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Showing posts from December, 2022

सिवाना डायरीज - 138

 सिवाना_डायरीज - 138 प्रेम मुक्त कर देने का नाम है। बिल्कुल वैसे ही जैसे हमें अच्छा लगे या बुरा, समय हमें मुक्त कर देता है। कैलेंडर को कोई मतलब नहीं कि आपने पन्ना पलटा या नहीं, उसे अपनी तारीखों में इजाफा करते रहना है। कैलेंडर को भी हम थामें रखते हैं, वो तो मुक्त करता ही है शनै-शनै हमें। समय कहाँ रुकता है किसी के लिए। पीड़ा होती तो है मुक्त करने में। मगर यह जरूरी भी तो है।  मैंने जिंदगी का खेल बना रखा है उम्र के इस पड़ाव तक तो। कुछ भी तो नहीं जो ढंग से साधा हो। ना कॅरियर, ना प्रेम, ना रिश्ते  ना दोस्ती और ना अपना होना ही। मन से मतलबी न होते हुए भी मतलबी ही साबित होता रहा मैं, कम से कम अपनी नजरों में तो। सच बोलूँ तो ऐसा तो नहीं ही सोचा था कभी भी। एक पहाड़ है माथे पर जिसका नाम लूँगा तो लोगों की नजरों के पहाड़ से गिर जाऊँगा। दीमक की तरह खाये जा रहा है कुछ मुझे। आज का दिन भी इस साल की तरह ऐसे ही आलस्य में ही निकल गया। हर बार की तरह इस बार की रातों को भी खूब दिलासे दिये मैंने अगली सुबहों को ठीक करने के। सुबह से 'कल से करूंगा' में ही निकल गया दिन। वार्षिक प्रतिवेदन बहुत ही बेतरत...

सिवाना डायरीज - 137

 सिवाना_डायरीज - 137 "धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब-कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।।" - कबीर जी का दोहा आगे बढ़ने को माॅटिवेट करेगा अब मुझे। सच यह भी है कि धैर्य सबसे बड़ा है। अतीत अच्छी स्मृतियों का गुलदस्ता रहे तो ठीक है, बाकि पीछे खींचने की रस्सी न हो जाये बस। बड़ा लक्ष्य लिया है, तो समय भी बड़ा ही लगेगा। एकदम से जलने वाली आग दो-तीन दिनों की होती है, मुझे साबित करना है कि ये आग आज-कल में जली हुई नहीं है। 2022 अपनी अंतिम सीढ़ियों पर खड़ा है। दरवाजे पर 2023 खड़ा है। देखा नहीं है कि उदास है या मुस्कुरा रहा है। मगर हाँ, जो नहीं मुस्कुराये तो भी मुझे भरनी हैं इसमें मुस्कुराहटें। खैर, आलस्य में बीता दिन। सुबह से बैठा हूँ वार्षिक प्रतिवेदन तैयार करने में। मगर बहुत परेशान कर रहा है इसका ये फाॅरमेट। ग्यारह बजे के लगभग सिवाना के जैन समाज का क्रिकेट टूर्नामेंट देखने गया था रघुनन्दन जी के साथ। शानदार आयोजन है उनका। उससे पहले ही कमरे की ठीक से कर ली थी साफ-सफाई। लौटकर साजिया बनाया व्रत खोलने के लिए। कथा भी गैस के सामने खड़े होकर ही की आज संतोषी माता की। बाकि दिन-भर में एक-दो च...

सिवाना डायरीज - 136

 सिवाना_डायरीज - 136 'कभी-कभी आपके प्रस्ताव पर किसी का 'हाँ' कह देना आपका दुर्भाग्य होता है। असल में वो आपके लिए होता ही नहीं है। वो आपकी सफलता के पहिये को कभी भी आगे की तरफ नहीं धकेल सकता। इसलिए यहाँ यह 'हाँ' आपका दुर्भाग्य है।' - विकास दिव्यकीर्ति सर कह रहे हैं ये बात। दुनिया में ना, कहने-सुनने की इतनी सारी बाते हैं कि उनमें से ज्यादातर हमें हम पर दागी गई लगेगी। निराशाओं और असफलता के कारणों और उनसे बाहर निकलने की जब भी कोई बात करता है, जानें क्यों मैं खुद को जोड़ लेता हूँ उससे। दौर बुरा चल रहा है - अगर ऐसा कहूँगा तो अपमान ही जायेगा मेरी सारी मुस्कुराहटों का। बस मैं नहीं रम पा रहा इनमें। बहरहाल, बालोतरा ही हूँ आज भी। दिनेश भैया के घर नींद खुली सुबह। उनका बेटा रुद्राक्ष बहुत प्यारा है सच में। आज तो मुझसे पहले ही नहा लिया उसने। हम भी तैयार होकर पोहे खाकर ऑफिस आ गये लगभग टाईम पर। काम के नाम पर कुछ ज्यादा नहीं हो पाया। मुझे ही कम्पलीट करनी है पूरी एनुअल रिपोर्ट एंड रिव्यू, जो कि बहुत मुश्किल लग रहा है मुझे। लंच के लिए भैया के घर ही गये हम। शाम होते-होते लौट आया हूँ...

सिवाना डायरीज - 135

सिवाना डायरीज - 134

 सिवाना_डायरीज  - 134 "शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका के स्त्रोत तय करना नहीं, विमर्श की समझ तय करना भी है।" - अपन ने ही लिखी है ये लाईन। अभी-अभी ही। और कुछ नहीं तो ऐसी लाईन्स ही सही। वैसे भी कुछ खास किया नहीं आज बताने लायक। शायद आज तक का सबसे औसत दिन।  बहरहाल जो-जो काम सुरेश भैया देकर गये थे, लगभग पूरे हो गये हैं। लेट उठा और लेट ही गया ऑफिस भी। बाहर वाली टेबल पर बैठकर ही काम किया दिन-भर। फील्ड-अड्डा के सारे अपडेशन पूरे कर दिये हैं और उपस्थिति भी लगभग कर दी है अपडेट। लगभग चार बजे ही आ गया था घर। मक्की का आटा नहीं मिला मुझे पूरे सिवाना में कहीं। रघुनन्दन जी के साथ घूमते-घूमते राजपुरोहित समाज के छात्रावास में जाना हुआ। गजब की व्यवस्थाएँ हैं वहाँ। लौटकर जो बिस्तर पर लेटा, रात के दो बजे खुली नींद और अभी ही लिख रहा हूँ ये। तो बस हो गई आज की डायरी। मन समझा रहा है खुद को। समझा रहा है कि बहुत असर नहीं पड़े जब लोगों पर आपके होने या न होने का, तब आपको भी वैसा ही हो जाना चाहिए। बस बाकि सब ठीक है। शुभ मध्यरात्रि... - सुकुमार  27-12-2022

