुझे। मंच पर बैठे आदरणीय दिनेश जी गहलोत और डाॅ. जितेंद्र सोनी जी ने अपने कर्तव्य की पूर्ति लगभग यह कहते हुए की कि हम सबके प्रयास करने में क्या बुराई है? हम राजस्थानी बोलें, और राजस्थानी को व्यापार और व्यवहार की भाषा बनायें तो एक दिन स्वतः यह भी मान्यता प्राप्त बाकि सभी भाषाओं के साथ खड़ी होगी। दिन था आज का और अवसर था रेख्ता फाउंडेशन द्वारा आयोजित 'अंजस महोत्सव - जळसो राजस्थानी रो' का। मैं ईश्वर को खूब धन्यवाद देता हूँ कि मुझे इस तरह के कार्यक्रमों में जाने के वह अवसर प्रदान करता रहता है। बहरहाल, सूर्य नगरी जोधाणा...

सिवाना डायरीज - 74

 सिवाना_डायरीज  - 74 एक अरसे तक कनेक्शन में रहते हुए भी आपके हर 'आई लव यू' पर चुप्पी साधकर या बात बदलकर आगे बढ़ जाने वाला शख्स जब एक बार लम्बी खामोशी के बाद रेस्पांस में धीरे से 'आई लव यू ठू' कहकर सिसकियाँ लेने लगे, मुझे लगता है कि तब वो सारा कर्ज उतार देता है आज तक के आपके कहे का। उसकी उन सिसकियों और आंसूओं के सम्मान की जिम्मेदारी अब आपकी हो जाती है। आखिर प्रेम को अभिव्यक्त नहीं करना, किसी की भी विवशता क्यों हो? मेरे मन को यह बात बहुत सालती है। सबसे सहज अभिव्यक्ति लिखते हैं सब प्रेम को, मगर जीते हैं सबसे जटिल तरीके से। हमें किसी से लड़ना हो या असहमति व्यक्त करनी हो तो हम समय और स्थान सार्वजनिक या निजी नहीं देखते। मगर अगर प्रेम को अभिव्यक्त करना हो या किसी को गले लगाना हो तो देख रहे होते हैं कि कहीं कोई और तो नहीं देख रहा। लड़ाई के लिए हाथ उठाने पर हमें समय-स्थान का संकोच नहीं, मगर प्राइवेसी ढूंढ़ रहे होते हैं हम गले लगाने के लिए हाथ बढ़ाने पर। मैं जो सोचता हूँ, बस इतना है कि ये पैमाने जिसने भी बनाये हैं मर्यादा के नाम पर, दोनों स्थितियों में बराबर लागू होने चाहिए। बहरह...

सिवाना डायरीज - 73

सिवाना_डायरीज  - 73 "I'll not be a part to the balconization of India. India is one nation and will remain one country." -भारतीय सत्ता को अंग्रेजों के हाथ से भारतीयों के हाथों में हस्तांतरित करने की प्रक्रिया पर चर्चा को लेकर 1946 में बनाये गये केबिनेट मिशन के तीनों सदस्यों स्टेफाॅर्ड क्रिप्स, पेट्रिक लाॅरेंस और ए.वी.अलेक्जेंडर के सामने अपने सरदार पटेल जी ने जब ये लाईन बोली, तीनों अंग्रेजों, मुहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान के अलावा वहाँ उपस्थित हर एक सदस्य ने मेज थपथपाई। मौलाना अबुल कलाम आजाद और खान अब्दुल गफ्फार खान ने जिन्ना को साफ तरीके से ये कहने से रोका कि वो अकेला ही मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है। नेहरू जी की दूरदर्शिता थी या कुछ और, पर मुझे भी थोड़ी जल्दबाजी में लगे वो सविंधान सभा में शामिल होने में और सरकार बनाने में। मैं जब भी सविंधान बनने संबंधित चीजें पढ़ता, सुनता या देखता हूँ, मुझे दोनों लोग बहुत महत्वाकांक्षी लगते हैं नेहरू जी और जिन्ना। एक बात बहुत खलती है इन सबमें कि आदर-सम्मान ठीक है मगर सारे के सारे लोग जिन्ना को 'कायदे आजम जिन्ना साहब...

सिवाना डायरीज - 72

 सिवाना_डायरीज  - 72 बैल बचे ही कहाँ हैं अब? आज से लगभग पाँच साल पहले तक तो दिख जाती थी एक-आध बैलगाड़ियाँ अपने कस्बे में। अब नहीं दिखती एक भी। आज शाम वृषभ-पूजन होना था तो सुबह से ही मोहल्ले के बच्चे निकल गए थे बैल का अल्टरनेट ढूंढने। एक तो बुरी बात ये लगती है मुझे कि बैल-पूजन (गौधन-पूजन) के इस पवित्र त्योहार को 'बळद-भड़काबा वाळो दन' कहकर हमारे क्षेत्र में तो बंटाधार हो गया है इस दिन का। लड़के ढूंढ़-ढूंढ़कर लाते हैं बछड़ों को और उन्हें भांग पिला कंट्रोल में लाकर उन पर रंग-रोगन करते हैं। बैलों की जोड़ियों की संख्या अंगुलियों पर गिनने जितनी होती है और अपने सारे पटाखे लड़के एक-दूजे पर फेंककर खत्म करते हैं। एक-दूजे पर फेंकने के चक्कर में कुछ नहीं दिखता फिर उन्हें। कई बार महिलाओं के झुंड में फेंक दिये जाते हैं बम। ये सब देखना बहुत मुश्किल सा हो जाता है मेरे लिए। इसलिए लास्ट पाँच-छः सालों से गया ही नहीं हूँ मैं अपने पुर के विश्नोई मोहल्ले में।  बहरहाल, गोवर्धन पूजा और भाई-दूज साथ-साथ थे आज। जोया, ईशू, कानू, आस्था, भोलू, शिवाय, प्रियांशी और मैं सुबह-सुबह स्टेडियम जा आये आज कई दिन...