सिवाना डायरीज - 133

 सिवाना_डायरीज - 133 'पहले फैसला लेकर फिर संभावनाओं पर विचार करना बिल्कुल वैसे ही है जैसे मन का उत्तर लिखकर फिर प्रश्न में उसके अनुरूप स्थितियाँ बनाना।' - विकास दिव्यकीर्ति सर का 'फैसले कैसे लें' एपिसोड देख रहा था अभी यू-ट्यूब के उनके नये चैनल पर। लगा कि अनन्त गलतियाँ कर जाते हैं हम अक्सर इस विषय पर। मैंने तो कई की है। एक बार 'सनकी' की संज्ञा भी मिली हुई है और कई बार महसूस हुआ भी है कि हाँ मैं थोड़ा-थोड़ा वैसा ही हूँ। तुरंत निर्णय लेकर फिर हर जगह उसे जस्टीफाई करते रहना अक्सर हर कोई करता रहता हैं। मैं खुद को ठीक करने की कोशिश के कितने भी दावे कर लूँ, असल में मैं भी उनसे इत्तर नहीं हूँ। खैर, नींद नहीं खुली आज बस में तो थापन तक पहुँच गये लेटे-लेटे ही। फिर आसोतरा जगतपिता ब्रह्माजी की शरण में उतरे। मंगला आरती में भी गया वहीं फिर सवा छः बजे एक भैया की गाड़ी में सिवाना के लिए बैठा। एकांत जो पहले काफी समय से सध हा था, आज फिर हार गया। दिन-भर ऑफिस में ही रहा मैं। उपस्थिति वाला सारा काम लगभग कर दिया है शाम तक। दिनेश भाई बालोतरा बुला रहे हैं परसों से ही। उनका कहना ठीक है कि...

सिवाना डायरीज - 132

 सिवाना_डायरीज - 132 "भक्त होने की पहली शर्त आदमी का भोला हो जाना है।" - किसी कथा में सुनी थी ये बात। अपने ज्यादा सोचने वाली और तर्क-कुतर्क करने वाली आदतों के बीच कोशिश कर रहा हूँ कि असल में भोला बन जाऊँ। जिंदगी के हर लम्हें में जहाँ हार-जीत और क्या खोया-क्या पाया में उलझा रहता हूँ मैं, भोला होना जस्ट केवल इसका उलट हो जाना है। कहने-सुनने में कितना आसान लगता है ना ये सब। मुश्किल कितना है ये खुद भोले को भी नहीं पता। बहरहाल घर पर दूसरा दिन। बबलू और मीनाक्षी भाभीजी की बोलमा का प्रसाद था बीड़े वाली माताजी के। माँ को सुबह जल्दी छोड़कर आया वहाँ। फिर नहा-धो तैयार होकर लगभग 11 बजे सिया के साथ अपन भी वहीं थे। दाल-बाटी खाई भरपेट। अरे हाँ, चूरमा भी। लौटकर आश्टे-डू अखाड़े के समापन कार्यक्रम में गया कि माँ की काॅल आ गई कोटड़ी चारभुजानाथ जी के यहाँ जाने के लिए।मेरा बहुत मन था, तो कल सुबह ही इच्छा जाहिर की थी मैंने। फिर मैं, पापा, सत्तु मामा, बड़े ताऊजी और माधव अंकल सब साथ गये अपनी ही कार में। काॅलेज का दोस्त कैलाश मिला वहीं। साथ में गोल-गप्पे खाये हम दोनों ने। लौटकर खिचड़ी खाई घर पर। भैया छ...

सिवाना डायरीज - 131

 सिवाना_डायरीज  - 131 "बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो। चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे।" - निदा फाजली का ये कहना ही बच्चों का असल में विकास है। जमाना जब बच्चों को कंप्यूटर कर देना चाहता है, तब ये कहना ज्यादा जरूरी लगने लगता है। जिंदगी के सबसे हसीन लम्हों को जीने देने के बजाय बच्चों को यूँ बारहमासी मशीन बना देना कहाँ ठीक है! अपने मन वाले सर्वे के मुताबिक नब्बे से ज्यादा प्रतिशत है बचपना छिन जाने वाले बच्चों का। जाने क्या बनाना था और जाने क्या बना रहे हैं हम बच्चों को। बहरहाल, घर हूँ आज। अपने घर। सुबह से शाम तक बचपना ही जीया आज। बस से आकर सोया तो हूँ ही नहीं। जोया, ईशू, आस्था, कानू और शिवाय से ही घिरा रहा दिन-भर। ईशू, आस्था और शिवाय के स्कूल जाने से पहले ही 'आई एम कलाम' का आधा पार्ट देख लिया हम सबनें। फिर नहा-धोकर मामासा के संयोजन में चल रहे आश्टे-डू-अखाड़े की राज्य-स्तरीय चैम्पियनशिप में जोया और कानू के साथ चला गया। निक्की उधर ही थी तो वह भी साथ हो गई। नाश्ता भी करके आये राहुल की दुकान पर। तनुज मिल गया यहीं। बहुत दिनों बाद मिला तो महसूस हुआ कि ब...

सिवाना डायरीज - 130

 सिवाना_डायरीज  - 130 "प्रेम में ठगना बहुत जरूरी है। जब प्रेम बहुत गहरा हो जाता है, तब प्रेमिका प्रेमी को छलिया, ठग और कपटी कहने लगती है। जो जितना बड़ा ठग होगा, वह उतना ही बड़ा प्रेमी।" - हरिशंकर परसाई जी घर-परिवार-संसार लिखते हैं। कितनी सच्ची बात है ना ये। ये ठग कहलाना कितना मिठा है ना! इस छलिया में कान्हा हो जाना महसूस होता है। इस कपटी हो जाने में भी खूब मजा है। जब प्रेमिका असल में ये उपमाएं देने लग जाये, तो समझिये कि परवान चढ़ रहा है प्रेम।  बहरहाल, शुक्रवार और अमावस एक साथ रही आज। व्रत निभाया अपन ने ढंग से। सुबह आठ बजे ही ऑफिस पहुँचकर कल की मूवी वाली रिपोर्ट तैयार की। उसके बाद डिंपल दीदी की स्कूल राजकीय प्राथमिक विद्यालय, छोटी हिंगलाज जाना हुआ। छोटी सी स्कूल है। छोटी सी से मतलब 20-25 नामांकन वाली। मगर सबके सब बच्चे हँसते-मुस्कुराते दमकते चेहरों वाले। 'गुड माॅर्निंग' के बजाय 'राधे-राधे' बोलते हैं हिंदी के शब्द पढ़ना उन बच्चों को भी आता है, जिनका स्कूल में नामांकन नहीं हुआ अभी तक। खुशमिजाज है सब के सब। खूब सारे खेल, कविता, कहानियाँ और पढ़ाई की बातें हुई। जब ...

सिवाना डायरीज - 129

 सिवाना_डायरीज  - 129 "जो यह पढ़े हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।" - हनुमान चालीसा कोई भी, कहीं भी, कभी भी पढ़ सकता है। कोई जगह, कोई समय और खास इंसान के होने की जरूरत नहीं है। आपको सिद्धि मिलेगी, और इस बात के साक्षी स्वयं माता गौरी के 'सा' अर्थात भगवान महादेव होंगे। सच बोलूँ तो इतने सुंदर अर्थ की कल्पना भी नहीं कर पाया आज तक मैं। खूब पढ़ी है हनुमान चालीसा और आज भी पढ़ता हूँ, मगर इन पंक्तियों का अर्थ आज बाल-व्यास शशि शेखर जी के मुँह से सुना पहली बार। इतना अद्भुत लगा सच में कि मन बार-बार यही स्मरण करने को हो रहा है। खैर, दिन ठीक से शुरू नहीं हुआ आज। एलएससी में जाने का मेरा सारा मन खराब हो गया जब पता चला कि हरीश भाई का पहले से तय था। मन में कुछ नाराजगी आई है अपनी ही ऑर्गेनाइजेशन के लिए। यार सही-सही बताना होता है अगर आपको जानकारी हो तो। यूँ लगा जैसे हरीश भाई को शेयर करना चाहिए था अपना जाना निश्चित होना, अगर वो पहले से जानते थे। या फिर डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर रवि जी क्लीयर कहते सुरेश जी से कि हरीश एज ए फेसिलिटेटर जायेंगे वहाँ। दिन-भर उदास रहा आज इस चक्कर में। परेशान...

सिवाना डायरीज - 128

 सिवाना_डायरीज  - 128 "नेकी की राहों पे तु चल। रब्बा रहेगा तेरे संग।।" - एक परिचित की काॅलर-ट्यून है। जब भी सुनता हूँ, नई ऊर्जा मिलती है इस गाने से। सब लोग यही जानने को लेकर एक्साइटेड हैं कि सच में अपने किये का फल मिलता है क्या दुनिया में! मैं खुद भी बहुत परेशान हूँ ये सोच-सोचकर। मन को कैसे भी समझा लूँ, मगर इसका उत्तर सच में कोई सिद्ध नहीं कर पायेगा। खैर, सुबह उठते ही हरीश भाई को काॅल किया आज गर्ल्स सीनियर सैकंडरी स्कूल, सिवाना में एडाॅलसेंट्स के साथ कुछ बात करने को लेकर। साँवलराम जी प्रिंसिपल हैं वहाँ और सिवाना के पीईईओ भी। बहुत सहज व्यक्तित्व है। अभी पिछली समावेशी शिक्षा वाली ट्रेनिंग में खूब साथ रहा उनके। तो बस नहा-धोकर सवा दस बजे से ग्यारह बजे तक प्रतीक्षा की हरीश भैया की स्कूल के बाहर ही। सरकार के चार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इनकी योजनाओं वाले विषयों पर निबंध, वाद-विवाद और क्विज काॅम्पीटिशन था आज ही। हमें भी वहीं बैठने का अवसर मिला। साँवलराम जी बहुत सम्मान देते हैं सभी को। वहाँ से लौटकर पहले अपने यहाँ आये और खिचड़ी और हलवा बनाकर खाया हमनें। फिर ऑफिस ही रहे पूरा दिन।...

सिवाना डायरीज - 127

 सिवाना_डायरीज  - 127 "उसको जीने के सिवा और कोई वादा न होगा। तुम उसे मेरी सुबह कह दो, कुछ भी ज्यादा न होगा।।" - खूब अंधेरों में भी उजला लगता है प्यार का चेहरा। मैं जब-जब सोचता हूँ प्रेम, मेरे सामने आ जाता है एक मुखड़ा हँसता-मुस्कुराता सा। कई दफा लगता है कि क्यों ना कल्पनाओं में ही निकाल दूँ पूरी जिंदगी, यूँ मुस्कुराहटें सोचते-सोचते। सच में तो यही किये जा रहा हूँ। मगर ये ठीक कहाँ हैं! मुझे करने होंगे ऐसे काम जो खुशी दे पाये किसी को। भैया का बर्थ-डे है आज। मुझे घर की याद आई दिन-भर। कोटड़ी चारभुजानाथ जी के गये थे सब, मुझे भी जाना हैं। बहरहाल, ऑफिस में ही रहा आज दिन-भर। लेसन-प्लान के आगे एग्जीक्यूशन और टीचर्स-रिव्यू भी तो लिखने थे उस वर्ड-फाईल में। थोड़ा और ठीक करके दिनेश भाई को भेजी फाईल बस। यही हुआ मुझसे दिन-भर में। शाम को बच्चों के साथ डांस भी किया खूब सारा। बोले तो भैया का बर्थ-डे सेलिब्रेट हो गया। हरीश भैया के साथ खाना भी बाहर खाया और लास्ट में गाजर का हलवा भी। कुल मिलाकर दिन अच्छा हो गया। मन उलझा रहा आज उस एक काॅल के कारण। जख्मी शेर जैसा बर्ताव करने लगा हूँ। कोई छेड़ भी दे ...

सिवाना डायरीज - 126

 सिवाना_डायरीज   126 "हिसा बुरी चीज है, मगर दासता उससे भी बुरी है।"  - आरएएस मैन्स का एक पुराना पेपर देख रहा था, उसमें पल्लवन के लिए प्रश्न था इससे जुड़ा हुआ। किसी की दासता में रहना, सच में सबसे ज्यादा पीड़ादायक है। दासता हर बार शारीरिक ही नहीं होती, अक्सर मानसिक भी होती है। और मानसिक दासता और किसी भी दुख से ज्यादा बड़ी है। एक बात तो है कि धीरज नहीं है मुझमें। और धैर्य की कमी पूरे जीवन को तहस-नहस कर देती है। ये महसूस किये जा रहा हूँ आजकल।  खैर, सप्ताह का पहला दिन सोमवार। खूब सारी उम्मीदें लेकर आता है ये कि इसके खत्म होने तक दिमाग में कुछ ज्यादा परोसूंगा अच्छा कंटेंट। मायलावास की दोनों स्कूलों में जाना हुआ आज। लर्निंग-लाॅस वाले आरकेएसएमबीके वाले पेपर चल रहे हैं सभी बच्चों के। लंच से पहले उच्च प्राथमिक विद्यालय, मालियों का बेरा स्कूल में था। दूसरी-तीसरी क्लास के बच्चों से बातें हुई ढेर सारी। लंच के टाईम टीचर्स से भी गपशप हुई। लंच के बाद गर्ल्स अपर प्राइमरी में रहा, मतलब अपने विनोद भाऊ वाली स्कूल में। छठ्ठी क्लास में गया वहाँ। विनोद भाऊ से ढेर सारी बातें हुई स्कूल ...

मन_एक्सप्लाॅर - 3

 मन_एक्सप्लाॅर - 3 मेरे हिस्से के कई तनाव वह अपने कमरे की खूँटी पर टाँगे रखता है। मेरे हाथों की रेखाओं में जो राजयोग बताया था किसी ज्योतिष ने कभी, उसका सपना मेरी आँखों से ज्यादा उसकी कोशिशों में पलता है। मन में कुछ खास कर जाने का बीज बोया भले ही मैंने है, मगर उसे सबसे ज्यादा खाद-पानी उसी ने दिया है। कई बार मिट्टी बदली मेरे मन ने अपनी ही जिद से, अपनी परवाह से मगर उसने सूखने न दिया कभी इस पौधे को।   जिस समाज में रहता हूँ, वयस्क-श्रेणी में आते ही अपना हिस्सा मांगने लगे हैं बच्चे पिताजी से। मगर तीस की देहरी के ऊपर-नीचे खड़े हम दोनों ने खुद को पिताजी का हिस्सा मान रखा है। जब कभी खुद के लिए सोचता हूँ तो हो सकता है उस 'खुद' में मैं अकेला रहूँ, पर उसके खुद में हम सब शामिल रहे हैं हमेशा। मुझे खुद से ज्यादा यक़ीन भी यकीनन उसी पर है कि कभी मैं नुकसान कर लूँ खुद का, मगर वह नहीं होने देगा।   भैया-भाईसाब की हमारी केमिस्ट्री लगभग सबको उलझाये रखती है। बहुत ज्यादा नहीं जानने वाले हमेशा कंफ्यूज रहते हैं कि बड़ा कौन है! मेरा मन हमेशा यही कहता आया है कि दो साल पहले जमीन पर आ जाने के बाद भी श...