सिवाना डायरीज - 71

 सिवाना_डायरीज  - 71 "होहिं सगुन सुभ बिबिधि बिधि बाजहिं गगन निसान।  पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान॥" -मने सब जगह सब शगुन शुभ ही हो रहे हैं। आकाश में नगाड़े बज रहे हैं। सारी नगरी अर्थात आयोध्या के लोगों को सनाथ करके मतलब अपने राम से मिलाकर दशानन-निकंदन सब शुभ के दाता भगवान श्री सियाराम अपने भवन की और चल रहे हैं। मर्यादा-पुरुषोत्तम के यूँ अपनी नगरी वापस लौटने पर इस साल सबसे ज्यादा खुश हमारे भीलवाड़ा की नगर-परिषद है। शहर के इतिहास में दीपमालिका पर्व को इससे अच्छा रूप आज तक तो नहीं दिया जा सका था। रोशनी और कार्यक्रमों की ये लड़ियाँ 'BHILWARA KI DIWALI' नाम से रेलवे स्टेशन चौराहे वाले स्टेज पर जगमगा रही है। दीपावली आधिकारिक रूप से कल थी। मगर लोगों की बातें, सोशल मीडिया और न्यूज मीडिया ने कल वाली हमारी भीलवाड़ा की दीवाली को आज भी बचा रखा है मन में। इस दफा दीपावली और गोवर्धन पूजा के दिनों के बीच में एक आइसोलेटेड दिन रहा आज का। ग्रहण रहा आज सूर्य का शाम को लगभग दो-ढ़ाई घंटे। सद्गुरु के इस ग्रहण सम्बंधित एक विडियो से जाना कि सूर्य और चन्द्रमा इस काल में मात्र दो-ढाई घंटों ...

सिवाना डायरीज - 70

 सिवाना_डायरीज  - 70 अभी के दिनों में हर थोड़ी देर में दरवाजे से आवाज आ ही जाती है-  "दीवाळी को राम-राम वो भाभीजी। लाज्यो दीवाळी की मिठाई/ईनाम लाज्यो..." मैं बहुत मन से देखने जाता हूँ कि हैं कौन ये लोग? परसों सबसे पहले आये थे एक लगभग 80-85 साल की दिखनी वाली बूढ़ी माँ और एक उनके बेटे दिव्यांग अधेड़ से युसुफ जी। उनकी इस आवाज से मेरे मुँह से सहसा ही निकल गया - "आपको किस बात की दें मिठाई?" तो वो माँ बोली - "मैं मिरासी(भाट) हां थांका। थाकी पोथ्याँ(पोथियाँ) हारी म्हें ही बाचां। थे जजमान हो म्हाका।" 'मुसलमान हमारे भाट और हम इनके जजमान!' - मेरे गले नहीं उतरी बात। मगर सच यही है। ये पहले पटवा/भाट/चारण वर्ग से रहे होंगे शायद। कालांतर में मुस्लिम रास्ता स्वीकार कर लिया होगा। मगर अपना पुश्तैनी काम बरकरार रखा और इसी नाते हम इनके आज भी जजमान है। हमारे घर के हर मांगलिक कार्यक्रम में इनका नेग(उपहार) बनता ही है। पंडितों में उपाध्याय वर्ग के हम जजमान हैं ही। कल सुबह बागरिया समुदाय के दो-तीन लड़के-लड़कियाँ आये थे। वे खजूर से बने जाड़ू सप्लाई करते हैं हमारे क्षेत्र में...

सिवाना डायरीज - 69

 सिवाना_डायरीज  - 69 "शुभं करोति कल्याणांरोग्यं धनसंपदा। शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोस्तुते।।" -पूरे तीन साल बाद ढंग से दीवाली मनाई जा रही है अपने भारत में। तिथियों का सूतक एवं ग्रहण के कारण आगे-पीछे होना और मुहूर्तों का भी अलग-अलग आना चलता रहता है अपने यहाँ। जाने क्यों एक मानक पद्धति नहीं डिसाइड कर पाये सारे विद्वज्जन मिलकर। एक ही अखबार के भी अलग-अलग पन्नों में अलग-अलग आया है मुहूर्त का समय। धनतेरस आज थी और कल भी थी। रूपचौदस आज भी है और कल भी है। दीपावली कल है और परसों का दिन खाली है। गोवर्धन पूजा और भाईदूज उस खाली दिन के अगले दिन मिक्स में हैं। और इन सबके कारण वो अपने चौथ के चूरमे वाला त्योहार कार्तिक शुक्ल चतुर्थी अपनी तारीख सेट नहीं कर पा रही है। चारों तरफ कंफ्यूजन ही कंफ्यूजन है। देखते हैं क्या होता है आगे... बहरहाल, घर पर दूसरा दिन। सच बोलूँ तो मन कर रहा था कि अभी ही निकल जाऊँ सिवाना। कभी-कभी ना आदमी अपनी प्राइवेसी चाहता है यार। सुबह से शाम तक का टाईम यूँ ही निकल गया। घरवालों की शिकायत रह ही गई कि कुछ भी हेल्प नहीं की और अपन थके भी बराबर ही। पीछे वाले लास्ट कमरे और...

सिवाना डायरीज - 68

 सिवाना_डायरीज  - 68 "तुमने छोड़ा शहर उड़ रही है रुई ढक रहे फूल सेमल के आकाश को। तुमने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को..." -मतलब ना, कुमार शिव की लिखी इस कविता के लिरिक जब सुने आज कहीं, सुबह से ही गुनगुना रहा हूँ मैं। क्या कल्पना है यार। सच में बस यही कहूँगा - अद्भुत, अद्भुत, अद्भुत। मन यूँ कचोटता रहता है खुद को कि मैं कब लिख पाऊँगा कुछ इस तरह की कालजयी फीलिंग। कितना पढ़ना पड़ता होगा, कितना सोचना पड़ता होगा और कितना डूबना पड़ता होगा ना खुद के ही बनाये दरिया में। सच बोलूँ तो चौबीस घंटे कम लगने लगे हैं मुझे आजकल अपने लिए, अगर जो करने हैं वो काम ही करने हो तो भी। उम्र का पैमाना भी डराने लगा है आजकल। देखते हैं, क्या होता है... खैर, कई दिनों बाद आये हैं घर में तो लाड मिल रहा है सभी का। दिन-भर में सिया को फैमिलीयर कर लिया है मैंने अब तो। सुबह से शाम तक में कितने ही पापड़ बेलने पड़ते हैं मुझे उसको हँसाने के लिए। कल से घर में एक और सदस्य जुड़ा है हमारी मुस्कुराहटें बढ़ाने को। गौरु और संध्या ने दीदी बना दिया है सिया को। कल ही वर्कशाॅप के दौरान ही खुशखबरी आ गई थी अपन...

सिवाना डायरीज - 67

 सिवाना_डायरीज  - 67 "हेलो! कहाँ हो?" "रास्ते में।" "घर आ रहे हो ना?" "आ रहे हो!! मतलब? मैं समझा नहीं। आप कौनसा मेरे घर ही हो जो।" "अच्छा! और मैं आपका घर पर इंतज़ार करती मिलूँ तो?" "ऐसा अभी तो नहीं हो सकता। बाकि तो बातें हैं, बातों का क्या!!!" "अच्छा। मैं आपसे मिलूँ या न मिलूँ। मगर यह कह दूँ कि घर पर आज आपकी पसंद की मूँग-दाल ठंडी हो रही हे, जल्दी आओ फिर?" "नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। घर पर मूँग-दाल ही बनी हो, ये जरूरी नहीं!!!" -वो इतना श्योर था क्योंकि आज घर पर खाने में क्या बनाऊँ, के जवाब में उसने माँ को 'उनकी पसंद' ही बोला था। "अच्छा। ये बताओ अगर मूँग-दाल बनी होगी घर में, तो गले लगाओगे ना मुझे?" "हाँ, पक्का। मगर ये सब इम्पोसिबल सा है।" "हाहाहाहा। देखते हैं।" -वह लगभग साढ़े दस बजे घर पहुँचा और देखता है सब्जी में आज बिल्कुल कम मिर्ची वाली उसकी पसंद की मूँग-दाल है। खाना खाकर अपने कमरे में आते ही वह फोन लगाता है। "गज़ब यार। सच-सच बताओ हाउ इज इट पाॅसिबल! तुम्हें कैसे प...

सिवाना डायरीज - 66

 सिवाना_डायरीज  - 66 "पतवार के बिना ही, मेरी नाव चल रही है। ठहरा हुआ जमाना, मंजिल भी मिल रही है।। अब क्या बताऊँ मोहन, आराम हो रहा है। मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है..." -स्व. विनोद अग्रवाल जी की आवाज में जब-जब भी सुनता हूँ ये भजन। निरा हो जाता हूँ मैं। हाँ निरा, निरा मतलब खाली। विचारशून्य। सौंप देता हूँ अपना सब-कुछ उसके हाथ में, जिसके हाथ में सबकी एक-न-एक डोर तो है ही। कई बार अपनी मनोहरा को वहीं पाता हूँ, या और स्पष्ट करूँ तो प्रेम से ही प्राप्ति लगती है। ईश्वर की भी और मनोहरा की भी। जब-जब भी सुनता हूँ ये भजन मैं और अधिक प्रेम में होता हूँ। सच कहूँ, शायद वो मेरा बेस्ट वर्जन होता हो... बहरहाल, वर्कशाॅप का चौथा दिन। जयपुर भा गया है इस बार। काफी समय बाद इतना लम्बा यहाँ रुका हूँ। सामान्य दिनचर्या की बात करूँ तो सुबह उठकर रेडी हो जाओ। फिर ब्रेकफास्ट करो और निकल जाओ ऑफिस-वर्कशाॅप के लिए। सुबह साढ़े नौ से शाम छः तक वहीं और फिर कहीं न कहीं घुमकर नौ बजे तक वापस आ जाओ होटल में। डिनर करो और सो जाओ। बस यही। आज वर्कशाॅप में गिनमाला पर जोड़ और घटाव की संक्रियाएँ की। सुगमकर्ता धीरेंद्र...

सिवाना डायरीज - 65

 सिवाना_डायरीज  - 65 "हो सकता है कि हीरो किसी और से ज्यादा बहादुर न हो। लेकिन वे सिर्फ पाँच मिनट और अधिक टिके रहते हैं।" -पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन का कहा ये क्वोट हमारे मन में रोज चलने वाले अन्तर्द्वन्द्वों के लिए ज्यादा ठीक लगता है अपन को। पर्सनली बात करूँ तो मेरे जीवन के कुल संघर्ष का निन्यानवे प्रतिशत मेरे मन का ही है। बाहर बहुत सहज है अपन। और ये सहजता का खोखा अपने भीतर कितनी जटिलताएं भरा है, खुद सोचता हूँ तो चकरा जाता हूँ। यूपीएससी की मेक्जीमम एज अगस्त में बत्तीस साल है हम जनरल वालों के लिए, जो कि खत्म कर चुकी है अपने अटेम्प्ट। मगर आज जब यहीं जयपुर में रिद्धी-सिद्धी सर्कल, गोपालपुरा बाईपास गया वर्कशाॅप के बाद, वहाँ दृष्टि, उत्कर्ष, निर्माण, संकल्प, अभिज्ञान, स्प्रिंगबोर्ड और अनएकेडमी जैसी बड़ी बिल्डिंग्स दिखाई दी, मेरा मन फिर से पीछे चला गया तीन-चार साल। 'नेवर क्विट' वाला सिद्धांत मैं हमेशा से मानता आया हूँ और रीगन सर ने उसी की पारिभाषिक शब्दावली बनाई है शायद। बिना कुछ ज्यादा सोचे, अभी केवल इसी पर चलना तय किया है। देखते हैं कितना चल पाते हैं। बहरहाल, ...