सिवाना डायरीज - 125

 सिवाना_डायरीज  - 125 "सुण जीवन संगराम री, एक बात निराधार। चाले जां की जीत है, सोवें जा की हार।।" - ऐसे ही गूगल पर पढ़ रहा था कुछ, तो नजर पड़ी इस दोहे पर। बहुत ठीक लग रहा है ये जीवन के लिए। 'चाले जां की जीत है' - सही-सही व्याख्या है जीवन की। मुझे भी अब बस चलते जाना है। बहुत बढ़ा लिया अब इस माथे का भारीपन। अब बस इसे अपनी मेहनत से सरल करना है।  बहरहाल, आँखें बाड़मेर की होटल कलिंगा में खुली आज। नहा-धोकर रवाना हुए हम सब किराडू मंदिर देखने जाने के लिए। रास्ते में छोले-भटूरे खाने के लिए भी रुके। किराडू मंदिर गजब के हैं। ग्यारहवीं सदी के सोलंकियों का एक बड़ा केंद्र था परमारों का ये शहर। एक लोककथा के अनुसार एक साधु के श्राप से शापित है ये पेराफेरी। रात को आज भी कोई नहीं रुक पाता है वहाँ। खूब सारी फोटोग्राफी के बाद वापस बाड़मेर आये, तब नया परचेज किया अपना ट्राई-पाॅड मिला वहाँ। सागर देने आ गया था रोड़ पर ही। बायतू शाहनवाज भैया के यहाँ खाना खाया और अभी रात आठ बजे तक पहुँच पाया हूँ घर। बिस्तरों पर लेटे-लेटे आगे की सुध ले रहा हूँ। मन को मंजिल वाले खूँटे पे बांधकर रखा है अभी तक तो।...

सिवाना डायरीज - 124

 सिवाना_डायरीज  - 124 "थोड़ा सा अहंकार-शून्य और साहस तो चाहिए ही होता है ऊपर उठने के लिए। उड़ने के लिए अगर केवल पंखों की ही आवश्यकता होती, तो ईश्वरीय कण हिग्स-बोसोन बना लेने वाला आदमी दो पंख भी न बना लेता खुद के लि!!!" - बस वो ही साहस हर दूसरे दिन काफूर हो जाता है मुझमें। कल से लिया सुबह तीन-चार घंटे पढ़ने का व्रत अगले ही दिन ढह गया। व्यस्तता का बहाना दे हर बार खुद को पागल बनाता आया हूँ मैं। लेकिन जिंदगी में ये ठीक जगह तो नहीं ले जाने वाला! सब-कुछ जानते हुए भी मैं ठीक नहीं कर रहा हूँ अपने भविष्य के साथ। खैर, सुबह साढ़े छः उठा और तैयार होकर सात बजे निकला घर से बालोतरा की बस के लिए। सुरेश जी और हरीश भाई के साथ लगभग पौने आठ बजे निकल पाया। एक पकवान, काॅफी और बिस्किट का पैकेट निपटा लिये थे आज पहले ही। बाड़मेर टीम मीटिंग का कोई स्पेशल एजेंडा नहीं था, बस उत्तराखंड के स्टेट-काॅर्डिनेटर शोभन जी के साथ गपशप टाईप बातचीत थी। उत्तराखंड राज्य और वहाँ के काम के बारे में काफी कुछ समझाया उनके साथ आये मयंक जी ने। शोभन जी बहुत ही सहज और सुलझे हुये व्यक्ति है। शाम को सिंगिंग-डांस जैसी कुछ एक्टिव...

सिवाना डायरीज - 123

 सिवाना_डायरीज  - 123 "एक जिंदगी में आदमी प्रेम करना सीख पाये या न सीख पाये, बस इंसान के इंसान होने की कदर करना सीख जाये। पूरी दुनिया ठीक हो जायेगी।" - खूबसूरत लग रही है ना बात। कितना सुकून भी दे रही है। मैं भी वक्त की जिस नाव में सवार था। बहुत ठीक लगता था उस नाव में रहना मुझे। नाव की लकड़ी को ही गालियाँ दे दी एक बार मैंने। नाव उलट गई आगे जाकर। सीधी-सपाट बात यह है कि अगर मानवीयता का सम्मान न होगा, तो प्रेम भी जल्दी ही छिटकेगा आपसे। बहरहाल, लास्ट वर्किंग डे ऑफ दिस वीक। प्लान तो था कि ऑफिस में ही रुककर इयरली रिव्यू लिखेंगे। बट सुरेश भाई बिजी थे तो अपन भी निकल लिये आज हरीश भाई के साथ। दो स्कूल्स में जाना हुआ आज। निर्मला मे'म वाली निम्बला नाडा स्कूल और मेली वाली ही मेघवालों की ढाणी स्कूल। निम्बला नाडा स्कूल बहुत अच्छी लगी सच में। सुंदर सा कैम्पस और पेड़-पौधे खूब सारे। तीसरी-चौथी-पाँचवी के बच्चों के साथ बैठा मैं। खूब हँसे सब मिलकर। मेघवालों की ढाणी स्कूल में भी बाधा दौड़ खेला हमनें। घर लौटकर दाल-टुक्के बनाकर खाये और फिर ऑफिस गया। संतोषी माता का व्रत शुरू किया हैं फिर से। खट्टा...

सिवाना डायरीज - 122

 सिवाना_डायरीज  - 122 "एक अच्छे लोकतंत्र में सत्ता की रोटी उलटती-पलटती रहनी चाहिए।" - समाजवाद के नायक लोहिया जी ने कही है ये बात उस समय जब हमारे देश में राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में सत्ता के लिए आज जैसी ही स्थिति थी। 'इंदिरा इज इंडिया' और 'इंडिया इज इंदिरा' जैसी परिभाषाएँ गढ़ी जा रही थी तब। आज भी लगभग यही सीन है। बस 'डेमोक्रेसी खत्म हो रही है' वाली लाईन से सहमत नहीं हूँ। बाकि खूब सहमत हूँ लोहिया जी से। खैर,आज बालोतरा थे दिन-भर। बाड़मेर के पुराने डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर और फिलहाल उत्तराखंड स्टेट काॅर्डिनेटर शोभन जी से मिलने के लिए। बालोतरा-सिवाना टीम की मीटिंग भी अनौपचारिक हो ही गई आज। आलू-पराठे निपटाये सबने मिलकर। रवि भाई भी आये थे शोभन जी के साथ। स्मार्ट वाॅच के लेकिन लेमिनेशन हो ही गया आज। शाम को पाँच बजे आ भी गये हम वापस सिवाना। बाईक पर आते हुए सुरेश भाई के साथ कुछ बातचीत हुई जिससे मुझे आगे की कुछ दिशा मिली। कल शुक्रवार है, कुछ ठीक करने की सोच रहा हूँ अभी यहीं घर में पड़े-पड़े... मन खुद के लिए काम करने को लेकर मजबूत है अभी यो। बस ये रही करता रहे... - सु...