सिवाना डायरीज - 64

 सिवाना_डायरीज  - 64 "The best strategy to win a war is to keep a peace." -जयपुर में पाया जाता हूँ आजकल। पिंकसिटी की शान वर्ल्ड ट्रेड पार्क के थर्ड-फ्लोर वाले दुबई बाजार वाले पाॅर्शन के टायलेट में लगा था ये क्वोट। अपने काम से निपटते ही हैंडवाश करके सबसे पहले इसे कैद किया मैंने अपने केमरे में। वर्ल्ड ट्रेड पार्क के सीएमडी अनूप बरतारिया के लिखे इस क्वोट ने काफी सम्बलन दिया मुझे। जिस दौर से गुजर रहा हूँ, इसे काफी जरूरी था मुझसे मिल जाना। बात केवल दिखने वाले 'वार' की नहीं है, बात मन के अंतर्द्वंद्व की है मेरे लिए। और अभी तक मैं मन पर पत्थर रखकर चुप था मन के इस युद्ध में। इसे पढ़ने के बाद अब मौन-फेज में रहूंगा। इस क्वोट के 'पीस' को मैंने मौन रहने से लिया है क्योंकि मुझे लगता है अभी यही जरूरी है। मौन ही वह फेज हैं जहाँ से हम जहां भर के बदलते-फूटते रंग ऑब्जर्व कर पाते हैं और सामने वालों के मन पढ़ पाते हैं। उम्मीद करता हूँ अनूप बरतारिया के इस क्वोट को सोचने से मेरे मन का अकेलापन एकांत में बदले। बाकि देखते हैं, क्या होता है... बहरहाल, जयपुर में वर्कशाॅप का दूसरा दिन था...

सिवाना डायरीज - 63

 सिवाना_डायरीज  - 63 "इंदिरा जी, हम दोनों में बस एक इक्वलिटी है। आपकी नाक भी तीखी है, और मेरी नाक भी।" -1971 के युद्ध में 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों से आत्मसमर्पण करवाने के बाद आर्मी-चीफ सेम माणिक शा के लिए जब ये बात उठने लगी कि अब शायद आर्मी-रूल लगाकर सेम भारत के शासक न बन जाये, तब सेम ने कही थी ये बात इंदिरा जी से। तीसरी बार सुना ये किस्सा आज। सेम के प्रति सम्मान तीसों गुना बढ़ गया फिर से। विभाजन के समय याया खान जब सेम के जूनियर थे, तब सेम की एक बाईक खरीदकर ले गये थे वे पाकिस्तान और वहाँ पहुँचकर भुगतान के लिए मना कर दिया था। तब 1971 का युद्ध जीतने के बाद सेम ने बस ये ही कहा था - "मैंने तो याया खान से अपनी बाईक का हिसाब लिया है बस। सच में ना मन खुश हो जाता है सुबह-सुबह जब ऐसे प्रसंग पढ़, सुन या देख लेता हूँ कहीं। बहरहाल, गुलाबी नगर में मैथ ऑपन-काॅर्स का पहला दिन था आज। सुबह टाईम पर उठ गये थे हैदर भाई और हम दोनों। रेडी होकर गये नीचे तो बुफे सिस्टम वाले ब्रेकफास्ट में यही कोई बारह-पंद्रह चीजें थी। माथे पर सिलवट भी आई जब लास्ट स्टाॅल तक पहुँचा मैं। थोड़ी असहजता तो हो ही जात...

सिवाना डायरीज - 62

 सिवाना_डायरीज  - 62 "मीत न मिला रे मन का कोई तो मिलन का  कोई तो मिलन का,  करो रे उपाय  मीत ना..." -मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा और किशोर कुमार का गाया गीत बज रहा है मन में। वैसे सनातन सिंगल्स के लिए तो ठीक है ये, मगर कहीं एसोसियेटेड हैं अगर आप, तब ये कभी भी ठीक नहीं। मैं किस फेज में हूँ अभी इस वक्त, कुछ समझ नहीं आ रहा। अकेला बैठा-बैठा जब खुद को सोचने लगता हूँ, पाता हूँ कि खुद को बनावटीपन से परे बताते-बताते कितना बनावटी हो गया हूँ मैं। एक कचेलापन जम गया है तहों-तहों पर तो मेरे भी। बढ़ती उम्र अब मुझे काट खाने लगी है और अंधेरे आँखें बंद कर देने के लिए काफी नहीं हो रहे। चटका तो कई बार हूँ, मगर इस बार टूट रहा हूँ। मन की दीवार पर कोई घाव है जो फैलता जा रहा है, फैलता जा रहा है और मैं नहीं चाहता अब इसे रोकना... लगभग 07:30 बजे ट्रेन ने पटका आज हमें गुलाबी नगरी में। फाउंडेशन के ही आशिमा जी, हैदर जी और कृष्णा जी है साथ बाड़मेर से गणित की पंचदिवसीय कार्यशाला में। कैब से होटल शाहपुरा रेजिडेंसी पहुँचे हम और नहा-धोकर निकल लिये जीटी टावर घूमने के लिए। आशिमा जी की एक मित्र पुष्पा ...

सिवाना डायरीज - 61

 सिवाना_डायरीज  - 61 "पिघला दे जंजीरें बना उनकी शमशीरें  कर हर मैदान फतेह ओ बंदेया कर हर मैदान फतेह..." -बैकग्राउंड में ये धुन असल में नहीं बज रही थी मूंढ़णों की ढाणी स्कूल में आज! मगर मेरे कानों में अपने-अपने प्रोजेक्ट-माॅडल लिये बैठे छोटे-छोटे बच्चों के चेहरे पर कुंडली मारे बैठा आत्मविश्वास बार-बार ये ही विजय-ध्वनि बजा रहा था। कोई जींस-ट्राउजर और बेल्ट से कमर कसे प्रोफेशनल लुक वाले सर नहीं हैं उनके पास। उनके पास है सामान्य रूप शर्ट-इन न करके बाहर ही रखने वाले ठाकराराम जी और रूपकिशोर जी।  अपने धोरीमन्ना के साथी घनश्याम जी द्वारा एक ही रात पहले बनाया स्वागत-पोस्टर स्कूल की फाटक पर जब श्रुति और स्कूल के ही चौथी के श्रवण ने लगाया, बरबस मुस्कान आ गई हर एक अंदर आते शख्स के चेहरे पर। स्वाति, शतांति और सागर ने जब बरामदे वाले मुख्य सूचना-पट्ट पर अभिनंदन-आर्ट शुरू की थी, मुझे बहुत औसत लग रहा था ये। मगर जब फाइनली तैयार हुआ बोर्ड, तब कोई नहीं रोक पाया खुद को अपनी नजरें उधर लगाने से। अनुराग बच्चों के साथ गुब्बारे फुलाने के काम के साथ उनमें ही घुल सा गया था और संतोष तैयार था आज ...

सिवाना_डायरीज - 60

 सिवाना_डायरीज  - 60 "किसी के काम जो आये उसे इंसान कहते हैं। पराया दर्द अपनाये उसे इंसान कहते हैं..." -दिन में 01 बजे छुट्टी हो जाती है अभी अपने राजस्थान के स्कूल्स में। ये आवाज शाम को साढ़े चार बजे गूंजी कानों में, जब मैं बैठकर माॅडल फाइनलाइजेशन कर रहा था माॅडल्स का बाड़मेर के धोरीमन्ना ब्लाॅक के भीमथल पीईईओ रीजन में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय-मूंढ़णों की ढाणी के बरामदे में। आवाज इतनी खूबसूरत थी कि आँखें बंद कर महसूस करने से नहीं रोक पाया खुद को। चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाने के बाद दो कमरों, एक ऑफिस और एक बरामदे वाले छोटे से स्कूल में ये आवाज जिधर से आ रही थी, उस तरफ खींचे चले गये कदम मेरे। दूसरे वाले कमरे की देहरी पर खड़ा होकर चौथी कक्षा का श्रवण किवाड़ पर चिपके कागज को देखकर गा रहा था ये। उसको डिस्टर्ब किये बिना बस वहीं खड़ा हो गया था मैं। कभी-कभी ना यूँ लगता है कि माँ वीणापाणि यहीं-कहीं आस-पास विराजित है अभी, जो अपने आभामंडल में उपस्थित सारे लोगों को दुकान रही है। श्रवण, चौथी कक्षा का एक लड़का जिसका सेंस-ऑफ-ह्यूमर शायद आठवीं-दसवीं के बच्चे से भी ज्यादा हो। बात केवल श्रव...

सिवाना डायरीज - 59

 सिवाना_डायरीज  - 59 "मेवाड़ रा त्योहार अन मारवाड़ री मनुहार नसीबां बिना नी मिले..." -उत्सवधर्मिता प्रधान हमारे देश में मिट्टी और बोली के जितने रंग हैं, सब के सब अपना अनूठापन लिये हैं। चूँकि मैं बाड़मेर में हूँ आजकल, तो यहीं की बात करूंगा। सिवाना-बालोतरा से खूब जुदा है गुड़ामालानी-धोरीमन्ना का कल्चर। हाँ एक और बात, कल्चर में खराब कुछ भी नहीं होता। बस अनूठापन होता है। खड़ी बोली या अक्खड़ बोली सुनकर यहाँ के लोगों को अक्खड़ कह देना यह सिद्ध करता है कि व्यक्तित्व पहचानने का कौशल विकसित करना बाकी है अभी खुद में। मारवाड़ के लोगों की मनुहार मैंने बहुत देखी है, एंजाॅय की है और जी है।  बहरहाल, आ गया हूँ मेरे पापाजी के गुरू श्री डाॅ. गोवर्धनराम जी शिक्षाशास्त्री के आश्रम वाले धोरीमन्ना में। हाँ वही धोरीमन्ना जहाँ अपना दोस्त आरजे रहता है। वही जो गढ़ है समुदाय के हिसाब से देखे तो विश्नोई समाज का। सुबह बालोतरा से सिणधरी, गुड़ामालानी होते हुए पहले तो रामजी का गोल  पहुँचा रोडवेज में, और फिर वहाँ से एक बिश्नोई ट्रैवेल में धोरीमन्ना। ऑवरब्रिज पूर्ण होकर खुल गया है अब हाई-वे वाला। दोप...

सिवाना डायरीज - 58

 सिवाना_डायरीज  - 58 "मुसाफिर हूँ यारों, ना घर है, ना ठिकाना। मुझे चलते जाना हैं...हाँ, चलते जाना..." -वाले फील में हूँ आज शाम से ही। एक पल के लिए माथे पर सल प्रिंट हुये थे जब यूँ मुसाफिर हो जाने की कहा गया, मगर 5 मिनट बाद वो प्रिंट हवा हो गई जब सोचा कि जिंदगी में आये भी तो इसीलिए हैं। सिवाना की थोड़ी सी पहाड़ियाँ धक्का मार रही हैं कि जा दूर-दूर तक फैली रेत देख आ। लूणी नदी बालोतरा के बाद खारी हो जाती है और धीरे-धीरे लुप्तप्राय भी। जा देख आ जहाँ-जहाँ भी पुलों के नीचे रेत पसरी है लूणी के नाम पर। दौड़ने-भागने के इस सिलेबस का जो मुख्य उद्देश्य है, वो परीक्षा में अच्छे अंक लाने के बजाय लाइफटाइम लर्निंग लग रहा है मुझे। सूखी लूणी नदी के सहारे-सहारे कल सुबह से ही लबालब नर्मदा नहर की दिशा में दौड़ना है अब मुझे। देखते हैं क्या होता है। खैर, अच्छा बिता दिन। सुबह पीपलून स्कुल गया था आज अपने स्केफोल्डिंग प्लान को लेकर। मीना मे'म, नीलम मे'म और सविता मे'म से विस्तृत चर्चा की अपने विषय को लेकर। पहली-दूसरी-तीसरी के बच्चों के साथ भी गणना की अवधारणाओं पर खूब बात की। साचौर में उगी बा...