सिवाना डायरीज - 121

 सिवाना_डायरीज  - 121 "राजपूतों के उदय का सबसे प्रामाणिक कारण सामंतवाद और भूमि अनुदान रहा।" - कितना मुश्किल है ना इस तरह से विवादास्पद विषयों पर इतने जोर से टिप्पणी करना? अवध ओझा सर फायर है सच्ची। एक न्यूज चैनल पर कोई सी सीरीज है उनकी, जिसमें इतिहास के ऑथेंटिक फेक्ट्स बता रहे हैं दादा। मतलब ना आग से खेलने की आदत हो गई है दादा को। इधर वाले हो या उधर वाले, सब अपने-अपने पाजामे पहना रहे हैं इतिहास को। किसी की लम्बाई कम पड़ गई है और कहीं-कहीं टाईट हो जाने से फटने भी लगा है पाजामा। मगर बाज कोई नहीं आ रहा। अवध महाराज के इस झंडे में काफी कुछ प्रेक्टिकलिटी है। मैं कभी-भी नहीं हूँ उनका अंधभक्त मगर बंदा क्रिटिकल इश्यूज पर इतनी सहजता से कर लेता है बात कि सैल्यूट करने का मन होता है। बहरहाल, विनोद भाऊ की स्कूल में था आज। जीजीयूपीएस, मायलावास में। विनोद भाऊ के पापा आये थे पहली बार स्कूल में और वो भी खूब सारी मिठाई लेकर। मनोज मे'म और सरोज मे'म ने बाकि के नाश्ते की सारी तैयारी कर रखी थी। लंच कर लेने के तुरंत बाद वही निपटाया। तीसरी कक्षा के बच्चों के साथ कविताओं और गिनती पर काम किया भै...

सिवाना डायरीज - 120

 सिवाना_डायरीज  - 120 "जिस्म क्या है, रुह तक सब कुछ खुलासा देखिए, आप भी इस भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए। जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिज़ाज, उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए।" - अदम गोंडवी सर की पंक्तियाँ हैं ये। हमारे ऑफिस में एक चार्ट पर लिखी हुई है। रोज पढ़ता था, पर कभी इतना गौर नहीं किया जितना आज महसूस हुआ जब हरीश भाई यहाँ काॅलेज में बच्चों के बीच बोल रहे थे। सच में युवा पीढ़ी सारी निराश है आज के समय में। सबके सामने तलवार लटकी है भविष्य के नाम की। एक प्रतिष्ठित और सुरक्षित नौकरी देने वाली संस्था में काम करते हुए भी मैं बहुत असहज हूँ युवा होने के नाते। आगे की सोचता हूँ  तो कंपकंपी सी छूटती है।  बहरहाल, सप्ताह का तीसरा दिन। वैसे ही निकल गया जैसे बाकि के निकल रहे हैं आजकल। नौ बजे ऑफिस गया और बारह बजे तक विशुद्ध रूप से गाने सुने बस, वहीं बैठकर। राहुल का वर्थ-डे है तो उससे बात की आज। बारह बजे काॅलेज गये हम यहाँ के। सिवाना के काॅलेज का नाम है - वीर नारायण परमार राजकीय महाविद्यालय। सिवाना के संस्थापक है वीर नारायण परमार जी। काॅलेज में स्वीकृत नौ पद है। जिनमें...

सिवाना डायरीज - 119

 सिवाना_डायरीज  - 119 "मेरी बाइक की पिछली सीट जो अब तक अकेली है, इधर लगता है उसने कोई ख़ुशबू साथ ले ली है ! मगर इस बीच मैं बाइक पे जब-जब बैठता हूं तो, मुझे लगता है कांधे पर कोई नाज़ुक हथेली है !!" - इमरान प्रतापगढ़ी जी की लाईन्स है ये। पहली दफा ही यूँ लगा कि मैं थोड़ी और ठीक लिखने लगूँ शायरी, तो लिख लूँगा ऐसी भी। दो-तीन दिन से काफी जिक्र सुन रहा हू उनका तो, आज सर्च मार लिये गूगल और यू-ट्यूब पर। राज्यसभा सांसद है कांग्रेस की तरफ से नये-नवेले। मुझे अच्छा लगा एक डिबेट में उनको सुधांशु त्रिवेदी जी से बहस करते देखते। जैसे-तैसे कोई आया है कांग्रेस की तरफ से थोड़ी ढंग से बहस करने वाला। बहरहाल, नया सप्ताह हो गया है शुरू। नाश्ते में कुछ नहीं खाया आज और निकल लिया मैं स्कूल विजिट पर। लौटते-लौटते भूख ने हालत खराब कर दी। उच्च प्राथमिक विद्यालय, मालियों का बेरा जाना हुआ आज। तीनों टीचर्स को साथ लेकर बैठा। अपनी बात ढंग से कह दी आज। अपर प्राइमरी में परीक्षाएँ चल रही है धड़ल्ले से। मोहन जी उसी में बिजी रहे। घर आकर मेगी बनाकर खाई। शाम को ऑफिस से निकलने के बाद हरीश और मैंने चाउमीन और दूध-जलेबी भ...

सिवाना डायरीज - 118

 सिवाना_डायरीज  - 118 'पूछ लेते वो बस मिजाज मेरा, कितना आसान था इलाज मेरा। मैं मोहब्बत की बादशाहत हूँ, मुझ पे चलता नहीं है राज मेरा।।' - फहमी बदायूँनी जी का शेर मुझे खुद की याद दिला देता है। याद दिला देता है कि कोई हाल-चाल पूछ ले। कोई पूछ ले कि सच में ठीक हो ना! कोई पूछ ले कि मन से भी ठीक हो ना! इंतज़ार भी करूँ या नहीं, बीच में रहता हूँ। और इसी बीच में, हमेशा इंतजार भी करता रहता हूँ। इंतजार उसका जो कहकर गया है कि धरती इधर से उधर हो जाये, वो फिर से नहीं लौटेगा। इंतज़ार उसका जो बस इंतज़ार रह जाना है। न जाने क्या होगा, कुछ भी नहीं पता! लोगों को सम्भालने के लिए जाना जाता हूँ, खुद भटक रहा हूँ। बहरहाल, रविवार छुट्टी के दिन जैसे जल्दी ही निपट गया। सुबह क्रिकेट खेला सिवाना बड़ी स्कूल में आज। मजा आया। लौटकर घर के छोटे-बड़े काम निपटाये और पहुँच गया दो बजे ऑफिस। टीचर्स को बुलाया था हरीश भाई ने शंका-समाधान और टीएलएम गाइडेंस के लिए। चार बजे के लगभग हिंगलाज माता के गये आज सब लोग। परिवार सहित सुरेश भैया, हरीश, एक भैया रोहित राठौड़ और अपन। वापस आकर डुग्गू और बब्बू के साथ पिज्जा निपटाया रमेश म...

सिवाना डायरीज - 117

 सिवाना_डायरीज  - 117 'दुनिया तुमसे तुम्हारा मन और सुकून नहीं पूछेगी, वह केवल तुम्हारा पद और तनख्वाह जानने के लिए बनाई गई है।' - किसी महान विचारक का कहा नहीं है ये। अपने ही मन में चल रहा था तो लिख दिया। असल में दुनिया ऐसी ही है। किसी को मतलब नहीं कि आप खुश है या नहीं। असल में हमें भी तो कहाँ मतलब है परिचितों और रिश्तेदारों की खैर-खबर से। हम भी यही कर रहे होते हैं आम जन-जीवन में।  बहरहाल, सिवाना आने के बाद का सबसे नीरस दिन रहा आज। शनिवार था और शनिवार मतलब ऑफिशियल लीव। दिन-भर पड़ा रहा घर में मन नहीं था तब भी। यू-ट्यूब पर कुछ विडियो देखे बस। शाम ढले बाहर निकला तो हरीश भाई के रूम पर चला गया। मटर-पनीर की सब्जी बनाई हरीश भाई ने। सचमुच बहुत ही ज्यादा टेस्टी। मजा आ गया आज तो खाने का। अभी साढ़े नौ बजे आया हूँ उधर से अपने घर और नींद बाट जो रही है। मन का अभी बस। कुछ नहीं। शुभ रात्रि... - सुकुमार  10-12-2022

सिवाना डायरीज - 116

 सिवाना_डायरीज  - 116 'आने वाली पीढ़ियाँ मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस का ऐसा कोई कभी इस धरती पर चला था।' - महात्मा गांधी के लिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन का सोचना था ये। आचार्य प्रशांत को सुन रहा था आज मैं गांधीजी के विषय पर। काफी हद तक सहमत हूँ मैं उनकी बातों से। बकौल आचार्य प्रशांत- "किशोरवय में मैं स्वयं भी बहुत परेशान रहा हूँ गांधीजी को सोच-सोचकर। कितनी ही जगह असहमत भी रहा हूँ उनके विचारों से। उनके कितने ही निर्णय आज भी ठीक नहीं लगते मुझे। मगर उन्हें कोई महात्मा, बापू या राष्ट्रपिता कहने लग जाये, उनका आग्रह नहीं रहा कभी भी। एज ए ह्युमन-बींग उनके एक जीवन से हमें इतना तो सीखने को भी मिल ही जाता है कि सीखने के लिए शायद उम्र ही कम पड़ जाये।"  बहरहाल, अपने दिन पर आते हैं। संतोषी माता का शुक्रवार हुआ करता था कभी मेरे लिए ये दिन। आज वीक का ऑफिसियली लास्ट वर्किंग-डे होता है बस। सवा तीन बजे एक्जेक्ट उठ गये थे आज अपन। दो घंटे पढ़ने के बाद दैनिक कामों में लग गए। चुकंदर नाश्ते में सुहा नहीं रहा पेट को और उनको ऐसे ही खराब होने देना मन को कभी नहीं जँचता। माॅर्न...

मन_एक्सप्लाॅर - 2

 #मन_एक्सप्लाॅर - 2 चौराहे वाले घर की पोळ से जीजी(बुआजी) वाले कमरे के उस छोटे से बारह-पंद्रह फुट के रास्ते में ही मिल जाते थे मेरे साढ़े छः फुट लम्बे फुफाजी। कभी चारपाई पर लेटे, कभी एटलस की अपनी साईकिल निकालते और कभी धूल से सने चमड़े वाले जुत्तों में पैर डालते। जो नहीं मिलते थे तो छाती में जमें साॅफ्ट-स्टाॅन फैक्ट्री के धूल के कण खंसवा देते थे उन्हें। घर के बाहर भी वे दिख जाते थे अक्सर अपनी साईकिल के हैंडल पर दूध की केतली लटकाये, हाथ में लकड़ी की पतली सी डंडी लिये और पीली वाली उस गाय को अपने नोहरे की तरफ ले जाते हुए... पिछले गुरुवार को फुफाजी चले गये। ये 'चले गये' हमारे यहाँ अनन्त यात्रा का दूसरा नाम है। घर से नोहरे के बीच के रास्ते में ही दबा दिये उन्होंने अपने सारे अरमान, सारे मस्तियाँ, सारी खुशियाँ और दुखड़े-रगड़े भी। आज जब हम सब अपने होने को जस्टीफाई करने में लगे हैं, मैं तो बस यही सोचता रह गया कि एक आदमी जिंदगी से अपनी शिकायतें किये बिना ही कैसे जा सकता है!!! मुझे कभी-कभी ईश्वर पर भी भरोसा नहीं होता। अजीब प्राणी है वो सच में। जब उसका मन हुआ भेज दिया तार आ जाने को। कई बार व...

मन_एक्सप्लाॅर - 1

 मन_एक्सप्लाॅर - 1 ब्रेक लेना चाहता था एक। ब्रेक खुद को अकेले करने का। ब्रेक, कि न किसी को दिखूँ और न ही देख सकूँ। ब्रेक, कि  जो हासिल करना है वहाँ तक जाकर ही सबके सामने आऊँ। कोशिश भी की। एक लम्बी कोशिश। कोशिश, जिसमें रात को चद्दर शरीर पर डालने से पहले दिमाग अगले दिन का शिड्यूल बनाता है। कोशिश, जो एक अच्छी सुबह के साथ शुरू होकर खत्म होते-होते एज युजअल हो जाती है। कोशिश, कि बिल्कुल कम बोलना है, अच्छा और कम खाना है और खुद को बस उस हासिल के लिए तैयार रखना है। खुद पर काम करना है। खुद को शरीर, मन और डेली-बिहेव से आइडियल स्टेट में ले आना है। ये सब लिखना-पढ़ना कितना अच्छा लग रहा है ना? लेकिन मौन के साथ मुस्कान चाहिए होती है और खाने पर कंट्रोल से पहले अपने मन पर कंट्रोल। 'आज थोड़ा बिगड़ गया, अब कल से एकदम ठीक कर लूँगा।' -सोचते-सोचते इकतीसवें पड़ाव के अहाते में खड़ा हूँ। तीस तक कभी महसूस ही नहीं हुआ कि किशोरावस्था से बहुत दूर है तीसवां-इकतीसवां पड़ाव। अब लगता है। अब महसूस होता है। महसूस होता है कि आदतें, नेचर और लाईफ-स्टाईल बच्चों जैसी होने से ही आदमीं बच्चा नहीं हो जाता है। सोचने वालो...

सिवाना डायरीज - 115

 सिवाना_डायरीज  - 115 अकेला बैठा हूँ। सोच रहा हूँ किस नम्बर पर लगाऊँ काॅल, जहाँ उड़ेल सकूँ खुद को। जिंदगी के सफर में जिस-जिस से खुद को हारा, वो अपनी जीत के जश्न में कुचलता गया मुझे। वैसे ये सब गलतफ़हमी है मेरी। सच्चाई तो यही है कि मुझसे ही न सम्भाला जा सका प्यार। केवल बातें ऊँची-ऊँची कर लेने से आदमी महान थोड़े बनता है। खरी-खरी बात तो यही है कि सब मेरे कारण ही हुआ है। मेरी जिंदगी का हर वो पल जो परेशान कर रहा है, उस सबका कारण मैं हूँ। जितना बनाया है, अगर वो मैंने बनाया है। तो फिर जितना धँसा है, वो भी मेरा ही किया-धरा है। ज्यादा सोचूँ तो माथे की नस फटने लगती है आजकल। पश्चाताप की आग में जलाकर मार देना चाहता हूँ खुद को। जानें क्यों, इतनी नेगेटिविटी आती जा रही है आजकल। सच में मनोहरा का जाना, मुझे रोज मार रहा है धीरे-धीरे। डर लगने लगा है कि एक दिन बुझ जायेगा ये दीप और धरे रह जायेंगे सब-कुछ रोशन कर जाने के इसके सपने। बहरहाल, इस सप्ताह का चौथा दिन ठीक रहा अपना। अर्द्धवार्षिक परीक्षाएँ शुरू हुई है आज से उच्च प्राथमिक कक्षाओं की। हरीश और मैं पहली बार सिवाना के गवर्नमेंट काॅलेज गये थे आज।...