सिवाना डायरीज - 57

 सिवाना_डायरीज - 57 "काॅल कट करके जब मैं जाने वाली थी, तुमनें मुझे रोका क्यों नहीं! मैं चाहती थी कि रोको मुझे तुम।" -ऐसा बोलकर हरबार वो महफिल लूट लेती है। "अब जाने वाले को कौन रोक सकता है। मन था मेरा कि न जाओ तुम, मगर तुम भी तो 'बाय, अच्छे से रहना तुम' कहे जा रही थी बार-बार।" -वो अभी तक सख्त ... होने का अभिनय किये जा रहा था। "बुद्धू हो तुम! थोड़े भी रोमेंटिक नहीं!" "अब जो भी हूँ, यही हूँ।" "मूँह चढ़वा लो तुमसे तो बस। सुनो, गले लगना है मुझे।" -उधर से कोई आवाज नहीं आई। "चुप क्यूँ हो? सुनो ना...गले लगना है मुझे।" -फिर कोई आवाज नहीं आई। एक अनजान सन्नाटे ने एक-डेढ़ मिनट खींच लिया। "चलो कोई बात नहीं। इस खामोशी का मतलब समझ गई मैं। नहीं लग रही गले।" -इस बार वो उदासी की तरफ जाते हुए बोली थी। "जरूरी थोड़े है कि खामोशी का मतलब 'ना' ही हो। हो सकता है बंदा खामोशी से अपनी बाहें फैलाये खड़ा हो गया हो बस! बोलना जरूरी है क्या?" -अपने फैलाये को समेट रहा था अबके वो। "हां.....हाहाहाहा..." -ये 'हां...

सिवाना डायरीज - 56

 सिवाना_डायरीज  - 56 बाजरी कटकर खड़ी थी एक झुंड में खेत में। हिम्मत हार चुकी जमीन को तब तक भी यक़ीन था खुद पर, के निपजता तो है उसमें कुछ। एक रोज थ्रेशर आया और कर गया चूर-चूर। केवल बाजरी को ही नहीं, जमीन की उम्मीदों को भी। अपने दम पर पहाड़ियों का उड़ेला सारा पानी रिस लिया खुद में। मगर ट्यूबवेल जैसी कोई आई मशीन और कर गई वो भी खोखला, इसे। अंडरग्राउंड वाटर के नाम पर रोने के लिए आँसू तक ना छोड़े। उड़-उड़कर रेत आती गई और पसारती गई अपनी सल्तनत इस पर, मगर उफ्फ तक न बोली ये जमीन। कितने ही तेरी जाति-मेरी जाति के शीत-युद्धों को झेलते हुये भी लोकतंत्र जिंदा रखा इसने खुद में। तभी तो सिवाना के अपने घर वाले मम्मीजी कह रहे थे - "कभी नहीं था मेरा सिवाना ऐसा। खूब पानी था मेरे सिवाना में। ये तो जाने किसकी नजर लग गई इसको कि सारी पानी सूख गया। पीने के लिए पानी भी पन्द्रह दिन में एक बार आने लग गया।" बहरहाल, एक स्कूल देखा आज जो श्रेष्ठ है संसाधनों के हिसाब से, सिवाना में आज तक के देखे स्कूल्स में। मतलब ना कि जरूरी कक्षा कक्षों के अलावा पोषाहार कक्ष, स्टाफ-कक्ष, पुस्तकालय कक्ष(रीडिंग काॅर्नर के नाम ...

सिवाना डायरीज - 55

 सिवाना_डायरीज  - 55 'आज फिर दिल ने एक तमन्ना की। आज फिर दिल को हमने समझाया।।' -जगजीत सर की गाई गजल की ये पंक्तियाँ हर बार रुला देती हैं। जितना तिरस्कार महसूस कर रहा हूँ, उसका दशमलव एक प्रतिशत भी नहीं होगा भले। मगर तमन्नाओं का फुलफिलमेंट प्रेम के अलावा कोई कहाँ कर सकता है। बस इसीलिए समझाना पड़ रहा है दिल को बार-बार कि उधर की ज़मीन पर इतना हरापन नहीं ला पाती है तुम्हारी कोशिशें, जितना उधर की एक आवाज ले आती है इधर। कुल मिलाकर जमीर पर लाऊँ बात तो मुद्दा ये है कि कई बार आत्म-सम्मान जैसी कोई शै आकर कचोटती है मन को कि तेरे मन का हो क्या रहा है! कुछ समझ नहीं आ रहा। बीते तीन दिनों से जिस अहमियत की बात कर रहा हूँ, वो सच में शायद है ही नहीं। सम्भलने की जरूरत है। बहरहाल, आसोज ख़त्म हो गया है और काति चालू। इधर सिवाना-मारवाड़ का तो पता नहीं हमारे इधर तो छोटी बच्चियाँ दिख जायेंगी सुबह-सुबह अब तो पास के किसी तालाब, पोखर या हेंड-पम्प पर काति पूजती हुई। पूरे एक महीना व्रत करने वाली बच्चियाँ इसी बीच एक दिन कद्दू समर्पित करती है मंदिरों में, जिसे दीपावली के अगले दिन अन्नकूट में काम में लिया जाता...

सिवाना डायरीज - 54

 सिवाना_डायरीज  - 54 "सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति होती है।" -मेरी वन ऑफ फेवरेट कहानी 'पूस की रात' के कहानीकार का कथन है ये। बिल्कुल गोस्वामी जी के 'समरथ को नहीं दोष गोसाईं' के माफिक। आज पुण्यतिथि भी है मुंशी प्रेमचंद की। लगभग 85 साल से ज्यादा समय तो उन्हें यहाँ से गये हो गया, प्रासंगिकता मगर थमी रही महाराज के लिखे की। खुद में झाँककर देखें तो भी अब इस पंक्ति को ही जीवन-वाक्य बना लेना ठीक लगता है। वैसे मैं खुद भी सोचता रहता हूँ ये कि अपनी सफलता वाली चादर इतनी बड़ी कर दो कि चोरी-छिपे किया, गाहे-बगाहे हुआ और यश-अपयश भरा सारा कुछ उसमें छिप जाये। चित्तौड़ वाले कमल सर मुझे हमेशा कहते थे कि दुनिया परिणाम देखती है। आपने कितना पसीना बहाया, ये भी तब ही पूछा जायेगा जब आप सफल हो जाओगे। अन्यथा हारे हुए के यहाँ तो लोग ढाढ़स बंधाने तक जाने से कतराते हैं। पिछले चार-पाँच दिनों से मैंने भी झाँका है थोड़ा खुद में और थोड़ा आस-पास। लोग चाहे जितने विश्वस्त हो आपके। आपके अचीव कर लिये तक ही विश्वास है उनका। आपकी सम्भावनाओं पर आपको होगा विश्वास, उन्हें नहीं है। और वो करे...

सिवाना डायरीज - 53

 सिवाना_डायरीज  - 53 आखिर जाना कहाँ है मुझे? करना क्या चाहता हूँ? एक पतली सी धार छूट ही जाती है हर बार सच और झूठ के बीच, जब लिखने बैठता हूँ। पूरा-पूरा सच लिख दूँ तो शायद खुद से ही नफरत हो जाये। पूरा झूठ लिख दूँ तो लिखने के साथ न्याय न होगा। परत-दर-परत उखाड़ते हुए भी सलीका ध्यान रखना होता है। सलीका, क्योंकि जरूरत पड़ने पर वापस काम आ सके परत चढ़ाने के। सिवाना चौराहे पर गाँधी जी की मूर्ति पर मालाएँ नई-नई है। दो अक्टूबर को गये अभी दिन भी तो पाँच-छः ही हुये हैं। सोचता हूँ हम सबके द्वारा चढ़ाई ये मालाएँ गाँधी जी के साथ-साथ उनके विचारों पर भी है। खुद के असेसमेंट के लिखने में अचानक बापू की बात इसलिए ले आया क्योंकि और जो भी हो, बापू जितना सच लिखने का साहस कहाँ किसमें होता है! 'माई एक्सपीरियंस विद ट्रूथ' जितनी पढ़ पाया, उसने मुझे शक्ति तो दी है। हम सब भले कितना ही कमजोर बता दें बापू को, उनको पढ़ना हमें साहस जरूर देगा। वापस खुद पर आता हूँ। सोच रहा हूँ अपनी लिखी कथा, कहानी, किस्सा, कविता और ये डायरी, सब मिलकर सच का कितना ही प्रतिशत भर पाते होंगे! बहरहाल, बहुत ही ऊबाऊ दिन। तबियत नासाज चल ह...

सिवाना डायरीज - 52

 सिवाना_डायरीज  - 52 "जहां भर के थके, हारे और मायूस लोग अगर तुम्हारी छाँह में सुस्ताना चाहते हैं। तब तुम्हे इस बात की चिंता किये बिना कि तुम्हें सींचने में किसी ने एक लोटा पानी भी दिया था या नहीें, अपनी शाखाओं का विस्तार कर ही लेना चाहिए। विश्वास करो, जिंदगी की जमीन आँसू और पसीने से सींची मिट्टी में भविष्य में कुछ अच्छा ही निपजायेगी और तब तुम साक्षी रहोगे यह सब देख पाने के।" -खुद के बनाये जाल में फँसते देखा है आपने किसी को! अगर नहीं तो खुद को ही देख लो। सच्ची-सच्ची सोचूँ तो हमारी सारी परिस्थितियों के जिम्मेदार हम स्वयं है। चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक। अब जो बची है जिंदगी, उसमें बन जायें निराश्रितों का घर तो हर्ज क्या है। आखिर हमारे अच्छे-बुरे विचारों को भी शरण तो दी ही थी ना किसी ने। जिंदगी के जिस दौर से गुजर रहा हूँ, खुद का बनाया मायाजाल सोचने पर मजबूर कर रहा है। कशमकश में है दिल की राह चलते राहगीर के सुस्ताने के लिए खुले में खड़ा बरगद का पेड़ हो जाये या सीमेंट-कंकरीट से बनी आलीशान धर्मशाला जिसके मैन-गेट पर चार-स्टेप वाला बड़ा तालाब लगा हो। इस बात की चिंता करूँ कि धर्म...

सिवाना डायरीज - 51

 सिवाना_डायरीज - 51 'गौरी आवे शिवजी ल्यावे .........से मेरा विवाह करावे। देरी न करे, देरी करे तो  शिवजी का त्रिशूल पड़े। गुरू गोरखनाथ जी की दुहाई।।' -मनपसंद लड़के/लड़की से शादी करने का मंत्र है ये। .......... की जगह पर अपने प्रियतम या प्रियतमा का नाम बोलो और 101 दिन तक रोज 21 बार महादेवजी के सामने पाठ करो। हो जायेगी मनवांछित जगह पर शादी। बचपन के एक लंगोटी यार ने बताया था मुझे ये मंत्र जिसकी खुद की अभी तक नहीं हुई है शादी। हो सकता है ये मंत्र जोरदार ही कारगर हो, मगर मेरे साथ पंगा ये रहा है कि .......... की जगह भरने को कंटिन्यू 101 दिन एक ही नाम नहीं भर सका मैं। एक्सक्लेमेटोरी साईन आते रहे टीनएज रोमेंस में भी और कथित सच्चे वाले प्यार में भी। कभी जाति, कभी परिवार, तो कभी आपसी मनमुटाव चेंज करवाता रहा ये नाम। मतलब ना कि भगवान भोलेनाथ भी सोचे कि ये किसी एक पर टिके, तो मैं कदम आगे बढ़ाऊँ। हर इक्कीसवे दिन ये लगभग कंफ्यूज रहता है। सबका तोड़ निकालने की सोची मैंने एक बार। .......... वाली खाली जगह पर 'माता सीता जैसी' बोलने लगा। मगर फिर कोई न कोई नाम ले आता था थोड़े दिनों बाद। और पर...