सिवाना डायरीज - 114

 सिवाना_डायरीज  - 114 'इस ग्रह को पृथ्वी कहना कितना अनुचित है, जब यह बिल्कुल स्पष्ट रूप से महासागर है।' - मशहूर लेखक आर्थर सी. क्लार्क का यह कथन खूब मजबूर कर रहा है सोचने को। आज जब आउटलुक मैग्जीन पढ़ रहा था अपनी एलआरसी पर ही, उसके एक आर्टिकल में पाया मैंने इस पंक्ति को। समुद्री संभावनाओं पर आधारित था पूरा आर्टिकल। भौगोलिक हिसाब से देखें तो सच में बहुत बड़ा रोल है महासागरों का पृथ्वी के होने में, और नदियाँ तो बोनस है ही। पता है एक दफा तो यह लाईन मुझे बिल्कुल बुद्ध की उस लाईन सी लगी कि संसार दुखों का सागर है। बहरहाल, दिन निकल रहे हैं बस। अपनी सुबह उतनी ठीक नहीं हो रही जितनी ठीक करने के सपने लेकर रात को सोया जा रहा है। चुकंदर नाश्ते में लेना शुरू किया है इस सप्ताह, मगर पहले ही दिन भारी रहा पेट। निपटकर मायलावास में अपने विनोद जी वाली स्कूल गया था आज। 'सर-सर-सर-सर उड़ी पतंग' और 'रेल चली भाई रेल चली' वाली कविताओं के माध्यम से वर्ण-शब्द पहचानने पर कोशिश की बच्चों के साथ। विनोद जी के छोटे भाई का बर्थ-डे था तो कचौरी खाई आज पूरे स्टाफ के साथ। लंच के बाद पिपलिया नाथ जी की ...

सिवाना डायरीज - 113

 सिवाना_डायरीज  - 113 "अचार भी प्रेम है।" - असिस्टेंट प्रोफेसर साहब और हमारे बड़े भैया विष्णु शर्मा जी की डायरी पढ़ रहा था। कई बार सारा का सारा और कई बार नाम मात्र का, रोटी के साथ प्रेम का ही तो काम है अचार का। कितने खूबसूरत तरीके से समझाया है विष्णु जी ने अचार और प्रेम को। मेरी दृष्टि में भी प्रेम की परिभाषा यही है, वो अलग बात है कि मैं खुद नहीं चल पा रहा उस पर। अब से कोशिश रहेगी कि इस पर ही काम करूँ। बहरहाल, अब से हर दिन अच्छा ही जाने वाला है अपना। क्योंकि अपन खुद के लिए जीना शुरू कर रहे हैं अब। बहुत हो गया सबकी चिंता करना। खूब हो गया सबके मन रखना। अब बस खुद के लिए। सुबह उठकर घर की तो कर दी सफाई, अब मन की भी करनी ही है। गर्ल्स अपर प्राइमरी स्कूल, मायलावास रहा दिन भर। अपने विनोद जी वाली स्कूल। प्राथमिक वाले तीनों टीचर्स के साथ बैठा आज। सब्जेक्ट डिसाइडेशन वाला काॅल्ड-वार खत्म किया। लंच के बाद आ गया ऑफिस। बीच में गाड़ी भी धुलवाई एक सर्विस सेंटर पर। शाम पाँच बजे एक नई लाइब्रेरी शुरू की है हरीश भाई ने बच्चों के लिए। वो सवा चार बजे ही आ गये बच्चे। भारी काम है उनको शांत रखना। सवा ...

सिवाना डायरीज - 112

 सिवाना_डायरीज  - 112 'अश्वत्थामा हतो, नरो वा - कुंजरो वा।' - धर्मराज युधिष्ठिर का एकमात्र आंशिक सत्य है ये जो गुरु द्रोणाचार्य को रोकने के लिए काम आया महाभारत के युद्ध में। कोमा के बाद वाली लाईन को भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शंख की आवाज में दबा दिया था। निर्णय लेने के टाईम-जाॅन में ये बहुत जरूरी है कि आप बात पूरी सुनें। जीवन की अधिकांश विफलताओं में सबसे बड़ा दोषी मैं खुद को मानता हूँ। मैंने भी अधिकांश निर्णय बिना पूरी बात सुने, बिना समझे और गुस्से-गुस्से में लिये हैं। खुद को जस्टीफाई करने के लिए आज भी चाहे जो तर्क हो मेरे पास। मगर मेरे सारे दुखों का असली कारण मेरे अपने निर्णय ही है, इसमें कोई दो-राय नहीं।  बहरहाल, आ गया हूँ फिर से अपने सिवाना। सुबह साढ़े पाँच एक्जेक्ट उतरा था यहाँ। आते ही सोया जो दस बजे पहुँचा मोहन जी की स्कूल मालियों का बेरा में। तीसरी-चौथी-पाँचवी को एक साथ लेकर गणित और हिंदी में काम किया कुछ। यहाँ भी स्तर तो गर्ल्स अपर प्राइमरी मायलावास जैसा ही है। पाँचवी कक्षा ठीक है, चौथी थोड़ी ठीक और तीसरी पर बहुत जरूरत है काम करने की। शब्द और अक्षर पहचानने पर काम किया...

सिवाना डायरीज - 111

 सिवाना_डायरीज  - 111 "जहाँ न हो पगडंडियाँ की उथल-पुथल। ए जिंदगी, अब मुझे ऐसे सफर पर ले चल।।" - थका हुआ हूँ मैं। जाने क्यों? समझ ही नहीं आ रहा। मन की ग्रंथियों की उथल-पुथल ने बहुत अस्थिर कर रखा है। कुछ भी सीधा, सरल और सहज नहीं हो रहा, जबकि मैं गीत उन्हीं के गाये जा रहा। उलझी हुई सी दिख रही है जिंदगी। सच बोलूँ तो हिम्मत भी जवाब देने लगी है। कई बार मर जाने का मन होने लगा है। नाटक पूरा मचा रखा है मैंने भी सब-कुछ ठीक होने का, खुद को खुश दिखाने का और बनावटीपन को ऑरिजनल दिखाने का। मगर सच तो नहीं है ना ये। टाईम निकले जा रहा है और मैं रोज कल से - कल से किये जा रहा हूँ। बहुत पीछे हूँ औसत से भी, हाँ बहुत पीछे। इतना कि कई बार पार पाना मुश्किल लगने लगा है।  खैर, दिख तो मैं खुश ही रहा हूँ सबको। घर हूँ आज। लास्ट दिन है। इतनी जल्दी निकली छुट्टियाँ कि पूछो मत। सुबह उठकर स्टेडियम गया आज फिर। सब बच्चों को भी ले गया। क्रिकेट में भी कुछ खास न हुआ। घर आ दिन-भर  बिश्नोई प्रीमियर लीग के मैच देखने में रहा आज। अपनी चहेती दोनों टीमें मैच हार गई। घर आकर भीलवाड़ा एक शादी में जाने का विचार था, म...

सिवाना डायरीज - 110

 सिवाना_डायरीज  - 110 "हजारों काम मोहब्बत में हैं मजे के दाग। जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं।।" -दाग देहलवी जी के इस शेर से शत प्रतिशत सहमत हूँ मैं। कई बार खुद को भी यूँ ही पाता हूँ कि कुछ नहीं कर रहा मैं और कई बार सत्य भी यही होता है। आज का दिन सुबह उठने से रात को सोने तलक ऐसा ही था कि कुछ काम नहीं है आज। मगर शाम तक यूँ महसूस होता है जैसे खूब अच्छा निकला दिन। वैसे तो दिन अपना थोड़ा भी जाया कहाँ जाने देता हूँ मैं। मगर फिर भी औसत से कई गुना ठीक रहा आज का दिन।  बहरहाल, सुबह उठकर कल की तरह ही क्रिकेट के लिए पहुँच गये थे हम स्टेडियम में। बबलू मामासा, मोनु मामासा, जम्भेश और शानू के साथ खेलने का अपना अलग ही आनंद है। घर आकर अपने योगसा से बात हुई तो किसी स्कूल में जाना तय हुआ माॅटिवेशनल सेमिनार के लिए। नहा-धोकर उनके स्कूल गया और फर्स्ट शिफ्ट खत्म होने के बाद हम गुरलां सीनियर सेकेंडरी स्कूल गये। वैसे आज राजस्थान सरकार की तरफ से अध्यापक-अभिभावक बैठक का कार्यक्रम था, तो गर्ल्स स्कूल में दिनू भाईसाहब से भी मिलना हो गया जो अपनी भतीजी के साथ वहाँ आये थे। गुरलां स्कूल में अपने पुर क...

सिवाना डायरीज - 109

 सिवाना_डायरीज  - 109 "शोर यूँ ही न परिदों ने मचाया होगा। कोई जंगल की तरफ शहर से आया होगा।" - फिर कैफी आजमी जी का शेर मेरे काम आ रहा है। जिंदगी ऐसी ही चल रही है। कुछ हलचल भी। हलचल मने थोड़ा बुरा मिक्स थोड़ा अच्छा। मगर तलाश रहा हूँ कि बाहर से कौन और क्या आया ऐसा। कुछ भी संतुष्टि वाला नहीं चल रहा जिंदगी में।  खैर, रात को देरी से पहुँचा था घर। सुबह उठकर स्टेडियम चले गये हम सब। कई दिनों बाद बल्ला भी थामा था हाथ में। ठीक ही खेले अपन तो। वहाँ से फ्री होकर घर आये और पूजा की शादी में ही रहे दिन-भर। सुबह राहुल और चिंटू के साथ गया। वहाँ सुनील की उदासीनता ठीक नहीं लगी। लंच करके वापस आ गये घर। शाम को फिर राहुल उपाध्याय और पवन के साथ वहीं गये जहाँ पंकज और अंकित पहले से हमारी इंतजार में थे। सब खा चुकने के बाद पंकज सहित हम चारों एक ही बाईक पर घर आ गये। अब सोने की तैयारी में हूँ। मन प्रतीक्षा में ही है अभी और  मैं चाहता हूँ कि ये प्रतीक्षा में ही रहे। शुभ रात्रि... - सुकुमार  02-12-2022

सिवाना डायरीज - 108

 सिवाना_डायरीज  - 108 "जो वो मिरे न रहे, मैं भी कब किसी का रहा। बिछड़ के उनसे सलीका न जिंदगी का रहा।।" - कैफी आजमी जी का ये शेर मेरे अभी के दिनों पर है। बेहद बेहूदा सलीके से जी रहा हूँ आजकल। यहाँ ये लिखने के अलावा कुछ भी नियमित और निश्चित नहीं। कहीं अटक रहा हूँ, जहाँ नहीं अटकना था। मंजिल दिन-ब-दिन दूर होती जा रही लगती है। खुद को धोखा देने में भी कहाँ पीछे हूँ! जिंदगी को खेल समझ लिया है मैंने। बिल्कुल ऐसे कि अगर ठीक से खत्म न हुआ तो, फिर से खेल लेंगे। मगर साँसें हमारे हाथ में होती तब ना। जाने क्या होगा आगे। सोच-सोचकर ही डर लगता है। बहरहाल, सप्ताह का चौथा दिन। स्कूल शुरू होने से बारह बजे तक निम्बेश्वर स्कूल में रहा आज। फिर ढेर सारी बातचीत हुई। सुरेश जी और हरीश भाई को झूठ बोल रखा था कि तीन-चार बजे निकलूँगा घर के लिए। मगर एक बजे ही निकलने का प्लान था और निकला भी। धोखा दिया आज पहली दफा कलिग्स को। काॅल पर काॅल आये उनके। पहले तो अटेंड नहीं किये, फिर कुछ बहाना बनाकर बता दिया कि रवाना हो गया था दो बजे ही। पहले सिवाना से जालौर, फिर जालौर से देसूरी, फिर देसूरी से राजसमंद और फाइनली उधर स...

सिवाना डायरीज - 107

 सिवाना_डायरीज  - 107 "होठों पे मुस्कुराहट के साथ खुशियाँ ही देने का वादा मिलता। मेरी जेब टटोलने वालों दिल टटोलते तो कुछ ज्यादा मिलता।।" - जिस सफर में हूँ, नहीं होना चाहता। सफर ये नहीं चुना था मैंने और कोई जबरदस्ती भी नहीं लाया मुझे इधर। खुद ही चल पड़ा हूँ गलत राह पर। वो सब गलत किये जा रहा हूँ, जिसकी सलाह मैं किसी को नहीं देता। बनावटीपन अपने आगोश में लिये हैं मुझे। मैं इसके सारे कपड़े उतारना चाहता हूँ अब बस। बहरहाल, एक और दिन बीत गया ऐसे ही। कल वाली स्कूल में ही गया आज भी। मेरे अनुमान से मायलावास गर्ल्स स्कूल के पाँचवी के बच्चों का ही स्तर ठीक है, बाकि सब एक जैसे हैं। विनोद जी और कुसुम दीदी बहुत मेहनत कर रहे हैं। शुरुआती एक घंटा चौथी और पाँचवी में रहा मैं और बाकि समय तीसरी कक्षा कल की तरह ही। एचएम अशोक जी के छोटे से आग्रह पर मिड-डे-मील की दाल-बाटी निपटाई आज लंच में। विनोद जी बहुत साॅफ्ट इंसान है। उनके साथ रहना ठीक लग रहा है। हाफ-डे के बाद मैं ऑफिस आ गया था आज फिर। आरपी शंकर जी के साथ बात करना माॅटिवेट करता है। शाम को हम तीनों ने मिलकर नेक्स्ट मंथ की कुछ प्लानिंग की। हरीश भाई ...