सिवाना डायरीज - 50

 सिवाना_डायरीज  - 50 या देवी सर्वभूतेषू लक्ष्मी/शक्ति/बुद्धि-रूपेण संस्थिताः... -मूल मंत्र तो 'शक्ति' वाला है, मगर मैं अपनी सुविधानुसार काम में ले लेता हूँ जब भी जगदम्बा का स्मरण करता हूँ। और अकेला मैं क्या हम सब, यही तो करते हैं। मंत्रों के अगर भावार्थ समझ आने लग जायें, तो हमारी प्राथमिकताओं में सबसे पहले लक्ष्मी, फिर शक्ति और अंत में बुद्धि आ ही जायेगी आज के जगत को देखते हुए। जेंडर-स्टीरियोटाईप या यूँ कहें जेंडर-डिस्क्रीमिनेशन काॅन्सेप्ट्स में एक फनी मोमेंट एड करता हूँ। मुझे इस बात की हमेशा शिकायत रही है कि सारे के सारे व्रतों के उद्यापनों में कुँवारी कन्याओं के ही भोजन का प्रावधान क्यों है! एक अकेली संतोषी माता को छोड़ दें तो एक भी भगवान या माताजी ऐसी नहीं है जो छोरों को भी जिमाये। खैर अपन ने तो खूब कटोरियाँ ख़त्म की है खीर की संतोषी माता के नाम पर और अभी भी कर ही रहे है। मगर मेरी शिकायत भी जायज तो है ही।  बहरहाल, सिवाना का अपना 50वाँ दिन और वो भी दुर्गा नवमी, मने मातारानी का दिन। अच्छा जाना ही था। नवरात्रि पूरी मिक्स-वेज जैसी रही सिवाना और भीलवाड़ा के बीच। ऑफिस में ही...

सिवाना डायरीज - 49

 सिवाना_डायरीज  - 49 "एक बात तो साफ है, तुम्हारा ना कलर-सेलेक्शन बहुत खराब है।" "मतलब! मैं समझा नहीं यार। कहाँ, मिस्टेक हो गई?" "यलो शीट पर ऑरेंज कलर से कौन लिखता है भला!" "ओह! साॅरी यार। सच कहूँ तो तुम्हारा कहा सच है। 'हाऊ टू लुक/शाॅ इम्प्रेसिव' में हमेशा खराब ही रहे हैं अपन।" "हाँ झलक रहा है वो तो।" "अरे, बात ऐसी है ना कि तुम्हारे आने के बाद ही रंगों से वास्ता हुआ है यार। पहले तो ब्लेक&व्हाइट ही थी ना जिंदगी मेरी।" -यह बोलते हुए उसने छक्का मार दिया था बीमर पर भी...हाहाहाहा। "वाह! क्या डायलाग मारने लगे हो आजकल। फिल्मी आदमी।" "अच्छा, इसी बात पर गले नहीं लगाओगी?" "बिल्कुल। क्यों नहीं। क्लाॅज युअर आईज एन जस्ट फील कि मैं लिपट गई हूँ तुमसे।" -और उसके बाद दोनों एक ही रंग में फिर से रंगे थे। कविताओं में जिसे प्रेम-रंग कहा जाता है... बहरहाल, आज बस ने एक घंटा लेट किया। सुबह साढ़े पाँच उतारा सिवाना। उतरते ही मनोहरा से बात और इंस्ट्रक्शन पाया कि दुर्गाष्टमी है आज, नहाकर पूजा कर लेना। अपनी मेवाड़...

सिवाना डायरीज - 48

 सिवाना_डायरीज  - 48 'भारत में कुछ मंदिर तो अपने आप में ट्राॅमा सेंटर्स है।' -उदयपुर की रहने वाली सेवानिवृत्त अध्यापिका 65 वर्षीय रेखा जी को मार्च 2018 में अचानक से लकवा मार गया था। बायोलाॅजी की भाषा में बोले तो पैरालिसिस। उदयपुर के जीएमबीएच, गीतांजलि, अनंता और अहमदाबाद के सिविल, राजस्थान, अपोलो के बाद लेक-सिटी के ही पैसिफिक मेडिकल काॅलेज एंड हाॅस्पीटल्स का ट्रीटमेंट चल रहा है अभी। उनका इकलौता साॅफ्टवेयर इंजीनियर बेटा मनीष बताता है कि संतुष्टि के नाम पर केवल यह सीन था कि माँ जिंदा थी बस। उनके घर के कपड़े जहाँ इस्त्री होने जाते हैं, ड्राई-क्लीन वाले उस श्यामलाल के कहने पर पिछले दिसम्बर से ही चित्तौड़गढ़ जिले के झातला माताजी के मंदिर हर शनिवार रात को अपनी एल्टोस लेकर आ रहे हैं दोनों माँ-बेटे। रात्रि विश्राम वहीं करते हैं और सुबह की साढ़े चार बजे वाली आरती में शामिल होते हैं। मनीष बताता है कि माँ अब बैठने लगी है। अपने हाथ से थाली और गिलास पकड़ने लगी है। झातला माता जी की भभूत पूरे शरीर पर लगाने के पहले दिन से ही दिखने लगा था असर। बकौल मनीष, हाॅस्पीटल्स की मेडिसिन्स बस जिंदा रखे है...

सिवाना डायरीज - 47

 सिवाना_डायरीज  - 47 'सिफारिश बड़ी या जान?' -एक परिचित है अपने राजस्थान पुलिस में हेड-कांस्टेबल। उदयपुर के सविना थाने में तैनात सुनील जी के स्टेटस देख रहा था आज। उदयपुर जिले में 'नो सिफारिश' अभियान चलाया जा रहा है अभी। 'नो सिफारिश' मतलब ट्रेफिक नियमों की पालना न करने पर चालान बनाते समय किसी नेता, मंत्री और अफसर की सिफारिश न मानना। मतलब ना कि होंगे आपके चच्चा विधायक! जो ट्रेफिक रूल तोड़ा, आपकी जेब ढीली होने से कोई नहीं रोक सकता। एसपी विकास कुमार जी हैं वहाँ अभी। अपनी 'छुअन का असर' के विमोचन के समय भीलवाड़ा ही थे वे। जोरदार पर्सनलिटी। पुलिस विभाग के हर कर्मचारी को कहा है कि सिफारिश वाली काॅल ना तो करनी है और ना ही अटेंड करनी है। हमारे सुनील जी ने तो एक साफ-साफ स्टेटस लगा रखा है कि जो मेरे नाम की सिफारिश करे, उसका दुगुना चालान काटो और एक दूसरे में लिखते हैं कि मुझे कोई भी सिफारिश लगाने के लिए काॅल न करें, सीट-बेल्ट बांधें और हेलमेट पहनें। सीधी-सपाट बात यह है कि तंत्र जो चाहे तो कुछ भी कर सकता है। इसे अच्छी नकेल कहकर अप्रिशियेट करना चाहिए लोगों द्वारा। बहरहा...